सोमवार, दिसंबर 15, 2008

आग अगनी मिले न पुरोहितं. खाक होने के लिए कोफी है जरी सी लापरवाही

खाक होने के लिए काफी है जरा-सी लापरवाही
संजय कुमार
नागपुर. नगर में बढ़ती आबादी, विकास की तेज रफ्तार में आग के प्रति छोटी-सी लापरवाही बेहद खतरनाक है। हर साल आगजनी की छोटी-बड़ी सैकड़ों घटनाएं होती हैं, जिसमें करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है। महानगर पालिका के अग्निशमन विभाग के प्रमुख अग्निशमन अधिकारी चंद्रशेखर जाधव की माने तो बीते वित्तीय वर्ष 200-08 में आगजनी की कुल 23 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें 3,53,85,8160 रुपये का नुकसान हुआ। गत एक माह में गर्मी के चढ़ते पारे के साथ दर्जन भर से अधिक आगजनी की घटनाएं हुई हैं। नागपुर में कई इमारत व सावर्जनिक जगहों पर अग्निशमन के लिए जरूरी साधनों का अभाव है। हालांकि नेशनल बिल्डिंग कोड एनबीसी के मुताबिक पंद्रह मिटर के ऊपर की ऊंचाई वाले भवनों में अग्निशमन के संसाधनों को लगाकर विभाग से एनओसी लेना जरूरी होता है। इसके साथ ही हर तरह के व्यावसायिक गतिविधियों वाले भवन चाहे कितनी भी ऊंचाई के क्यों न हों, उसमें नियमानुसार आग पर नियंत्रण पाने वाले जरूरी उपकरण रखना आवश्यक है। अग्निशमन विभाग के सूत्रों की मानें तो विभाग ने पिछले दिनों करीब 200 भवनों में अग्निशमन सुविधाओं की लापरवाही को लेकर उन्हें नोटिस जारी किया है। इसमें नगर के कई नामी-गिरामी बिल्डर भी हैं। इतना ही नहीं नगर की कई बहुमंजिले इमारतों में आपातकाल के लिए अलग से कोई सुरक्षित दरवाजा नहीं है। इतवारी जैसे क्षेत्र में अनेक पुराने बाजारों की गलियां इतनी संकरी हैं कि आग लगने की स्थिति में आग पर काबू पाना मुश्किल है। श्री जाधव का कहना है कि जब कभी इतवारी क्षेत्र की किसी गली में आग लगती है तो संकरी गलियों में दमकल की गाडिय़ां भी नहीं घुस पाती हैं। इस कारण आग लगने की स्थिति में करीब एक हजार मीटर की पाइप-लाइन बिछाना पड़ता है। पुराने भवन और इमारतों में लगे आग बुझाने के गैस-सिलेंडर पुराने हैं। व्यावसायिक भवनों में जहां ये सिलेंडर लगे हैं, उसके आसपास खड़े गार्ड या कर्मचारी को इसे चलाना आता ही हो, यह जरूरी नहीं। हालांकि हर साल इन सिलेंडरों की रिफीलिंग करनी पड़ती है। लेकिन लोग इसके रिफिलिंग को लेकर सतर्क नहीं हैं। मुख्य अग्निशमन अधिकारी का कहना है कि उनकी टीम समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में औचक निरीक्षण कर यह देखती है कि जरूरत के जगह पर कहां आग-निरोधी उपकरण रखे हैं। नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें नोटिस दी जाती है। अधिकतर आवासीय भवन 15 मिटर से कम ऊंचाई के हैं। लेकिन एनबीसी के नियमानुसार इनमें अग्निशमन उपकरणों को लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। 15 मिटर से अधिक उंचाई से ऊपर के भवनों में विभाग से एनओसी लेना अनिवार्य है। भवन निर्माताओं को चाहिए वे 15 मिटर से कम ऊंचाई वाले भवनों में भी अग्निरोधी उपकरणों की व्यवस्था करें। आपातकालीन सिढिय़ां रखे। अधिकर लोग फ्लैट आदि खरीदने के दौरान हर तरह की कागजी कार्रवाई दुरुस्त करते हैं, हर तरह की सुविधा देखते हैं। लेकिन आग से बचाव के लिए वहां किस तरह की सुविधा है, यह देखते ही नहीं। यह कितना जरूरी होता है, यह लोगों को तब समझ आती है, जब कोई घटना घट जाती है।
अग्निशमन उपकरणों का व्यवसाय करोड़ों का
