गुरुवार, मार्च 31, 2011

सरकार यूं ही दिखाती रही उच्च शिक्षा के हसीन सपने

राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली सरकार सपना तो देख रही है नॉलेज इकोनॉमी में भारत को विश्व का केंद्र बनाने का, लेकिन वह खुद बालू के ढेर पर खड़ी है। हकीकत यह है कि उच्च शिक्षा के जिन आंकड़ों की बुनियाद पर अब तक वह आगे के सपने देख रही थी, उसे पता चला कि वही सही ही नहीं हैं। बदतर स्थिति यह है कि उसके पास उच्च शिक्षा में मौजूदा छात्रों, संस्थानों, शिक्षकों तक का प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है। सरकार खुद मानती है कि उच्च शिक्षा में सकल दाखिला दर (जीईआर) का उसका मौजूदा आंकड़ा आधा-अधूरा है। वह उच्च स्तर की पढ़ाई-लिखाई की सही तस्वीर नहीं पेश करता। जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उन्हीं आंकड़ों पर एतबार करके उच्च शिक्षा में 12 प्रतिशत की सकल दाखिला दर को 11वीं योजना के अंत तक 15 प्रतिशत और 2020 तक 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य भी तय कर दिया है। उच्च शिक्षा में हम कहां खड़े हैं? यह सवाल माथे पर बल डालने वाला है। विकसित देशों में 18 से 24 आयु वर्ग के 40 प्रतिशत बच्चे विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं। दुनिया में इसकी औसत दर 23 प्रतिशत है और भारत अभी 15 प्रतिशत जीईआर के लिए जूझ रहा है। भविष्य में ज्यादा बेहतर योजनाएं व नीतियां बन सकें। क्षमता विकास के साथ ही संसाधनों का ज्यादा अच्छा उपयोग हो सके। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इसके लिए अब एक प्रामाणिक डाटा की जरूरत है। लिहाजा अब वह सर्वे कराना चाहती है। इसके लिए उसने एक टास्क फोर्स भी गठित कर दिया है। जबकि सर्वे की जिम्मेदारी राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (न्यूपा) को दी गयी है। सर्वे में उच्च शिक्षा के सभी संस्थान, केंद्रीय, राज्य व डीम्ड विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालयों से जुड़े कॉलेज, राष्ट्रीय महत्व के संस्थान, पॉलिटेक्निक और शोध संस्थान शामिल होंगे। आगामी 16 अप्रैल तक परीक्षण के तौर पर यह सर्वे होने भी जा रहा है। जिसमें फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय और उसके कुछ कॉलेज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, आइआइटी दिल्ली व अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली जैसे संस्थान शामिल हैं। गौरतलब है कि इस सर्वे को लेकर इनोवेशन, बुनियादी ढांचा और जन सूचना मामलों के लिए प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने बीते दिनों सरकार को आड़े हाथों लिया था। उनका आरोप था कि योजनाओं पर अमल के बजाय सरकार सर्वे व बहस-मुबाहिसों में फंसी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का तर्क है कि प्रामाणिक आंकड़ों के लिए यह जानना जरूरी है कि सही मायने में कितने लोग उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं और कितनों के लिए इंतजाम करना है। किस स्ट्रीम में कितने शिक्षक हैं, कितनी कमी है। पढ़ाई का कौन सा क्षेत्र ज्यादा लोकप्रिय है? किसमें कितने संस्थानों की जरूरत होगी। समाज के किस तबके को ज्यादा तवज्जो की दरकार है। सरकारी, गैर सरकारी किन संस्थानों को कितने धन की जरूरत है। from dainik jagran.

कोई टिप्पणी नहीं: