शनिवार, मई 29, 2010

एक कुलगुरु ने नौकरी दी, दूसरे से नौकरी ली


नागपुर जेल में हत्या के दंड में सेवा काट चुकी हैं संध्या

संजय स्वदेश
नागपुर। छह माह पूर्व जब यशवंतराव चौहान मुक्त विद्यापीठ के नागपुर केंद्र ने जब नागपुर जेल में हत्या की सजा काट चुकी एक महिला कैदी को नौकरी पर रखा, तो यह उम्मीद जगी थी कि सजा काट चुके लोगों को भी समाज के मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। लेकिन छह माह की सेवा के बाद इस महिला को नौकरी से हटा दिया गया है। जब उसे नौकरी पर रखा गया था, तब छह माह की सेवा के बाद उसे नियमित करने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन छह माह के अंदर विद्यापीठ के कुलगुरु सुधीर गवाने के बदलने से विद्यापीठ के विचार भी बदले लगे। नये कुलगुरु डा. कृष्ण कुमार को एक सजा काट चुकी महिला की सेवा रास नहीं आ रही है। लिहाजा, उन्होंने उसकी सेवा का स्थायी करने से इनकार कर दिया है। लिहाजा, छह माह पूर्व नियुक्त महिला सड़क पर आ गई है। भले ही वर्तमान कुलगुरु डा. कृष्ण कुमार के विचार पिछले कुलगुरु सुधीर गवाने के विचार अलग हो, लेकिन इससे समाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति विद्यापीठ की छबि खरा हो रही है। तत्कालीन कुलगुरु सुधीर गवाने ने नौकरी नियमित करने का आश्वसन दिया था, यह आश्वसन उनका निजी नहीं, विद्यापीठ की ओर से था। छह माह में ही नौकरी सेवामुक्त हुई संध्या जाधव निराश मन से कहती है कि इससे अच्छा होता कि मुझे नौकरी ही नहीं दी जाती। एक बड़े कार्यक्रम में नौकरी देकर विद्यापीठ ने अपनी पीठ तो थपथपा ली। लेकिन छह माह बाद ही नाता तोड़ दिया।
ज्ञात हो कि करीब छह माह पहले यशवंतराव चौहान मुक्त विद्यापीठ के तत्कालीन कुलगुरु ने नागपुर जेल में विभिन्न जुर्म में सजा काट रहे कैदियों को शिक्षित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए नौकरी देने की पहल की थी। इस पहल में नागपुर जेल में हत्या की सजा काट रही संध्या प्रकाश जाधव ने जेल में ही रहकर मुक्तविद्यापीठ से स्नातक तक पढ़ाई की। जेल में ही भव्य समारोह आयोजित कर करीब दर्जन भर कैदियों को शैक्षिणक डिग्री बांटी गईं। मंच से संध्या जाधव को विद्यापीठ के नागपुर केंद्र में सहायक पद पर नियुक्त करने की भी घोषणा की गई। तत्कालीन कुलगुरु ने सजा काट चुकी महिला को नौकरी पर रख कर समाज में यह मिशाल कायम की कि लोगों को सजा काट चुके दोषियों को समाज से मुख्यधारा में जोडऩे के लिए सकारात्मक होना चाहिए। दूसरे संस्थानों को भी ऐसी पहल कर ऐसे लोगों को नौकरी पर रखना चाहिए जिससे कि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर समाजहित के लिए कुछ कर सकें। यूं की उपेक्षित रखने से सजा काट चुके लोग फिर से अपराध की दुनिया में शामिल हो जाते हैं और समाज के लिए बाधा उत्पन्न करते हैं।
संध्या प्रकाश जाधव का कहना है कि वह 13 नवंबर, 2009 जेल से रिहा हुई और 16 नवंबर, 2009 को विद्यापीठ के नागपुर केंद्र में सहायक पद नियुक्ति हुई। जाधव का कहना है कि नियुक्त के समय यह नहीं बताया गया कि उसकी नौकरी अल्पकालीन है। जिस समय नियुक्ति पत्र दिया गया, उस समय कहा गया कि मुझे साठ साल की उम्र तक सेवा करने का मौका दिया जाएगा। प्रेस के सामने बड़ी-बड़ी ढेर सारी बाते कह कर विद्यापीठ ने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा ली। लेकिन अचानक छह माह बाद सेवा समाप्त करने मैं सड़क पर आ गई हंू। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मैंने वर्तमान कुलपति डा. कृष्ण कुमार से फोन पर बातचीत करना चाही, लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें अपना नाम बताया, उन्होंने झट से फोन काट दिया। संगीता ने बताया मेरी नियुक्ति सहयाक पर पर हुई, लेकिन मुझे चतुर्थवर्गीय कर्मचारी का भी कार्य करवाया गया। कभी-कभी गाड़ी से आए पुस्तकों के बंडल उठवाये गये, यहां तक पानी पीलाने का भी कार्य करना पड़ा। इससे अच्छा होता कि विद्यापीठ चतुर्थ श्रेणी में ही मेरी नियिमित नियुक्ति करता, तो मन को संतोष होता। मेरी इतनी फजीहत तो नहीं होती।
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यशवंतराव चौहान मुक्तविद्यापीठ के नागपुर केंद्र के संचालक अरविंद बोंद्रे का कहना है कि सह यही बात है कि जिस समय संध्या जाधव को नियुक्त किया गया था, उस समय तत्तकालीन कुलपति ने उसकी सेवा नियमित करने का आश्वासन दिया था। संगीता की सेवा को नियमित करने के लिए मैंने प्रस्ताव नासिक स्थित विद्यापीठ मुख्यालय में भेज दिया था, लेकिन वहां से प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिली।

मंगलवार, मई 25, 2010

दैनिक १८५७ में २५ मई २०१० को प्रकाशित

संघ शिक्षा वर्ग में बढ़ रहे हैं प्रवासी भारतीय


संजय स्वदेश
नागपुर।
संघ शिक्षा वर्ग में प्रवासी भारतीयों की संख्या बढ़ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग प्रशिक्षण शिविर में इस वर्ष 881 स्वयंसेवक प्रशिक्षण ले रहे हैं। इनमें अमेरिका, श्रीलंका एवं नेपाल से आये भारतीय मूल के 6 स्वयंसेवक भी हैं। तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के वर्ग कार्यवाह अशोक सोनी व संघ शिक्षा वर्ग के अखिल भारतीय पालक अधिकारी वी. भैया ने पत्रकारों को बताया कि बेंगलूर में 60 स्थानों पर लगने वाली शाखाओं में बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजीनियर शामिल हो रहे हैं। नौकरीपेशा स्वंयसेवकों की सुविधा को देखते हुए शाखाओं के समय को भी लचीला बनाया जा रहा है एवं अब रात 8 बजे से भी शाखाएं लगाई जा रही हैं।