भले ही नागपुर के कई व्यावसायिक भवनों में अग्निशमन उपकरणों के प्रति लापरवाही देखी जा सकती है। यहां ऐसे दर्जनों व्यावसायिक भवन हैं, जहां अग्निशमन के लिए करोड़ों रुपये के उपकरण लगे हैं। ये उपकरण अंतरराष्टï्रीय स्तर के हैं। आग लगने परे यह अपने आप अलार्म बजता है और केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में यह भी सूचना देता है कि आग कहां लगी है और किस ओर फैल रही है। ऐसे भी उपकरण लगे हैं, जो आग के हिट से उसपर लगा कांच अपने आप टूूट जाता है और आग पर पानी गिरने लगता है। अग्निशमन उपकरणों के व्यावसाय में करीब बीस साल से जुड़े मनोज जाधव का कहना है कि दो दशक पहले तक स्थिति यह थी कि लोगों को बहुत ज्यादा समझा-बुझाकर उनके यहां अग्निरोधी यंत्र लगाये जाते थे। तब साल में दो-तीन ही ऐसे काम मिलते थे। आज स्थिति बदल चुकी है। हर साल करीब 25-30 भवनों में इसका काम मिलता है। नागपुर में ऐसे करीब दर्जन भर भवन हैं जिनमें हर एक में करीब एक से दो करोड़ रुपये खर्च करके इसकी व्यवस्था की गई है। हर शॉपिंग मॉल्स में इसकी व्यवस्था की जा रही है। क्योंकि कोई भी व्यावसायिक कंपनी आपातकालीन समय का जोखिम नहीं लेना चाहती हैं।
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रेलवे स्टेशन पर व्यवस्था खस्ता
यदि नागपुर रेलवे स्टेशन पर आग लगे तो स्थिति खतरना हो सकती है। अंदर के प्लेटफार्म से बाहर निकलने के दो ही पूल हैं। भीड़-भाड़ के दौरान यदि आग लगती है, तो वहां लोगों की अफरातरफरी मचना स्वाभाविक है। हालांकि रेल प्रशासन यह जरूर कहती है कि यहां अग्निशमन के सभी जरूरी उपकरण है। लेकिन हकीकत यह है कि यदि प्लेटफार्म पर एक छोर से दूसरे छोर तक घुम कर देखे आग बुझाने के लिए जरूरी चीजें नहीं मिलेंगी।
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खाली हैं अग्निशमन विभाग में 98 पद
महानगर प्रतिनिधि
नागपुर. नगर में कुल 8 फायर स्टेशन हैं। लेकिन नगर की बढ़ती आबादी और इसके विस्तार को देखते हुए इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। विभाग का कहना है कि अभी तीन और नये फायर स्टेशन खोलने की जरूरत है। तीन निर्माणाधिन है जिसमें जरीपटका, त्रिमूर्ति नगर और नरेन्द्र नगर के फायरस्टेशन हैं। अंतराष्टï्रीय सिटी की ओर कदम बढ़ाते नागपुर में आग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए 8 फायर स्टेशनों में चीफ फायर ऑफीसर से लेकर क्लीनर तक कुल 411 पद हैं, जिनमें से 98 पद रिक्त हैं। मुस्तैद कर्मी मात्र 313 ही है। रिक्त पदों में सीनियर लिडिंग फायरमैन और लिडिंग फायरमैन के पद ज्यादा है। आग नियंत्रण करने में इस पद के कर्मचारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कई लोगों की शिकायत है कि आग लगने की स्थिति में विभाग का दूरभाष व्यस्त रहता है। इस संबंध में विभाग का कहना है हर रोज सैकड़ों फोन कॉल्स आते हैं, जिसमें से दो -तीन सही होती हैं। विभाग में टेलीफोन ऑपरेटर के कुल दस पद हैं जिसमें से पांच अभी भी रिक्त हैं।
बॉक्स में
गत वर्षों में नागपुर में लगी छोटी, मध्यम और बड़े स्तर की आग की घटनाओं को विवरण
वर्ष छोटी मध्यम बड़ी कुल नष्टï संपत्ति
१९९९ २५० २४७ ०७१ २,४८,२२,६९०
२००० ३४५ २३९ ०४९ २,७८,०७,८५०
२००१ ३२४ १५१ ०५८ २,४३,०२,४००
२००२ ५६१ १५१ ०७३ ४,०२,२१,८७०
२००३ ४९३ ०६९ ०७७ ५,६७,४८,०२५
२००४ ४३७ ०५९ ०६४ ३,३२,९३,७००
२००५ ४५८ १०३ ०६६ ४,८०,३३,७८७
२००६ ४४७ ०७० ०५९ ४,२५,१५,१५५
