नक्सल प्रभावित सभी राज्यों के साथ मिलकर नक्सली ठिकानों पर एक साथ हल्ला बोलने की रणनीति बदल दी गई है। अब नक्सलियों की हर तरह की सप्लाई पूरी तरह ठप कर उन्हें उनके घर में कैद करने की मुहिम चलाई गई है। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में दंडकारण्य इलाके से इसकी शुरुआत कर दी गई है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, तय रणनीति बदलने की एक बड़ी वजह है झारखंड और पश्चिम बंगाल की सरकार में इच्छाशक्ति और अपेक्षित सहयोग में कमी। राज्यों के साथ नक्सल विरोधी अभियान का समन्वय करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अभी यह अभियान उस अंदाज में नहीं चल रहा जैसी योजना गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने बनाई थी। फिलहाल तय किया गया है कि एक साथ सभी नक्सल प्रभावित इलाकों में उन्हें घुसकर मारने के बजाये पहले उन्हें चारों ओर से घेरकर उनकी सप्लाई लाइन को पूरी तरह तोड़ दिया जाए। पहले चरण में दंडकारण्य में नक्सलियों की जड़ें काटी जाएंगी। इसके लिए छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव और कांकेर जिले के साथ ही महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की घेराबंदी की गई है। दोनों राज्यों में की जा रही इस घेरेबंदी के साथ ही यह भी तय किया जा रहा है कि यहां बढ़ते दबाव को देखते हुए नक्सली इससे सटे आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के इलाकों में न जा सकें। इसके लिए अब बड़ी संख्या में राज्य पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस का स्पेशल एक्शन ग्रुप और कोबरा बल के अलावा अर्धसैनिक बलों के जवान भी उपलब्ध हैं, जो एक तरह से अभियान वाले इलाके के चारों ओर सुरक्षा दीवार का काम कर रहे हैं। इस समय नक्सल विरोधी अभियान के लिए 58 हजार जवान लगे हुए हैं। इसके अलावा जल्दी ही अर्धसैनिक बलों के और 17 हजार जवान इनकी मदद के लिए उतारे जा सकते हैं। इस बार अभियान में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मदद के लिए 10 ध्रुव एडवांस्ड लाइट हेलीकाप्टर और 80 स्पेशलिस्ट डाक्टर भी लगाए गए हैं। पिछले अभियान में सुरक्षा बलों को हुए नुकसान को देखते हुए इस बार रणनीति भी थोड़ी बदली गई है। नक्सलियों के चारों तरफ घेरा डालने के बाद खुफिया सूचना के आधार पर खास ठिकानों पर हल्ला बोला जाएगा। पूरी योजना इस तरह बनाई जानी है जिससे उन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को कोई समस्या न हो और न ही नक्सलियों को उनकी सहानुभूति मिल सके।
गड़चरौली इलाके के नक्सल सूत्रों का कहना है कि उनकी घेराबंदी की नई सरकारी नीति के खिलाफ लडऩे के लिए उनके समूहों की देर रात बैठक शुरू हो गई।
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