वी.भैया ने कहा कि तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण ले रहे 881 स्वयंसेवकों में से 25 पी.एचडी, 6 डॉक्टर, 6 अभियंता, 23 वकील, 172 शिक्षक, 4 पत्रकार एवं एक सी.ए. एवं 203 स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने बताया कि तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण नागपुर में 9 मई को शुरू हुआ था। इसका समापन 7 जून को होगा । सरसंघचालक डा.मोहन भागवत स्वंयसेवकों की सलामी लेंगे। असम राज्य के पूर्व कैबिनेट सचिव जे.पी.राजखोवा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। उन्होंने बताया कि मंगलौर विमान हादसे की खबर मिलते ही 100 से अधिक स्वंयसेवकों ने घटनास्थल पर तत्काल पहुंच कर राहत एवं बचाव कार्यों में जिला प्रशासन की मदद की।
विकल्प मिले तो बदल जाएगी स्वयंसेवकों की बेल्ट गो-धन बचाने की राष्ट्रीय मुहिम के अतंर्गत अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 70 साल से स्वयंसेवकों के गणवेश का अहम हिस्सा रही लाल रंग की चमड़े की बेल्ट को बदलने जा रहा है। वर्ग कार्यवाह अशोक सोनी ने बताया कि स्वयंसेवकों के लिए प्रस्तावित नये बेल्ट में चमड़े की जगह अन्य किस चीज का इस्तेमाल किया जाए, इस पर विचार चल रहा है। उन्होंने बताया कि स्वयंसेवकों के गणवेश में इसके अलावा अन्य किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा।

रविवार, मई 23, 2010

घटनाओं की जड़ तक पहुंचती है लघु पत्रिकाएं


'लघु पत्रिकाओं पर तत्कालिक प्रतिक्रियाÓ पर कार्यक्रम आयोजित

नागपुर। लघु पत्रिकाएं सामाजिक व राजनितिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए साहित्यिक चेतना जगाने का काम कर रही है। लघु पत्रिकाओं से जहां नवलेखन पल्लवित होता है, वहीं सामान्यजन की आशा-आकांक्षओं को अभिव्यक्ति मिलती है। घटनाओं की जड़ तक पहुंचकर सच्चाई को उजागर करने का काम कर रही हैं पत्रिकाएं। यह बात वक्ताओं ने लोहिया अध्ययन केंद्र की ओर से साहित्यिक, वैचारिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में 'लघु पत्रिकाओं पर तत्कालिक प्रतिक्रियाÓ कार्यक्रम में कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डा ओमप्रकाश मिश्रा ने की। वक्ता के रुप में युवा पत्रकार उमेश यादव, चित्रकार सुभाष तुलसीता व कवि कृष्णकुमार द्विवेदी उपस्थित थे। सुभाष तुलसीता ने कहा कि समाचारपत्रों में रोज नई घटनाएं होती है और पुरानी पीछे छुट जाती है, जबकि लघु पत्रिकाएं उप घटनाओं की जड़ों तक पहुंचकर सच्चाई उजागर कसने का काम करती है। उन्होंने 'नई आजादी उदघोषÓ पत्रिका की पड़ताल करते हुए बताया कि इसमें जनसरोकारों से जुड़े मुद्दे उठाए गए है। 'लक्ष्मीनारायण मिश्र ने कार्पोरेटरी दानव लील रहा है बचपनÓ आलेख में राजस्थान में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में कार्यरत बाल मजदूरों का शोषण, गुजरात में कपास के ढेर पर जहरीली दवाओं का छिड़काव करने वाले बच्चों, के शरीर पर दवाओं से होनेवाला परिणाम आदि को उजागर किया है। साथ ही केरल मेपेप्लिको के खिलाफ गांववासियों के आंदोलन और माओवादी समस्याओं को भी उठाया गया है। सुभाष ने कहा कि यह पत्रिका लोगों को जनहित से जुड़े मुद्दों से जोड़ती ही नहीं, बल्कि कुछ करने के लिए प्रोत्साहित भी करती है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा ओमप्रकाश मिश्रा ने लघुपत्रिकाओं पर संवाद को अनूठा कार्यक्रम बताते हुए कहा कि लघु पत्रिकाओं का हमारे सामाजिक व राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। आजादी के संघर्ष और स्वतंत्रता के बाद लघुपत्रिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होने कहा कि 60 के दशक में लघुपत्रिकाओं का आंदोलन चला लेकिन इसे गति नहीं मिली। लघु पत्रिकाओं से नवलेखन पल्लवित होता है। उन्हे प्रोत्साहन मिलता है।
आशु सक्सेना ने कहा कि लघु पत्रिकांए ज्वलंत मुद्दों पर विस्तृत जानकारी देकर हमारे ज्ञान में वृद्धि करती है। उन्होंने 'सामयिक वार्ताÓ पत्रिका का अवलोकन करते हुए कहा कि इसमें दंतेवाड़ा में नक्सली हमले की नीति और वास्तविकता, भाषा, विवाद, शिक्षा आदि विषयों पर महत्वपूर्ण आलेख है। उन्होंने लघु पत्रिकाओं के अस्तित्व को टिकाए रखने पर बल दिया। इस अवसर पर कृष्णकुमार द्विवेदी ने कहा कि आम आदमी से जुड़े विषयों पर रचनाओं के कारण लघु पत्रिकाएं पठनीय होती है। रचना किसी भी विधा में ही उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए।
उमेश यादव ने कहा कि लघु पत्रिकाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने प्रतिष्ठित पत्रिका 'कथनÓ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पत्रिका कहानी, कविता व आलेखों के माध्यम से पत्रकारिता को आगे बढ़ा रही है। वैचारिक पत्रकारिता के संकट के दौर में लघुपत्रिकाएं विचार की पत्रकारिता कर रही हैं। लघुपत्रिकाओं में नवलेखकों को भी स्थान दिया जाता है।
प्रास्ताविक लोहिया अध्ययन केंद्र के सचिव हरीश अड्यालकर, संचालन टीकाराम साहू 'आजादÓ तथा आभार प्रदर्शन माधवराव दादिलवार ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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दैनिक १८५७ में २३ मई 2010 को प्रकाशित