२००७ ४९० १४९ ०९८ २,१०,३१,१२०
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सारी व्यवस्था आग लगने के बाद की है
नागपुर को जिस तरह से एक मॉडल सिटी बनाने की बात की जा रही है, उसमें आपातकाल की स्थिति में जीवनरक्षक व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। नवनिर्मित भवनों में भी इसकी व्यवस्था नहीं की जा रही है। विभिन्न आवासीय व व्यावसायिक भवनों में जो भी कुछ व्यवस्था है, वह आग लगने के बाद उसे बुझाने के लिए है। लेकिन आग फैलने से कैसे रोके इसकी व्यवस्था मुश्किल से ही मिलेंगे। लोग पैसिव लाइफ सेफ्टी मैनर को नहीं जानते हैं। स्मोक मैनेजमेंट की व्यवस्था नहीं होती है। हालांकि ये आग से बचाव के तकनीकी भाषा है। लेकिन इसके प्रति लोगों में जागरूकता बेहद जरूरी है। भवनों में अग्निशमन के उपकरण तो होते हैं, लेकिन आग बुझ जाए और उससे निकला हुआ धुंआ कहीं और न फैले इसकी व्यवस्था कहां की जा रही है? भवन डिजायन करने वाले आर्किटेक और इंटीरियर डिजाइनरों को स्वयं इस बात की पहल करनी चाहिए। अनेक लोग अपनी गाढ़ी कमाई से बहुमंजिले इमारतों पर फ्लैट्स लेते हैं। लेकिन आपातकालीन समय में उनका जीवन कितना सुरक्षित है? इस पर न ही वे विचार करते हैं और न ही भवन निर्माता? हमारे संस्थान में विभिन्न राज्यों के अनेक विभागों के अधिकारी प्रशिक्षण के लिए आते हैं। वे बताते हैं कि आम लोगों में इसके प्रति जागरूकता नहीं है। यदि स्थानीय प्रशासन नियम को सख्त करें तो आपातकालीन स्थिति में लोगों का जीवन सुरक्षित हो सकता है।
डा. शमीम,
प्रमुख,फैकल्टी ऑफ फायर इंजीनियरिंग एक टेक्नोलॉजी
राष्टï्रीय अग्निशमन महाविद्यालय, नागपुर
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वर्ष छोटी मध्यम बड़ी कुल नष्टï संपत्ति
१९९९ २५० २४७ ०७१ २,४८,२२,६९०
२००० ३४५ २३९ ०४९ २,७८,०७,८५०
२००१ ३२४ १५१ ०५८ २,४३,०२,४००
२००२ ५६१ १५१ ०७३ ४,०२,२१,८७०
२००३ ४९३ ०६९ ०७७ ५,६७,४८,०२५
२००४ ४३७ ०५९ ०६४ ३,३२,९३,७००
२००५ ४५८ १०३ ०६६ ४,८०,३३,७८७
२००६ ४४७ ०७० ०५९ ४,२५,१५,१५५
२००७ ४९० १४९ ०९८ २,१०,३१,१२०
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दावानल का नहीं कोई हल
पास नहीं पैसे, आग बुझाएं कैसे
जंगल की आग बुझाने में संसाधनों की कमी आ रही आड़े
प्रति वर्ष आग की भेंट चढ़ जाते हैं हजारों हेक्टेयर आरक्षित वन
राजेश यादव
नागपुर : वन विभाग विदर्भ के जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिए अभी भी बाबा आदम के जमाने की परंपरागत तकनीक के सहारे है। अर्थात आग को झाडिय़ों से पीट-पीटकर बुझाया जाता है। विभाग गर्मियों में इस कार्य के लिए मजदूरों की विशेष भर्ती करता है। लेकिन ज्यादातर मौकों पर इनका समय पर उपयोग ही नहीं हो पाता। कारण, इन मजदूरों को आग लगने के स्थान तक ले जाने के लिए अलग कोई वाहन नहीं हैं। अन्य कार्यों में लगे विभागीय वाहनों को जब तक बुलाया जाता है, तब तक सैकड़ों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुका होता है। वन विभाग के सूत्र बताते हैं कि जंगलों में लगी आग पर नियंत्रण के लिए जो बजट आवंटित किया जाता है, वह इतना कम होता है कि किसी तरह से आग बुझाने के कार्य में लगे लोगों को मजदूरी भर मिल पाती है। उपकरणों की तो बात ही छोड़ दीजिए। संसाधनों की कमी का आलम यह है कि पूरे राज्य में वन विभाग के पास अपना कोई फायर टेंडर नहीं है। आग बुझाने के आधुनिक उपकरणों को तो छोड़ ही दें, इस कार्य