मंगलवार, जनवरी 05, 2010

पुस्तक प्रेम पर भारी पड़ गया बुलडोजर


संजय स्वदेश राष्ट्रीय पुस्तक मेला जो अब मौजूद नहीं है उधर दिल्ली छोड़कर इधर नागपुर आइये. किताबों को पड़ते पाठकों के अकाल के बीच दिल्ली और देश में भले ही पुस्तक मेलों को प्रोत्साहन दिया जाता हो लेकिन इधर नागपुर में ऐसे पुस्तक मेलों को बुलडोजर लगाकर ढहा दिया जाता है और कहा जाता है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि निगम के इन नियमों का पालन नहीं किया गया. संतरानगरी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब महानगर पालिका ने साहित्य प्रेमियों के उत्साह पर पानी फेर दिया। कस्तूरचंद पार्क में गत 1 जनवरी से शुरू राष्ट्रीय पुस्तक मेले में साहित्य प्रेमियों का उत्साह महानगर पालिका से देखा नहीं गया। उसने पुस्तक मेले को उजाडऩे के लिए मंगलवार को बुलडोजर समेत मनपा का तोडू दस्ता भेज दिया गया। पुस्तक मेला न खुले इसके लिए मुख्य द्वार पर तोडू दस्ते की गाडिय़ां खड़ी कर द्वार बंद कर दिया गया। साहित्य प्रेमी पुस्तक खरीदने आए और निराश होकर लौट गए।
10 जनवरी तक चलने वाले इस पुस्तक मेले के अचानक बंद हो जाने से शहर के पुस्तक प्रेमियों में निराशा फैल गई है। हालांकि कस्तूरचंद पार्क मैदान में महानगर पालिका और नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से भी पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई है। लेकिन इस प्रदर्शनी में स्थानीय प्रकाशकों की भरमार होने से पाठकों का रूझान राष्ट्रीय पुस्तक मेले के प्रति ज्यादा था, जहां राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशक विभिन्न विषयों के पुस्तकों के साथ आए थे।
पुस्तक मेला समिति नई दिल्ली एवं समय इंडिया ने गत वर्ष 2009 जून माह में नागपुर के कस्तुरचंद पार्क में विगत 10 वर्षों की तरह इस साल भी राष्ट्रीय पुस्तक मेले का आयोजन करने के लिए अनुमति मांगी थी। समिति के सचिव तथा पुस्तक मेले के आयोजक चंद्रभूषण ने बताया कि मेले का आयोजन करने के लिए 6 विभागों से अनुमति, नाहरकत प्रमाण पत्र (एनओसी) की दरकार थी। इसमें से पुलिस उपायुक्त विशेष शाखा नागपुर, पुलिस उपायुक्त (वाहतूक) नागपुर, कार्यकारी अभियंता (महाराष्ट्र राज्य विद्युत कंपनी) नागपुर, सहा. संचालक नगर रचना मनपा, नागपुर, आरोग्य अधिकारी मनपा, नागपुर ने मेले के लिए अनुमति प्रदान कर दी। लेकिन मनपा के मुख्य अग्निशामक अधिकारी ने एनओसी नहीं दिया।
मेला समिति के सचिव चंद्रभूषण ने कहा कि वे पिछले 10 वर्षों से नागपुर शहर में राष्ट्रीय पुस्तक का आयोजन कर रहे है। लेकिन इस वर्ष मनपा की ओर से कस्तूरचंद पार्क में 2 जनवरी को राष्ट्रीय पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसी कारण उन्हें मनपा के मुख्य अग्निशामक अधिकारी की ओर से अनुमति नहीं दी गई। इसके लिए उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालन ने मेला समिति की अर्जी पर सुनवाई के लिए 6 जनवरी का समय दिया। इसी बीच मेले के पांचवें दिन उच्च न्यायालय में सुनवाई के एक दिन पूर्व मंगलवार की सुबह 11 बजे मनपा का अतिक्रमण विभाग बुलडोजर के साथ पुस्तक मेले को उखाडऩे के लिए कस्तूरचंद पार्क पहुंच गया। भारी पुलिस बंदोबस्त, मनपा कर्मचारी तथा बुलडोजर को देखकर देश के कोने-कोने से नागपुर पहुंचे पुस्तक विक्रेता सकते में पड़ गए। इस खबर को कवर करने तथा नागपुर के नाम को कलंकित कर देने वाली इस कार्रवाई को कैमरे में कैद करने के लिए प्रिंट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी पहुंची। इस बीच नगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी उमेश चौबे यहां पहुंच गए। अनेक पत्रकारों तथा उमेश चौबे ने मनपा के इस कार्रवाई पर खेद जताते हुए प्रशासन से अपना निर्णय बदलने की प्रार्थना की। लेकिन शासकीय अधिकारी टस से मस नहीं हुए। मेले के आयोजक चंद्रभूषण ने प्रशासनिक अधिकारियों से कहा कि यह मामला अदालत में चल रहा है, अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी, उस में जो फैसला होगा उसे स्वीकार कर लिया जाएगा, लेकिन चंद्रभूषण की बात को हवा में उड़ाते हुए राष्ट्रीय पुस्तक मेला को चलने नहीं दिया गया। वरिष्ठ समाजसेवी उमेश चौबे ने इस घटना को खेदजनक बताते हुए कहा कि मामला व्यक्तिगत हो गया है और व्यक्तिगत दुश्मनी की इस देश में कोई जगह नही है। उन्होंने कहा कि यहां प्रजातंत्र है कोई औरंगजेब का कानून यहा नहीं चल रहा है। मेले में साहित्य खरीदने आए पाठकों को यहां से निराश होकर जाना पड़ा। कई पाठकों ने कहा कि मनपा की इस तरह की कार्रवाई से नागपुर का नाम राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम होगा। मामला साहित्य जगत से जुड़ा होने के कारण मनपा की यह कार्रवाई साहित्य पर हमला करने जैसी बताई जा रही है।