शनिवार, मई 22, 2010

प्रकाशित दैनिक १८५७ में २२ मई को

'लैला खौफ से टूट रहे है आम


फलो के राजा पर 'लैलाÓ का खौफ

संजय स्वदेश
नागपुर।
गत दिनों आंध्रप्रदेश में आया तूफान 'लैलाÓ के कहर का आम जनजीवन पर तो पड़ा ही है। लेकिन तूफान थमने के बाद उसका खौफ अभी कम नहीं हुआ है। लैला से खौफ का असर यहां के आम पर पड़ रहा है। आंध्रप्रदेश में बहुतायत आम उत्पादन होता है। यहां के आम महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, यूपी, पंजाब, हरियाणा आदि क्षेत्रों तक खपत होते हैं। इस वर्ष भीषण गर्मी से आत्म उत्पादक किसानों पर का मन सूख चुका था। क्योंकि दिसंबर माह के करीब आम के पेड़ों पर जिनते मंजर आए थे, वे भीषण गर्मी से झड़ गए। महज तीस प्रशित मंजर की फल बने। फिर भी किसानों को उम्मीद थी कि बाकी बचे तीस प्रतिशत मंजर में आने वालें आमों से ही उन्हें अच्छी रकम मिल जाएगी। लेकिन अचानक आए लैला ने उनके इस मंसूबों पर भी पानी फेर दिया।
आंध्र प्रदेश के आम उत्पादाकों के लिए सबसे बड़ी थोक नजदकी मंडी नागपुर है। लैला के खौफ का असर नागपुर के कलमना मार्केट स्थित फल बाजार पर साफ दिख रहा है। इस मंडी में सबसे ज्यादा आम आंध्र पदेश से आता है। पर इन दिनों वहां तूफान के कहर से डरे किसानों ने आम के फल समय से पहले ही तोड़ कर नागपुर की मंडी में भेजना शुरू कर दिया है। कलमना मार्केट के फल व्यापारियों की मानें तो लैला आने से नागपुर की मंडी में अचानक आमों की आवक बढ़ गई है। आवक बढऩे से आम के थोक भाव में भी गिरावट आई है। कलमना मार्केट के फल व्यापारी राजेश छाबरानी ने बताया कि आम दिनों जहां हर दिन अभी तक जहां 150 से 200 गाडिय़ों का माल आता था, वहीं लैला के आने के बाद यहां 200 से 250 गाड़ी माल आने लगा है। इससे भाव में एक से तीन हजार रुपये प्रति टन की गिरावट आई है। आश्चर्य की बात है कि थोक बाजार में आम सस्ता होने के बाद भी खुदरा बाजार में बिकने वाले आम के दामों में कोई खास अंतर नहीं आया है। छावरानी ने बताया कि आंध्र प्रदेश के आम उत्पादकों के लिए नागपुर बहुत बड़ी मंडी है। कलमना मार्केट में अमूमन 15 मार्च से 15 जून तक आमों का बहार रहता है। फिलहाल यह अंतिम सिजन चल रहा है। लैला के डर से टूटते आमों को देखकर लगता है कि 15 जून तक चलने वाला जून के शुरू होते ही समाप्त हो जाएगा।
भीषण गर्मी का असर आम पर
इस वर्ष भीषण गर्मी का असर आम उत्पादन पर भी पड़ा है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार आम के मंजर ज्यादा थे। किसानों को पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने फल की उम्मीद थी। इस वर्ष वारिश के अभाव और भीषण गर्मी के कारण ज्यादातर मंजर गिर गए। करीब 30 प्रतिशत मंजर ही फल बनें। भीषण गर्मी और घटते भूजल के कारण पहले जितने समय में आम जिस आकार में होते थे, उतने बड़े आकार इस वर्ष नहीं आ पाये। इस वर्ष किसानों को कम वजन के आम होने से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। रही-सही कसर लैला ने पूरी कर दी है। आनन-फानन में वे अपने फलों को जल्दी-जल्दी तोड़ कर मंडी में भेज रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं तूफान से उनके सारे फल नष्ट न हो जाए।
आम पकाना महंगा
कलमना बाजार में ज्यादातर आम कच्चे आते हैं। एक व्यापारी ने बताया कि कारबाइट से एक ट्रक आम को पकाने में करीब 5 हजार रुपये का खर्च आता है। दूर-दराज में कच्चे आम ही जाते हैं। इसलिए अधिकतर व्यापारी कच्चे आम की ही खरीदारी करते हैं और उसे अपने गोदाम में पका कर खुदरा बाजार में बेचते हैं। सरकार ने कारबाइट से आम पकाने पर पाबंदी लगा दी है। व्यापारियों का कहना है कि बिना कारबाइट का आम नहीं पक सकता है। इसके पकाने की तरीके में बदलावा आया है। गोदाम के फर्श पर कारबाइट के पावडर डाल दिया जाता है। उसके उपर पेपर बिछा दिया जाता है या घासफूस डाल दिया जाता है। फिर आम को उस पर रखा जाता है। इस तरह कारबाइट की गर्मी से आम जल्दी पक जाते हैं। शुक्रवार को संबंधित विभाग के अधिकारियों ने कलमाना मार्केट में भ्रमण कर यह जायजा लिया कि कहीं यहां कारबाइट से आम तो नहीं पकाया जा रहा है। लेकिन वे किसी को कारबाइट से आम पकाते हुए नहीं पकड़ पाए, जबकि बाजार में बिकने वाले सभी पके आम कारबाइट से पके होते हैं।

खास बात
आंध्रप्रदेश के वारंगल, विजयवाडा विशेषकर तेलंगाना क्षेत्र में आमों का भारी उत्पादन होता है।
आंध्रप्रदेश के आमों की सबसे बड़ी खपत मंडी नागपुर है।
नागपुर से आम महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, नेपाल तक जाते हैं।
आम की करीब साढ़े तीन सौ प्रजातियां है।
नागपुर मंडी में सबसे ज्यादा आने वाले आम तोतापुरी और बैगनफली है।
इस वर्ष कलमना बाजार में अधिकतम 36 हजार हजार रुपये टन के दर से आम बिके।
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शनिवार, मई 15, 2010

