गुरुवार, दिसंबर 25, 2008
मौसम ने छोड़ा साथ तो फैशन से मिलाया हाथ
तिब्बती शरणार्थियों के गर्म कपड़ों से कौन परिचित नहीं होगा। हर साल सर्दी शुरू होते ही कई तिब्बती सपरिवार नागपुर आते हैं। रंग-बिरंगे फैशनेबल कपड़े नागपुर के लोग खूब पसंद करते हैं। यहां आर्इं तिब्बती महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा मेहनत करती हैं। वे घर की रसोई की जिम्मेदारी के साथ ही स्टॉल संभालने की जिम्मेदारी उठाती है। बाकी दिनों में मजदूर की तरह खेतों में काम करती हैं। कभी मौसम की बेरुखी हर साल भारी पड़ती है। कभी खेतों की उपज कम होती है तो, साल सर्दी कम होने से गर्म कपड़ों की बक्री खरीदी अच्छी नहीं रहती है।
संजय स्वदेश
नागपुर. यशवंत स्टेडियम के समीप पटवर्धन मैदान में सजे तिब्बति शरणार्थियों के गर्म कपड़ों के बाजार में अधिकतर दुकानदार महिलाएं हैं। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि हर साल सर्दी शुरू होते ही नागपुर के इन मेहमानों जीवनयापन केवल गर्म कपड़ों के व्यवसाय से नहीं चलता है। इनका कहना है कि यह केवल तीन-से चार महीने का व्यवसाय है। बाकी समय तो वे खेती करती हैं। इसके बाद भी इतनी कमाई नहीं होती की बाकी समय बिना काम के गुजारा जा सके। यहां आर्इं महिलाएं कहती हैं कि वे घर के पुरुष सदस्यों के साथ खेती में पूरा सहयोग करती हैं। घर की जिम्मेदारी अलग। स्टॉल पर बैठ कर ग्राहकों को भी संभालना पड़ता है। कई महिलाओं ने बताया कि वे बच्चों को इस पेशे से नहीं जोड़ना चाहती हैं। सर्दी शुरू होेते ही खानाबदोश की तरह रहना पड़ता है।
गर्म कपड़ों में फैशन
यदि मौसम ने बेरुखी दिखाई तो खेती से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। तब इस नुकसान की भरपाई अक्सर सर्द मौसम में गर्म कपड़ों के व्यापार से हो जाती है। यहां आई हुबली कहती हंै कि जब खेती पर मौसम की मार पड़ती है, तो सर्दी में फैशनेबल गर्म कपड़ों का साथ मिलता है। नागपुर के लोग गर्म कपड़ों में भी फैशन और स्टाइल देखते हैं। इसलिए यहां फैशनेबल कपड़ों ज्यादा लेकर आते हैं।
नौकरी से ज्यादा व्यवसाय में मजा
बैंगलूर से आई तेंजिन कहती हैं कि होटल मेजबानी करती हैं। इन दिनों भाई को सहयोग करने नागपुर आई है। अकेले इस स्टॉल को संभालना मुश्किल है। फिर नौकरी से ज्यादा व्यवसाय में मजा है। गर्म कपड़ों का व्यवसाय कुछ महीने का है। कई सालों से इसी व्यवसाय से जुड़े हैं, इसलिए दूसरा बदलने की सोचते नहीं।
फसल अच्छी नहीं होन पर आर्थिक संकट
मैसूर की डोलमा ने बताया कि वह 5 एकड़ जमीन में खेती करती हैं। पर खेती में लागत ज्यादा होने और मौसम की बेरुखी से जब अच्छी फसल नहीं होती तब आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें इस पेशे में नहीं लाना है, क्योंकि यह बहुत तकलीफ वाला है। सर्द मौसम में सुबह जल्दी उठ कर घर का काम, फिर स्टॉल सजाओ, रात को घर वापस जाकर खाना बनाना-खाना। अपने लिए समय ही नहीं मिलता है। प्रेमा दसवीं की छात्रा है। उसके परिवार के लोग गोंदिया में चावल की खेती करते हैं। कहती है वह केवल दुकान में बैठती है। बारी-बारी से दुकान में बैठने से घर के दूसरे लोग आराम कर लेते हैं।
बाजार में खेलते बच्चे
तिब्बती शरणाथियों के संगठन के प्रमुख टी. नूरपुर ने बताया कि अल्पकालीन समय के लिए बने इस बाजार के लिए वे मनपा को चार लाख रुपये किराये के रूप में देते हैं। मनपा ही हर साल इस बाजार की व्यवस्था करती है। यहां कुल 62 परिवारों के 62 स्टॉल है। सभी लोग सपरिवार आए हैं। कई नन्हें-बच्चे बाजार में ही खेलते नजर आते हैं।
सर्दी से कमाई
टी. नूरपुर ने बताया कि उनके गर्म कपड़े दिल्ली और पंजाब से आते हैं। कई दुकानदार बैंक से ण लेकर स्टॉल सजाते हैं। विश्वसनीयता के आधार पर व्यापारी कपड़े भी उधार देते हैं। नवंबर से जनवरी तक नागपुर में रहते हैं। इस बीच व्यापारी अपनी उधार वसूली के लिए आते हैं। पिछले साल ठंड ज्यादा होने से कपड़े जल्दी बिक गये थे। इस साल ठंड कम होने से बिक्री सामान्य है। कई दुकानदारों के पास ण चुकाने भर की पर्याप्त कमाई नहीं होने से परेशान हैं। जब सर्दी कम होती है, तो कमाई कम होती है।
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