में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अधिकारियों का भी टोटा है। वाहनों की कमी के अलावा संचार साधनों की कमी से भी विभाग जूझ रहा है। संचार सुविधाएं न होने से आरक्षित जंगलों में लगी आग की सूचना वरिष्ठï अधिकारियों को समय पर नहीं मिल पाती। फलस्वरूप आग बुझाने वाले विशेष दल को रवाना करने में काफी समय लग जाता है। राज्य में कुल 11 वन सर्किल हैं, पर केवल चार सर्किल को वायरलेस सुविधाओं से जोड़ा गया है। उस पर से भी काफी पुरानी तकनीक का होने के कारण ज्यादाकर सेट खराब पड़े हुए हैं। ऐसे में समय पर आग की सूचना अपने बड़े अधिकारियों तक पहुंचाना, दूर दराज के सघन वनों में तैनात वनकर्मियों के लिये टेढ़ी खीर है। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश ने वनकर्मियों को मोबाइल फोन से लैस कर दिया है। जिसमें विभागीय नंबरो पर मुफ्त में काल की जा सकती है। यह योजना वहां काफी सफल रही और वहां आग पर काबू पाने में इससे काफी मदद मिल रही है। पर महाराष्टï्र में यह प्रस्ताव अभी-भी वनमंत्री के पास विचाराधीन पड़ हुआ है।
कितना जला जंगल
वन विभाग के अधिकृत आंकडों को ही ले तो प्रतिवर्ष हजारों हेक्टेयर आरक्षित वन आग की भेंट चढ़ जाते हैं। वर्ष 2006-00 में राज्य में वनों में आग लगने की 24 घटनाएं दर्ज की गई। इसमें 32 हेक्टेयर वनभूमि पर खड़े सघन जंगल को भारी क्षति पहुंची। जनवरी,200 से सितम्बर 200 तक राज्य में वनों में आग लगने की 126 घटनाएं दर्ज की गई, जिसमें 26112 हेक्टेयर वनभूमि जलकर खाक हो गई।
क्यों और कब लगती है आग
सूत्रों की मानें तो जंगल में लगने वाली 90 प्रतिशत आग मानव जनित होती है। खासकर फरवरी से लेकर अप्रैल तक के महीनों में सर्वाधिक आग लगने की घटनाएं दर्ज की जाती हैं। सूत्रों के अनुसार उत्तम दर्जे का तेंदू पत्ता इक_ïा करने के लिए लोग जानबूझकर आग लगा देते हैं। तेंदू की झुलसी हुई झाडियों से जो नई कपोले आती हैं उनकी बाजार में भारी मांग को देखते हुए ऐसा किया जाता है। कई बार महुआ बीनने के लिए भी आग लगा दी जाती है। आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर आग लगने की घटनाएं 11 बजे से 3 बजे तक दिन में ही होती है।
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कभी हेलीकाप्टर से बुझाई जाती थी आग
मात्र दो दशक पहले विदर्भ के लोगों को इस बात का गर्व था कि वनों में लगने वाली आग बुझाने के लिए उनके पास विशेष किस्म का हेलीकाप्टर है। दरअसल संयुक्त राष्टï्र विकासनिधि से भारत में वन संपदा के संरक्षण एवं जंगलों में लगने वाली आग पर नियंत्रण के लिए आग बुझाने के विशेष उपकरणों से लैस दो हेलीकाप्टर देश को मिले थे। इनमें से एक हेलीकाप्टर हलद्वानी में तैनात किया गया दूसरा राज्य के वनबहुल चन्द्रपुर जिले में संयुक्त राष्टï्र की विशेष सहायता जब तक मिलती रही तब तक तो ठीक चलता रहा, पर जैसे ही यह सहायता राशि बंद हुई, हेलीकाप्टर को ईंधन के ही लाले पड़ गए। जब राज्य सरकार ने भी हाथ खींच लिया तो केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस विशेष हेलीकाप्टर को वापस बुला लिया। हेलीकाप्टर तो गया ही जंगल में आग बुझाने के काम आने वाले संयुक्त राष्टï्र संघ द्वारा दिए गए आधुनिक उपकरण भी धीरे-धीरे बेकार हो गए। अब आलम यह है कि राज्य के वन विभाग के पास आग बुझाने के काम आने वाला एक फायर टेंडर तक नहीं है।

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