यूएलसी और सात-बारा को बीच अटकी किसानों की जमीन

खेती के लिए कर्ज देने से कतरा रहे हैं बैंक
फसल नष्ट होने पर नहीं मिल रहा है मुआवजा

संजय कुमार
नागपुर।
राज्य सरकार की ओर से यूएलसी कानून समाप्त होने बाद भी जिले के करीब दो हजार किसान किसी ने किसी कारण अपनी ही जमीन का मनमानी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। पहले से ही सात बारा में चढ़ी जमीनों को जब यूएलसी में शामिल किया गया तब तो किसानों को इस बात को लेकर बड़ी खुशी हुई थी, उनके जमीन को अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन धीरे-धीरे इस कानून का खामियाजा उभर का सामने आया। सूत्रों की मानें तो सात-बारा की जमीन यूएलीसी में आने से सैकड़ों किसानों की हजारों एकड़ खेतियां गैर-कृषि योग्य हो गईं। लेकिन कसानों के जमीनें उनकी उनकी मुहमांगी कीमतों में भी नहीं बिकीं। इसलिए इन खेतों पर कृषि कार्य जारी रहा। लेकिन अब इन जमीनों पर कृषि कार्य के लिए बैंकों ने किसानों को कर्ज देने से पल्ला झाड़ लिया है। बैंक यह कह कर किसानों को कर्ज नहीं दे रहे हैं कि उनकी जमीन यूएलसी में आने से वे गैर-कृषि जमीन हो चुकी हैं। इसके साथ ही इन जमीनों में पर हुई खेती में गत महीनों में हुए प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट फसलों के मुआवजे के रूप में सरकार से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। सरकारी अमले ने भी यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यूएलसी जमीन खेती के लिए नहीं है। इसलिए उस जमीन पर नष्ट हुई फसल की भरपाई सरकार नहीं कर सकती हैं। विदर्भ जन आंदोलन समिति के प्रमख किशोर तिवारी ने बताया कि दरअसल सरकार का यह कानून किसानों के लिए था ही नहीं। बिल्डरों ने पहले ही सैकड़ों एकड़ कृषि की जमीन खरीद ली थी। फिर बाद में सरकार पर दवाब डाल कर उसे यूएलसी में करवा लिया। जिन किसानों की जमीन शहरों से बहुत दूर थी, वे भी इस कानून के चंगुल में बुरी तरह से फंस चुके हैं। फार्म हाऊस के रूप में भी ये जमीने नहीं बिक रही हैं। वहीं शहर के समीप स्थित खेती के जमीनों को किसानों ने पहले की खरीद लिया था। कानून का लाभ उन्हें ही ज्यादा मिला है। पहले से ही किसान खेती की जमीन व्यवसायिक होने से उसकी कीमत बढ़ तो गई, लेकिन ग्राहक नहीं मिल रहे रहे हैं। जब तक जमीन बिक नहीं रही है, तब तक खेती कार्य जारी है और इस खेती पर सरकार और बैंकों का अपेक्षित सहायोग नहीं मिलपा रहा है।
जानकारों की मानें तो यूएलसी कानून समाप्त करने के कुछ ही दिन पहले सरकार ने पारशिवनी के लगभग 350 किसानों की भूमि के सात-बारा पर यूएलसी का नाम चढ़ा दिया था। नाम दर्ज होने के उन्हें बुआई के लिए कर्ज से वंचित होना पड़ रहा है। इसको लेकर स्थानीय विधायक आशीष जैसवाल ने एक आंदोलन भी शुरू किया था। तब सरकार ने सात-बारा से यूएलसी का नाम हटाने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया।
ज्ञात हो कि वर्ष 1976 में राज्य सरकार ने यूएलसी कानून लागू किया था। इसके बाद राज्य में बड़े पैमाने पर यूएलसी कानून अंतर्गत जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। पारशिवनी तहसील के खंडाला, मिरज, कांदरी, सिरोहा, कन्हान की लगभग 750 एकड़ भूमि यूएलसी कानून के तहत अधिग्रहीत की गई थी। अधिग्रहण के समय यह कहा गया था कि इसका उपयोग औद्योगिक कार्य के लिए होगा। लेकिन अब इन जमीनों पर औद्योगिकीकरण का विकास नहीं हो पाया तो इन्हें यूएलसी से मुक्त कर फिर से कृषि क्षेत्र घोषित कर दिया गया। लेकिन रिकार्ड में सात-बारा के साथ-साथ यूएलसी के नाम इन खेतियों के दर्ज होने से किसान परेशानियों में फंस गए हैं। नियमानुसार उनकी जमीन न औद्योगिक कार्य के लिए रही और न ही कृषि कार्य के लिए।

प्रकाशित दैनिक १८५७ में १५ मई २०१०

मंगलवार, मई 11, 2010

संघ परिवार वाले इतने कपटी हो सकते हैं : सहाय


लोभियों के जाल में फंसा झारखंड, राज्यपाल शीघ्र दखल लें : सहाय


नागपुर। झारखंड आज लोभियों के जाल में बुरी तरह फंस चुका है। पिछले 20 दिनों से वहां सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। अनिश्चित राजनीतिक स्थितियों के बीच राज्यपाल को दखल लेना जरूरी हो गया है। यह कहना है केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री सुबोधकांत सहाय का। वे सोमवार की शाम नागपुर में पत्रकारों से चचा्र कर रहे थे। सहाय ने कहा कि लोभियों के जाल में फंस चुके झारखंड राज्य का एक-एक अंग लोभ नोंच रहे हैं। भाजपा वहां जिस तरह का राजनीतिक खेल खेल रही है, उससे उसका लोभी चेहरा पहली बार उजागर हुआ है। भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर रही है। यह पहली बार देखने में आया है कि संघ परिवारर वाले इतने कपटी हो सकते हैं।
सहाय ने कहा कि बिहार से अलग होने पर झारखंड राजस्व तथा विद्युत उत्पादन में सरप्लस था, लेकिन पिछले 10 में से 8 वर्षों तक झारखंड में भाजपा की सरकार ने झारखंड को काफी पीछे ले जाकर छोड़ दिया है। पहले झारखंड के 3 जिलों में ही नक्सलवाद था, आज वह 24 जिलों में फैल चुका है। आज भाजपा झारखंड के साथ घिनौना मजाक कर रही है। झारखंड के साथ ही बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड आज कहां से कहां पहुंच गए लेकिन झारखंड लगातार पीछे जा रहा है। भाजपा को इसका प्रायश्चित करना ही होगा। आज भाजपा इस प्रयास में है कि जो भी उसके स्वार्थ की पूर्ति करेगा, वही मुख्यमंत्री बनेगा। इसी कारण से झारखंड में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। भाजपा संसदीय बोर्ड कोई ठोस फैसला नहीं ले पा रहा है। यह समझ में नहीं आ रहा है कि यह संसदीय बोर्ड है या मदारियों का अड्डïा! झामुमो नेता शिबू सोरेन आज परिवारवालों के अलावा भाजपा के कारण भी निरीह, असहाय हो चुके हैं। झामुमो के विधायकों को हाईजैक करने का प्रयास भाजपा कर रही है जिससे स्थिति खराब हो चुकी है। राज्यपाल को तुरंत दखल लेना जरूरी हो गया है।

