संजय कुमार
नागपुर. अभी तक ज्यादातर महिलाओं पर अत्याचार के मामले सामने आते रहे हैं। इसे रोकने के लिए सशक्त कानून भी बनाएं गए हैं। समय बदल रहा है। महीला सशक्तिकरण के जमाने में अब पति पत्नी से पीडि़त हैं। चाहे वे पत्नी के लगाए गए दहेज प्रताडऩा और घरेलू हिंसा के झूठे आरोप हो या फिर घर में आपसी कलह। यदि ऐसा नहीं होता है तो पत्नी पीडि़त बीते 19 नंवबर को पुरुष दिवस के रूप में मनाने की जरूरत नहीं पड़ती है। आप माने या न माने? राष्टï्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि आत्महत्या के मामलेे में विवाहित पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में ज्यादा है। 2005-2006 के आंकड़ों के मुताबिक विवाहित पुरुषों में आत्महत्या के दर्ज कुल 10935 और महिलाओं की 5805 थी। प्रतिशत की दृष्टिï से पुरुषों की संख्या 64 है और महिलाओं की संख्या 36 प्रतिशत है। मतलब हर 8 मिनट में एक विवाहित पुरुष आत्महत्या कर रहा है। विवाहित महिलाओं का आत्महत्या का दर प्रति 13 मिनट में एक है। जानकारों का मनना है आत्महत्या करने वाले अधिकतर मामले परिवारिक कलह का ही कारण बनी। आंकड़े साल-दर साल बढ़ रहे हैं।
पत्नी से प्रताडि़त होने के मामले विदर्भ क्षेत्र के पुरुष भी पीछे नहीं है। तीन साल पूर्व नागपुर में पत्नी पीडि़तों एक संगठन बना। आज करीब 600 पत्नी पीडि़त के सदस्य है। इसमें सबसे ज्यादा संख्या नागपुर के लोगों की है। संगठन के जुड़े लोगों का कहना है कि पुरुष आत्महत्या के मामले प्रकाश में तो आते हैं पर पीछे की स"ााई से बहुत कम ही लोग रू-ब-रू हो पाते हैं। कई बार इन कानूनों का दुरूपयोग कर पत्नी पति को प्राडि़त करती है। ऐसे ही पीडि़त पुरुषों का कहना है कि उनके परिवार की जुड़ी महिलाएं भी दुखी हैं। पत्नी को प्रताडि़त करने वाली महिलाएं जब कानून का संरक्षण लेती हैं तो वे घर के अन्य महिला सदस्यों पर भी प्रताडऩा का अरोप लगाता हैं। पीडि़त पति हर रविवार को रामदासपेठ स्थित लैंडा पार्क में सुबह 9 बजे बैठक करते हैं। एक दूसरे की समस्या सुनते हैं और सहयोग करते हैं। जब नया पीडि़त आता है तो उनकी काउंसलिंग होती है जिससे कि वह आत्महत्या न कर सके। पीडि़तो का आरोप है कई महिलाएं कानूनी अधिकारों का दुरुपयोग कर परिवार को बदनाम करती है। दहेज विरोधी काननू का हवाला देकर घर-परिवार में बर्चस्त जमाने की कोशिश करती हैं। खेद की बात है कि जैसे ही पत्नी आरोप लगाती है और बात थाने तक पहुंचती है और मामला दर्ज होता है तो पति महोदाय जेल चले जाते हैं। घोर अवसाद का शिकार हो जाते है। पत्नी के हरकतों से बेटे भाई की जिंदगी में पडऩे वाली खलल से कई मां-बहनों का दिल टूटा है। युवा पति कोर्ट-कचरही के चक्कर काटते-काटते अधेड़ हो रहे हैं। पीडि़त संगठन के एक सदस्य ने बताया कि इस चक्कर में पड़े अधिकतर लोग आत्महत्या अंतिम विकल्प मान लेते हैं। क्योंकि जैसे ही पत्नी के अरोप पुलिस दर्ज करती है। नौकरी चाहे सरकारी हो या निजी चली जाती है। श्रम और रोजगार मंत्रालय के वर्ष 2001-05 के जारी आंकड़ों के मुताबिक निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों से करीब 14 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोनी पड़ी। कई सर्वे व जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि आईपीसी की धारा 498 को बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इसके तहत कई पतियों पर दहेज के लिए पत्नी को प्रताडि़त करने के झूठे अरोप लगे हैं। दो साल पूर्व लागू घरेलू हिंसा उन्नमूलन कानून 2005 से तो महिलाओं को और ताकत दे दी है। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2006 में एक सिविल याचिका 583 में यह टिप्पणी की थी कि इस कानून को तैयार करते समय कई खामियां रह गई है। उन खामियों को फायदा उठा कर कई पत्नी पति को धमका रहे हैं।