बुलडोजर संस्कृति मान्य नहीं
कलाकारों, साहित्यकारों ने की तीव्र भर्त्सना
शहर के प्रबुद्ध कलाकारों, कथाकारों, रंगकर्मियों, कवि, लेखकों ने कस्तूरचंद पार्क मैदान पर आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेला को बुलडोजर चलाकर बंद करने के मनपा के प्रयासों की तीव्र भत्र्सना की है। इन बुद्धिजीवियों का कहना है कि आजाद देश में बुलडोजर संस्कृति की जितनी निंदा की जाए, कम है। नागपुर के कुछ प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी अहं की तुष्टि के लिए पूरे देश में नागपुर की छवि को कलंकित कर दिया है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। इन अधिकारियों का कृत्य आपातकाल के दौरान किए गए अत्याचार की तरह है। नागपुर में पिछले 10 वर्षों से पुस्तक मेला का आयोजन किया जा रहा है। मनपा का यह कृत्य वाचन-पठन संस्कृति को ही समाप्त करने का प्रयास है। पुस्तक मेला अपने मूल स्वरूप में कस्तूरचंद पार्क मैदान में ही लगना चाहिए। उमेश चौबे, राजेंद्र पटोरिया, मधुप पांडेय, डा. सागर खादीवाला, हरीश अड्यालकर, अनिल मालोकर, राधेश्याम महेंद्र, बाबा रॉक, सुरेश जैन, मनीष वाजपेयी, सुनील ककवानी, शंकर मिश्रा, रमेश गुप्ता, अविनाश बागड़े, डा. शशिकांत शर्मा, गोपाल गुप्ता, प्रज्ञा मेहता, सुमित कुमार 'आतिश', प्रकाश काशिव, मधु गुप्ता, नरेंद्र परिहार, प्रभा मेहता, रविशंकर दीक्षित सहित कई कलाकारों, साहित्यकारों ने मनपा की इस करतूत का कड़ा विरोध किया है।

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