रविवार, दिसंबर 14, 2008

केरोसिन का काला /गरीबों के हक पर डाका

संजय स्वदेश
कालाबाजरी को दो रूपों में देखा जा सकता है। पहला अगर वस्तु का अचानक बाजार में अभाव बन जाता है और दूसरा वस्तु की उपयोगिता कुछ इस तरह से हो कि उसके जरिये अधिक मुनाफा कमाया जा सके। इसी तरह का एक उत्पाद है- केरोसिन या मिट्टी का तेल जिसका उपयोग स्टोव में खाना बनाते और रोशनी के लिए किया जाता है। रसोईगैस के इस्तेमाल के चलते बेशक इसके प्रयोग में थोड़ी कमी आई है, लेकिन आज भी इसकी उपयोगिता दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में बनी हुई है। वहां इसका उपयोग बहुसंख्यक लोग रोशनी के लिए करते हैं। सरकार इसे गरीबों को राशन कार्ड के जरिये सस्ते दरों पर उपलब्ध कराती आ रही है। लेकिन पिछले एकाद सालों में जैसे ही पेट्रोलियम पदार्थों की दामों में तेजी से बढ़ोतरी हुइ है, इसकी कालाबाजारी तेजी से बढ़ती ही जा रही है। क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों में पूरी तरह से विलय हो जाने के कारण इसका प्रयोग मिलावट के लिए किया जाने लगा है। इसकी कीमत पेट्राल- डीजल के मुकाबले काफी कम है। आमजन के लिए उपयोगी होने के कारण ही सरकार ने इसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रखा है जिसकी वजह से इस पर भारी पैमाने पर सब्सिडी दी जाती है। मगर इसकी कालाबाजारी से सरकार को सालाना ५७०० करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।
हाल ही में फिक्की द्वारा कराये गए एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों को राशन कार्ड के जरिये मिलने वाले कुल किरोसीन तेल का ३८.६ फीसदी हिस्सा कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाती है। जिसकी वजह से सरकार को करोड़ों रुपये का सालाना नुकसान तो हो ही रहा है, इसके साथ ही गरीबों को यह सस्ते दरों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो रहा है। जिसके चलते जैसे-तैसे कम रोशनी में ही वे अपने घरों में गुजारा कर रहे हैं। जिस मिटï्टी तेल के हकदार सिर्फ और सिर्फ गरीब हैं, उस तेल की जितनी बड़ी मात्रा में आज कालाबाजारी हो रही है, उसमें में कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा सकती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य और कर के बीच सामंजस्य बैठाने की जरूरत है। पिछले कुछ महीनों में पेट्रोलियम पदार्थों विशेषकर डीजल और पेट्रोल के दामों मे जबर्दस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिला। तेल के भाव अंतरराष्टï्रीय खुले बाजार की तर्ज पर तय करने कारण ही कुछ ही माह के अंतराल पर डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ती रही हैं। जबकि सब्सिडी के चलते मिट्टी के तेल की कीमतों को इसलिए स्थिर रखा जाता है क्योंकि इसका उपयोग आम लोग कर रहे हैं। इसी का फायदा कालाबाजारी करने वाले उठा रहे हैं। वे कम कीमत वाले इस किरोसिन को पेट्रोल-डीजल में मिलावट कर बेच रहे हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में मिटावटी तेल के कारण ही सरकार को १५००० करोड़ रुपये सब्सिडी का बोझ उठाना पड़ेगा। हालांकि इसे रोकने के लिए सरकार कई वर्र्षों से प्रयास कर रही हैं, लेकिन अभी भी संतोषजनक सफलता नहीं मिल पा रही है। शुरूआत में मिटï्टी का तेल स्वच्छ पारदर्शी और रांगहीन होता था जिसे पेट्रेल-डीजल में मिलाने के बाद बिलकुल ही पता नहीं चल पाता था। सिवाय उसकी गंध से ही पहचाना जा सकता था। बाद में सरकार ने किरोसिन में नीला रंग मिलना अनिवार्य बना दिया। सरकार का कहना था कि इससे मिलावट को रोका जा सकेगा। लेकिन सरकार के इस पहल का भी कोई फायादा नहीं हुआ। वर्तमान में सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों में किरोसिन की मिलावट को रोकने के लिए मार्कर प्रणाली शुरू की है। जिसकी वजह से पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावट का पता लगाया जा सकेगा। मगर यह प्रणाली कितनी कारगर होगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा?
मिट्टी के तेल की कालाबाजारी में छोटे दुकानदार ही नहीं बल्कि बड़े स्तर पर भी पर भी लोग शामिल हैं। पेट्रोल पंपों में इसका इस्तेमाल मिलावट के लिए बड़े पैमान पर चोरी-छिपे हो रहा है। विडंबना यह भी है कि तमाम जांच विभाग होने के बाद भी इस तरह की कालाबाजारी जारी है। किरोसिन का आवंटन सही तरिके से हो, इसका दायित्व केंद्र सरकार खासतौर पर वित्तमंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले से जुड़े विभागों पर बनता है। लेकिन इसके बाद भी ये सभी मंत्रालय मिल कर इस बात की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं कि किस तरह से इस कालाबाजारी को रोका जा सके और सरकारी सहायता प्राप्त उत्पाद सीधे अपने लक्ष्य तक पहुंच सके। मिट्टी के तेल पर दी जाने वाली सब्सिडी सीधे तौर पर गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों के लिए दी जाती है। इसके बाद भी अगर कालाबाजारी का यह खेल जारी रहता है तो इसका सीधा मतलब है कि गरीबों के हिस्से की सब्सिडी काटकर उसका लाभ अघोषित तौर पर उन लोगों को दिया जा रहा है जो पहले से ही साधन संपन्न हैं। देखा जाए तो यह स्थिति गरीबी उन्नमुलन जैसे कार्यों के लिए भी चिंताजनक है। इसलिए सरकार को केरोसिन की कालाबाजारी को रोकने के लिए गंभीरता से विचार कर किसी कारगर नीति को लागू करने के लिए सोचना चाहिए।

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