गुरुवार, जनवरी 28, 2010

बीटी बैंगन के विरोधियों ने जयराम रमेश को घेरा

शवयात्रा निकाली, पुतला जलाया
निर्णय 15 फरवरी से पहले : जयराम रमेश
संजय स्वदेश
नागपुर।
बी.टी. बैंगन पर नागपुर में आयोजित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की जनसुनवाई में हिस्सा लेने आए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का बी.टी. बैंगन के विरोधियों ने रास्ता रोक कर नारेबाजी करते हुए देसी बैंगन की शवयात्रा निकाली और पुतला फंूका। प्रदर्शन को देखते हुए पर्यावरण मंत्री खुद विरोधियों का समझाने के लिए कार से उतरे।
उत्तर अंबाझरी रोड स्थित आई.एम.ए. सभागृह बी.टी. बैगन की जनसुनवाई के दौरान खचाखच भरा हुआ था। इसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से आए वैज्ञानिक, किसान, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। कई लोगों के तर्क सुनने के बाद पर्यावरण मंत्री ने पत्रकारों को बताया कि बी.टी. बैंगन पर अपना निर्णय वे 15 फरवरी से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप देंगे। जनसुनवाई के दौरान अधिकतर लोगों ने बी.टी. बैंगन के विरोध में तर्क देते हुए इसे देसी बैंगन और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया। भारत में बी.टी. बैंगन के बीज बेचने वाली कंपनी कृभको के वैज्ञानिकों ने बी.टी. के पक्ष में तर्क दिया। विदर्भ के किसान नेता शरद जोशी ने बी.टी. के पक्ष में तर्क दिया। उन्होंने कहा कि पारंपरिक बीज पद्धति और उत्पादन में तकनीक का उपयोग आज जरूरत है। शरद जोशी के पक्ष में 5 जीप और 5 टैक्सी में लोग आए थे। शरद जोशी के भाषण के दौरान वे बी.टी. के पक्ष में नारे लगा रहे थे। कॉटन रिसर्च के वैज्ञानिकों ने भी बी.टी. बैंगन के पक्ष में तर्क रखा। हाईस्कूल तक के पाठ्यक्रमों में जैविक खेती के विषय में पढ़ाया जाता है। फिर यहां रासायनिक उपयोग से तैयार बीज से खेती करने की बात की जा रही है। इससे एक विरोधाभास उत्पन्न हो रहा है।
कीड़े मारने की दवा के लिए हो शोध
लेकिन जनसुनवाई के दौरान बी.टी. बैंगन विरोधियों की आवाज बुलंद रही।
कृषि विशेषज्ञ शरद निंबालकर ने कहा कि देश के किसान वर्षों से देसी बैंगन उगा रहे हैं। केवल कीड़े मारने के लिए पूरे बीज को बदल कर उसे अनुवांशिक बनाना ठीक नहीं है। अभी जो बीज तैयार हुआ है कि उस पर 10-15 साल का ही शोध हुआ है। इसका असर अगली पीढ़ी पर क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है। केवल वैज्ञानिक तरीके से कीड़े मारने के लिए बीज बदलने के बजाय देश के वैज्ञानिकों को नई दवाओं की खोज करनी चाहिए। इससे देसी बीज के उपयोग से ही उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और किसानों को लाभ हो सकता है।
मनुष्य की प्रजनन क्षमता पर असर
मध्यप्रदेश से आए सामाजिक कार्यकर्ता जयंत वर्मा ने कहा कि बी.टी. के रूप में ऐसा बीज दिया जा रहा है जो कीटनाशक होगा। लेकिन उसका मानव स्वरूप पर क्या असर पड़ेगा, इसका परीक्षण नहीं किया गया है। विदर्भ में बी.टी. कॉटन उगाने वाले किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की। लेकिन इस पर जनसुनवाई नहीं हुई। फिर बी.टी. पर जनसुनवाई क्यों हो रही है? डा. स्नेहलता वर्मा ने कहा कि अनुवांशिक आधार पर तैयार बी.टी. बैंगन से मनुष्य की प्रजनन क्षमता के अलावा शरीर के अन्य भागों पर भी असर पड़ सकता है।
तीन घंटे की सुनवाई में विरोध ज्यादा
तीन घंटे की जनसुनवाई में एक घंटा किसानों के लिए, 45 मिनट वैज्ञानिकों के लिए, बाकी समय सामाजिक कार्यकर्ता व अन्य के लिए निर्धारित था। ज्ञात हो कि बीटी बैंगन यानी जेनेटिकली मोडिफाइड बैंगन को बीते साल जैसे ही पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने किसानों तक पहुंचाने का फैसला किया, किसानों और कार्यकर्ताओं ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। सरकार को फरवरी तक बीटी बैंगन के मामले में अंतिम निर्णय लेना है इसलिए पर्यावरण मंत्री कई राज्यों का दौरा कर रहे हैं।

अगली सुनवाई चंडीगढ़ में
देश भर में छह जगहों पर जनसुनवाई होनी है। भुवनेश्वरी, कोलकाता और अहमदाबाद के बाद नागपुर में जनसुनवाई के बाद चंडीगढ़, बंगलुरु और हैदराबाद में जनसुनवाई आयोजित होनी है। हर जनसुनवाई में पर्यावरण मंत्री का विरोध हो रहा है। विरोध में किसान बढ़-चढ़ का हिस्सा ले रहे हैं। वैज्ञानिकों का एक तबका भी इस बैंगन का विरोधी है।
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