सामूहिक खेती करें किसान
सहाय ने विदर्भ के बदहाल किसानों को सामूहिक खेती करने का आह्ïवान करते हुए कहा कि इसमें उनका तो लाभ होगा ही, निवेशकों का भी लाभ होगा। अमरावती में सोमवार को आयोजित निवेशक सम्मेलन को बेहद सफल बताते हुए सहाय ने कहा कि इसमें कृषि व अन्य उद्योगों से जुड़े उद्योजक शामिल हुए थे। अमरावती में फुड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री जरूरी बताते हुए सहाय ने कहा कि इसके लिए सरकार पूरी मदद करेगी। उन्होंने किसानों व निवेशकों से मिलकर सामूहिक खेती करने की सलाह दी। निवेशक कृषि उद्योग में पैसा लगाएंगे और किसान मेहनत करेगा। नुकसान होने पर निवेशक सहेगा। फुड प्रोसेसिंग यूनिट को राज्य और केंद्र सरकार मिलकर 25 प्रतिशत या 50 लाख रुपये की मदद करेंगे। राज्य सरकार क्वालिटी कंट्रोल लैब के लिए 100 प्र.श. तथा निजी क्षेत्र की कंट्रोल लैब को 50 प्र.श. तक मदद केंद्र सरकार देगी। फुड प्रोसेसिंग डिप्लोमा-डिग्री कोर्स चलाने वाले कालेजों को भी उनका मंत्रालय हरसंभव मदद करेगा। सहाय ने कहा कि किसान बाजारोन्मुखी खेती करते हैं तो उन्हें काफी लाभ मिलेगा। देश में हरितक्रांति लाना हो तो सामूहिक खेती ही एकमात्र चारा है। खेती व्यापार आधारित होनी चाहिए। किसान इससे 10,000 रु. प्रतिमाह कमाएगा तो भी राजा बन जाएगा। खेती में निवेश करने वाले को राज्य सरकार ने भी प्रोत्साहित करना चाहिए। अगले एक-दो माह में केंद्र सरकार सामूहिक खेती के बारे में ठोस निर्णय लेगी। उन्होंने कहा कि भविष्य में केंद्र सरकार विदर्भ के उद्योगों को प्राथमिकता देगी बशर्ते वे कृषि आधारित उद्योग हों। चर्चा के समय राज्य के पशु संवर्धन व दुग्ध विकास मंत्री नितिन राऊत भी उपस्थित थे।
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रविवार, मई 09, 2010

खाप पंचायतों को समाज-सुधार से जोड़ना जरूरी

भारत डोगरा
5 May 2010, 2300 hrs IST,नवभारत टाइम्स


तीस वर्ष पहले फरीदाबाद जिले का अलावलपुर गांव एक दहेज-विरोधी आंदोलन का केन्द्र बन ग
या था। यहां की खाप पंचायत ने जाट समुदाय में दहेज प्रथा समाप्त करने व शादी-ब्याह में तरह-तरह की फिजूलखर्ची को दूर करने की एक प्रशंसनीय शुरुआत की थी, जिसे शीघ्र ही सफलता मिलने लगी। दरअसल यहां के अनेक बुजुर्ग व सम्मानित व्यक्तियों ने महसूस किया था कि निकट के शहरी समाज के अंधाधुंध अनुकरण से गांवों में भी दहेज व शादी-ब्याह के खर्च में बढ़ोतरी होने लगी है, जिससे छोटे किसानों का आर्थिक संकट बढ़ रहा है। कुछ परिवारों में तो इस कारण जमीन बिकने तक की नौबत आ गई थी। इस स्थिति में जाट समुदाय के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने अलावलपुर में एक बड़ी पंचायत बुलाई जिसमें दूर-दूर के अनेक गांवों के लोगों ने हिस्सा लिया।

इस महापंचायत में निर्णय लिया गया कि ग्यारह व्यक्तियों से अधिक की बारात नहीं जाएगी व मात्र एक रुपये का शगुन लिया जाएगा। विवाह के समय के लेन-देन को भी थोड़े से रस्मो-रिवाज के वस्त्र और बर्तन तक सीमित कर दिया गया। उस समय इन नियमों की वास्तव में जरूरत थी। शीघ्र ही इनका व्यापक स्तर पर पालन होने लगा। जब इस बारे में अनेक गांववासियों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि इस समाज-सुधार के कदम ने उनको आर्थिक संकट से बचा लिया, खेती के लिए उनकी जमीन बचा दी। बाद में पता चला कि इस प्रयास की सफलता से प्रभावित होकर इस क्षेत्र की कुछ अन्य जातियों ने भी अपने स्तर पर ऐसे ही प्रयास किए और उन्हें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली।

लेकिन छह-सात वर्षों के बाद इस गांव में जाने पर कुछ दूसरी ही तस्वीर सामने आई। यहां फिर से शादी-ब्याह में दहेज की मांग की जाने लगी थी, हालांकि यह अभी बहुत खुलकर नहीं हो रहा था। दबी जबान से कुछ गांववासियों ने बताया कि इस समाज-सुधार के प्रयास को जनसाधारण तो और व्यापक स्तर पर अपनाना चाह रहा था, पर समुदाय के धनी व अनुचित ढंग से पैसा कमाने वाले जो तत्व थे, उन्होंने ही सबसे पहले इन नियमों को तोड़ा। वे चाहते थे कि उन्हें अपनी समृद्धि के प्रदर्शन का अवसर मिले। इससे खाप व जाति पंचायतों की जो सार्थक भूमिका उभर रही थी, वह नव धनाढ्य व सत्ताधारी तबके के दबाव में टूटने लगी। जैसे-जैसे समाज-सुधार चाहने वाले तत्वों को पीछे धकेला गया, वैसे-वैसे उनके स्थान पर कट्टर सोच वाले आगे आने लगे।