पत्नी पीडि़त इंद्रौरा निवासी महेश जांबुडकर (परिवर्तित नाम) संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर टेक्सटाइल इंजीनियर बनें। 2001 में डिप्लोमा किए हुए इंजीनियर लड़की से विवाह हुआ। विवाह के बाद सब कुछ सामान्य रहा। श्री जांबुडकर कहते हैं कि कुछ महीने तो सब कुछ सामान्य रहा, एक बेटी भी हुई। पारिवारिक मामले में धीरे-धीरे ससुरालवालों का हस्तेक्षप बढ़ता गया। घर जवाई बनने का दवाब बनाया। पत्नी में अहंम आ गया। वह हमारे परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ बिलकुल नहीं रहना चाहती थी। विवाद इतना बढ़ा कि एक बार मेरे ही खाने में जहर मिलाकर मायके चली गई। जिंदा बच गया तो दहेज प्रताडऩा का मुकदमा दर्ज करा दिया। वकील ने तर्क दिया मैंने इतना प्रताडि़त किया कि मजबूरन खाने में जहर मिलाना पड़ा। साथ में घर के दूसरे सदस्यों का नाम प्रताडि़त करने वालों में जोड़ दिया। मुकदमा आज भी चल रहा है। बच्ची से मिलने के लिए आज भी तड़प रहा हूं। मानसिक तनाव इतना बढ़ गया कि करीब एक साल से मेंटल स्ट्रेस की मेडीकल देकर छुट्टी पर हूं और कोर्ट का चक्कर काट रहा हूं।
कुछ ऐसी ही कहानी गोपाल भगवतकर (परिवर्तित नाम) का है। चंद्रपुर में जल संपदा विभाग में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। 21 दिसंबर, 2000 को समाज सेवा में स्नातकोत्तर लड़की से विवाह हुआ। श्री भगवतकर कहते हैं कि सास-ससुर का हमारे घर में अनावश्यक हस्तक्षेप होने से वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं हो पाया। माता-पिता की ताकत पाकर पत्नी स्वच्छंद जिंदगी जिना चाही। परिवार टूटने बचाने के लिए हरसंभव कोशिश नकाम रही। पत्नी की मांग यही रही कि वह घर के दूसरे सदस्यों के साथ नहीं रहेगी। आखिर दजेह प्रताडऩा का झूठा अरोप लगाई। आरोपियों में उन रिश्तेदारों के भी नाम डाला जो दूसरे शहर में सकून की जिंदगी जी रहे थे। मेरी जिंदगी के साथ पूरे परिवार के दूसरे सदस्यों की जिंदगी में खलल पड़ चुकी है।
पत्नी पडि़तयों के संगठन और सेव इंडिया फैमिली नागपुर ईकाई के प्रमुख कार्यकर्ता राजेश बखारिया कहते हैं कि यदि पत्नी किसी भी कारण से आत्महत्या करती है तो पुलिस तुरंत केस दर्ज कर आरोपियों को हवालात में ले लेती है। घर घरेलू कलह से तंग आकर पति आत्महत्या करता है तो पत्नी से पूछताछ नहीं होती है। कुछ दिन पूर्व की नंदनवन में एक व्यक्ति से खिलाफ पत्नी ने घरेलू हिंसा मामले केस दर्ज कराया। वह व्यक्ति जेल गया। तुरंत जमानत नहीं होने मिलने से दो सप्ताह बाद जेल से बाहर आया। बाहर आते ही उसने आत्महत्या कर ली। उसके घर वालों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं हुई। श्री बखरिया का कहना है कि पत्नी के प्रताडि़त करने के अधिकतर मामले साल 2000 से तेजी से बढ़े है। इसका प्रमुख जिम्मेदार टीवी पर प्रसारित होने वाले कुछ धारावाहिक हैं। जिनकी अनाप-शनाप कहानी में नकारात्मक छबि वाली महिला पात्रों ने समाज में गलत असर छोड़ा है। श्री बखारिया का कहना है कि पहले विवाह के समय बेटी बिदा करने के बाद लोग कहते थे कि डोली में बिदा गई है अब तो ससुराल से अर्थी ही वापस आएगी। लेकिन आज उल्टा है। लड़की वाले यह समझाकर भेजते हैं कि घर में कोई काम न करें? कोई बोले तो हमसे बताएं। कुल मिलाकार लड़कों वालों में वधु पक्ष के परिवार के अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ा है। जिनसे महिलाओं में अहंम छा जाता है। घरेलू हिंसा देखनी हैं तो स्लम बस्तियों में जाइए। जहां रोज शराब के नशे में पति पत्नी की पिटाई करते हैं। वहां के मामले दर्ज नहीं होते है। अधिकतर मामले मध्यम वर्ग, अपर मध्यम वर्ग और थोड़ा निम्न वर्ग के हैं। हमारा संगठन किसी महिला संरक्षण कानून का विरोध नहीं करता है। पर इसके होने वाले दुरुपयोग को रोकने के लिए पुुरुष आयोग के गठन की मांग करता है। लेकिन सुनने वाले कोई नहीं है।
रविवार, दिसंबर 14, 2008
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