कुछ वर्ष पहले दहेज-विरोध के अतिरिक्त कुछ जाति पंचायतों ने समाज-सुधार के अन्य सार्थक कार्य भी किए थे। कुछ स्थानों पर शराबखोरी व नशा विरोध का महत्वपूर्ण कार्य हुआ था। पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक बुजुर्ग दलित नेता ने मुझे बताया था कि उनके समुदाय ने जाति स्तर पर शराब व दहेज दोनों बुराइयों को दूर करने के प्रयास एक सीमित क्षेत्र में किए थे। इसमें कुछ समय के लिए उन्हें अच्छी सफलता भी मिली थी।
इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि समाज में जातिगत पहचान आज भी मजबूत बनी हुई है।

इसलिए जाति-समुदाय के आधार पर जो सामाजिक संगठन बनते हैं, उनकी भूमिका पर भी ध्यान देना जरूरी हो जाता है। हमें भरसक प्रयास करना चाहिए कि उन्हें कट्टरता, संकीर्णता व अलगाव की राह से हटाकर लोकतांत्रिक सोच, समाज-सुधार व प्रगति की राह से जोड़ा जाए। सामाजिक रस्मो-रवाज से जुड़े सुधार करने हैं तो इन संस्थाओं को साथ लेना ही होगा क्योंकि इनकी बातों का बहुत ज्यादा असर लोगों पर होता है। अब तक के अनुभव से साफ है कि जाति-समुदाय के संस्थानों का समर्थन मिलने से इन सुधारों को बहुत तेजी से सफलता मिलती है। आज जातिगत संस्थानों की सार्थक संभावनाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

जाति-समुदाय के संगठनों के माध्यम से समाज-सुधार के कार्यों जैसे दहेज व नशा विरोधी प्रयासों को तेज करना चाहिए। इस तरह जाति पंचायतों की सार्थक, सुधारवादी भूमिका उभर सकेगी व कट्टरता की सोच पर आधारित अन्यायपूर्ण निर्णय देने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
साभार नवभारत टाइम्स

निर्वासन के समय गर्भवती थीं सीता

बाल मुकुंद 8 May 2010, 0000 hrs IST, नवभारत टाइम्स
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है:

दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायन् पिता दश।
दश चैव पितृन् माता सर्वां वा पृथ्वीमपि।
गौरवेणाभिभक्ति नास्ति मातृसमो गुरु:।।

इसका अर्थ है कि गौरव में उपाध्याय दस आचार्यों से बड़ा होता है, पिता दस उपाध्यायों से भी बड़ा होता है, लेकिन माता दस पिताओं से भी बड़ी होती है। अपने इस गौरव से वह पृथ्वी को भी छोटा कर देती है। माता के समान दूसरा कोई गुरु नहीं है। माता को सबसे श्रेष्ठ मानने का यह उपदेश व्यक्ति के लिए है या समाज के लिए? संभवत: यह उपदेश सिर्फ संतान के लिए ही है, क्योंकि हिंदू मिथॉलजी में इसके पक्ष में सामाजिक आचरण वाले दृष्टांत नहीं मिलते।

अपनी मां को तो हर संतान सबसे ज्यादा प्यार करती है और उसे सबसे पूजनीय मानती है, लेकिन क्या हमारा समाज भी माता का दर्जा पा चुकी स्त्री को या मां बनने जा रही स्त्री को उतनी ही गरिमा प्रदान करता है? यह विचार करने की बात है कि क्या भारतीय संस्कृति में माता, सिंगल मदर और गर्भवती स्त्री को सचमुच देवी जैसा मान दिया गया है?

वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में उल्लेख है कि लंका विजय के बाद जब राम, सीता को वापस लेकर आते हैं, तब कहते हैं कि मैंने तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ही छुड़ाया है। अब तुम दसों दिशाओं में जहां चाहो, जा सकती हो। कुछ लोग वाल्मीकि रामायण के इस अध्याय को बाद में जोड़ा हुआ बताते हैं, लेकिन सीता के निष्कासन का प्रसंग रामकथा के परवर्ती भारतीय लेखकों ने बरकरार रखा है।

महत्वपूर्ण यह है कि जिस समय सीता को निर्वासित किया गया, उस समय वह गर्भवती थीं। राज परिवार में पली और ब्याही गई एक स्त्री गर्भवती होकर निर्वासन के बाद कहां जाएगी और कैसे जीवित रहेगी, उसके पेट में पल रहे शिशु के प्राण की रक्षा कैसे होगी, इस पर रामकथा के मर्मज्ञों ने ज्यादा विचार नहीं किया है।

मातृत्व का दर्जा पा लेने के बावजूद स्त्री के तिरस्कृत होने का एक और उदाहरण हमारी पौराणिक कथाओं में मिलता है। ऋषि परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि के कहने पर अपनी मां रेणुका का वध कर दिया था। जिस देश में गाय का वध करने वालों को ब्रह्म हत्या का पाप लगता है, उसी देश में माता का वध करने के बावजूद परशुराम अपने ऋषि पद से च्युत नहीं किए गए। इसके समानांतर कोई और ऐसा प्रसंग नहीं मिलता, जिसमें माता के कहने पर किसी ऋषि-मुनि ने अपने पिता को प्रताड़ित किया हो या उसका वध किया हो।

लोकाचार में अपने यहां संतान को पिता के कुल का उत्तराधिकारी माना गया है। वह अपने पिता के वंश, मान-मर्यादा और संपत्ति को आगे बढ़ाती है। जिन राजाओं या ऋषियों के यहां पुत्र नहीं हुए, उनकी बेटी के शरीर से उत्पन्न पुत्रों ने अपने नाना का उत्तराधिकार पाया, नानी या माता का नहीं। माता से जन्म और पोषण पाने के बावजूद संतान उसके वंश, कुलगोत्र या संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बनती। अर्जुन को कुंती का पुत्र होने के कारण कौंतेय या सत्यकाम को जाबाल कहा गया है, लेकिन ऐसे उदाहरण विरल हैं। दक्षिण या पूर्वोत्तर के कुछ समुदायों में, पुत्र के जीवन में माता का स्थान और उसका निर्णय आज भी महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन वंश और कुल-गोत्र वहां भी पिता का ही मान्य है।

लोक विचार यह है कि पुत्र की उम्र पांच साल की हो जाए तो उसे माता की गोद से निकालकर पिता के अनुशासन में डाल देना चाहिए। इसके पीछे आशय संभवत: यह है कि शैशवावस्था में माता उसके जीवन की रक्षा करती है, लेकिन बाद में पिता ही उसे गुणी बनाता है। माता निर्बल और असमर्थ होती है, वह पुत्र को जीवनयापन के लिए उचित कौशल (जिसमें युद्ध कौशल और पराक्रम भी शामिल है) की शिक्षा नहीं दे सकती। वह उसे शास्त्रास्त्रों में पारंगत नहीं कर सकती। आज भी व्यवहार में यही प्रचलित है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से हमारी मिथॉलजी में उदाहरण इससे बिल्कुल उलट हैं। जिन बच्चों को सिंगल मदर ने पाला, वे अत्यंत पराक्रमी और वीर योद्धा हुए।

कौरवों के माता-पिता जीवित थे, उनका पालन-पोषण गांधारी और धृतराष्ट्र के स्नेह की छाया में हुआ। लेकिन पांचों पांडवों को कुंती ने अकेले पाला था। नकुल-सहदेव के जन्म के तुरंत बाद ही पांडु की मृत्यु हो गई थी। महाभारत के अनुसार कौरव न सिर्फ वीरता में पांडवों से कमतर थे, बल्कि वे नैतिक रूप से भी दुर्बल थे।

शकुंतला से गांधर्व विवाह रचाने के बाद दुष्यंत उसे छोड़कर चले गए थे। दुष्यंत से उत्पन्न पुत्र भरत का पालन-पोषण शकुंतला ने अकेले किया था। बाद में दुष्यंत ने शकुंतला को अपने राज्य में ले जाने का भी कोई प्रयास नहीं किया। जब शकुंतला अंतत: दुष्यंत के दरबार में अपने पुत्र का अधिकार मांगने पहुंची तो भरत के तेज और पराक्रम से ही प्रभावित होकर दुष्यंत ने मां-बेटे को फिर से अपनाया।

इसी तरह का प्रसंग सत्यकाम का है। उनकी मां जबाला सिंगल मदर थीं। उन्हें यह भी पता नहीं था कि उनकी कोख से पैदा होने वाला सत्यकाम किसका पुत्र है। लेकिन जबाला ने अकेले उसका पालन-पोषण किया। सत्यकाम विद्वान ऋषि के रूप में प्रतिष्ठित हुए और अपनी मां के नाम पर उनका एक नाम जाबाल ऋषि प्रसिद्ध हुआ।

लव-कुश को भी सीता ने अकेले ही पाला था। अयोध्या के राज सिंहासन पर फिर से प्रतिष्ठित होने के बाद राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और परंपरा के मुताबिक घोड़ा छोड़ा। लव-कुश ने यज्ञ के उस घोडे़ को बांध लिया और उसके साथ चलने वाले सैनिकों को मार भगाया। उनके इस पराक्रम से प्रभावित होकर राम ने उनके कुल और वंश के बारे में पूछताछ की। मध्यकाल में

ऐसा ही उदाहरण शिवाजी का है। उनकी मां जीजाबाई ने उनका लालन-पालन अकेले ही किया था। संतान के प्रशिक्षण पर पुरुष का एकाधिकार नहीं होता, अपनी संतान को मां अकेले भी वीर और पराक्रमी बना सकती है। यह दूसरी बात है कि सामाजिक रूप से उसे इस गौरव से वंचित रखा जाता है।

9 मई को इंटरनैशनल मदर्स डे है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने शिशु और मातृत्व सुरक्षा पर एक रिपोर्ट जारी की है। यूएन द्वारा कराए गए इस अध्ययन के मुताबिक मां और शिशु की सुरक्षा की दृष्टि से दुनिया के 77 मध्य आय वाले देशों में इस समय भारत का स्थान 73वां है। दुनिया भर के जिन 12 देशों में गर्भवती महिलाओं, सद्य: प्रसूताओं और नवजात बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, भारत उनमें से एक है। संस्कृत के कुछ ग्रंथों में माता को देवी के समान अवश्य बताया गया है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक मां बनने के लिए यह देश सुरक्षित नहीं है।
साभार : नवभारत टाइम्स

रविवार, मई 02, 2010

अक्षय तृतीय और पुष्य नक्षत्र में लिए सजा सोने का बाजार

नागपुर। तीज-त्यौहारों के मौके पर सोना खरीदने का चलन पुराना है। अक्षय तृतीया और पुष्य नक्षत्र में तो सोना खरीदना शुभ माना जाता है। इसलिए संतरानगरी के ज्वेलरी बाजार में खास तैयारी दिख रही है। लेकिन शुद्ध सोने हासिल करना आसान बात नहीं है। नगर में कई ऐसे केंद्र हैं,जहां सोने के निवेश के लिए सोने के सिक्के खरीदने की राह दिखाई जाती है। पर इन स्थितियों में शुद्ध सोना खरीदना आसान नहीं है। नगर में हालमार्क युक्त सोने का सिक्का कुछ ही अधिकृत दुकानों पर ही मिलता है। जबकि ज्वेलरी दुकानों में इनकी कीमतों को लेकर हमेशा ही अंतर दिखता है। ग्राहकों को मोल-भाव तक करनी पड़ती है।
ऐसे में भारतीय डाक विभाग लोगों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। नागपुर जीपीओ में शुद्ध सोने का सिक्का उपब्ध कराने की घोषणा की है। डाक विभाग के विदर्भ क्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल और जीपीओ से प्राप्त जानकारी के अनुसार 24 कैरेट सोने के सिक्के की शुद्धता 99.99 प्रतिशत रहती है। विभाग 0.5 ग्राम, एक ग्राम, पांच ग्राम और आठ ग्राम के सिक्के पुष्यनक्षत्र को ध्यान में रखकर लाया है। ग्राहकों को रिझाने के लिए डाकघर में विज्ञापन प्रदर्शित किए गए हैं। यहां से खरीदे गए सोने के सिक्के पर अंतरराष्ट्रीय प्रमाणीकरण के साथ डाक विभाग की मुहर भी होगी।
इतवारी सर्राफा बाजार के ज्वेलर राजकुमार गुप्ता ने बताया कि अक्षय तृतीय और पुष्य नक्षत्र की दृष्टि से हमारी पूरी तैयारी है। ग्राहकों की मांग के अनुरूप हर चीज उपलब्ध है। उनकी मांग पर ज्वैलरी भी उपलब्ध कराई जा सकती है। यदि निवेश की दृष्टि से सोना खरीदना हो तो सोने के बिस्कुट या सिक्का लेना बेहतर होगा। ज्वेलरी खरीदने पर वह महंगा पड़ जाता है। उसमें सोने की कीमत के साथ प्रतिग्राम की दर से मजदूरी भी जुड़ जाती है। इसके साथ ही उसे बेचते समय मजदूरी के अलावा कुछ प्रतिशत डस्ट्रींग के चार्ज कट जाते हैं। इसलिए सिक्के खरीदना बेहतर होगा।
जानकारों का कहना है कि शेयर बाजार की उठापटक और रुपये में आई मजबूती ने लोगों के लिए सोने को निवेश का बेहतर विकल्प बना दिया है। डाक विभाग ने 15 अक्टूबर, 2008 से डाक घरों में सोने की सिक्के बेचने की योजना शुरू की थी। नागपुर स्थित प्रधान डाकघर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लोगों में सोने के सिक्कों के प्रति बढ़ती लोकप्रियता के चलते डाक विभाग ने यहां सोने के सिक्के बेचना शुरू किया है। पर यहां भी सोने के सिक्के का दाम बाजार भाव के अनुसार ही निर्भर करता है। 0.5 ग्राम के सिक्के का दाम करीब 11 सौ रुपये और 8 ग्राम का भाव करीब 1500 सौ रुपये बताया जा रहा है।
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शनिवार, मई 01, 2010

संघ मुख्यालय में शिवराज की दस्तक

संजय स्वदेश
नागपुर।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शनिवार को सुबह करीब 8.30 बजे नागपुर पहुंचे। उन्होंने महल स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। संघ सूत्रों का कहना है कि चौहान ने संघ प्रमुख से करीब दो-ढाई घंटे तक चर्चा की।

ज्ञात हो कि दो दिन पूर्व भाजपा की पूर्व नेता और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी नागपुर आकर संघ मुख्यालय में संघ प्रमुख से बातचीत की। ये सारी चर्चाएं उमा भारती की भाजपा में वापसी की अटकलों को लेकर हो हो सकती हैं। गौरतलब है कि शिवराज सिंह चौहान उमा भारत के प्रबल विरोधी माने जाते हैं। संघ मुख्यालय से हरी झंडी मिलने के बाद भी भाजपा के उमा विरोधी नेताओं के कारण उनकी पार्टी में वापसी बार-बार टल रही है। उमा भारती के संघ मुख्यालय में आने के दो दिन बाद शिवराज सिंह के संघ मुख्यालय में आने से उमा भारती के प्रति अपना विरोध जताने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

जानकारों की मानें तो उमा भारती की भाजपा में वापसी को लेकर चल रही अटकलों के कारण शिवराज चौहान की सिरदर्दी बढ़ गई थी। इसी कारण उन्होंने आनन-फानन में मध्य प्रदेश के पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए प्रभात झा के नाम पर इच्छा के विरुद्ध सहमति दे दी थी। इसी बीच 27 अप्रैल को उमा भारती गुपचुप तरीके से फिर नागपुर आकर संघ मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। इससे पहले भी वे कई बार संघ मुख्यालय आ चुकी है। पर मध्य प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के समय ही उमा नागपुर आई। एक बात तो स्पष्ट है कि अब उमा भारती की यदि भाजपा में वापसी होती है तो वे राज्य की राजनीति से ऊपर केंद्रीय राजनीति में रहेंगी।
जानकारों का कहना है कि कल्याण सिंह लोध समाज से थे। लेकिन कल्याण सिंह की वापसी की राह में अभी राजनाथ सिंह व अन्य कुछ नेताओं का बड़ा रोड़ा है। इसलिए संभावना है कि उमा भारती को वापस पार्टी में लाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में खड़ा किया जाए, जिससे कि वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में लोध समाज के वोटों को भाजपा में पक्ष कर सके।

कहीं आप तो नहीं गटक रहे हैं नकली कोल्ड ड्रिंक्स

नागपुर। संतरानगरी की भीषण गर्मी में सूखे कंठ की तरावट के लिए यदि आप कोल्ड ड्रिंक पी रहे हो तो सावधान हो जाइये। नगर में प्रतिष्ठित कोल्ड ड्रिक्क की भारी मांग को देखते हुए कुछ गिरोह सक्रिय होकर इसके नकली उत्पाद की धड़ल्ले से आपूर्ति कर रहे हैं। इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना करीब सभी कोल्ड ड्रिक्स कंपनियों ने अपने विभिन्न वजन वाले बोतलों के मूल्यों में एक से पांच रुपये तक की वृद्धि की है। कमाई की मोटी संभावना को देखते हुए ही नकली उत्पादों को खपाने के लिए कुछ गिरोह सक्रिय हो गए हैं। सूत्रों की मानें तो कोक, पेप्सी आदि शीतल पेय की नकली माल गुपचुप तरीके से बनाया जा रहा है। इसकी आपूर्ति में इन कंपनियों के स्थानीय डीलरों की सक्रिय भूमिका है। एक तरह से देखा जाए तो कंपनी के अधिकृत डीलरों की शहर पर ही नकली माल का उत्पादन हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने शीतल पेय के बोतलों के दाम तो बढ़ा दिये। लेकिन उसे बेचने पर दुकानदारों को मनमुताबिक मुनाफा नहीं हो रहा है। उनका कमिशन उन्हें संतोषजन नहीं दिख रहा है। वहीं खुदरा दुकानदार इन बोतलों को ठंडा कर बेचते हैं। जिससे ग्राहकों से बोतल पर अंकित अधिकतर खुदरा मूल्य से दो से पांच रुपये की अतिरिक्त राशि वसूलते हैं। इस मामले में पूछे जाने पर दुकानदारों का कहना है कि हम क्या कर सकते हैं। हमें तो कंपनी बहुत ज्याद मार्जिन देती ही नहीं है। सारी कमाई कंपनी वाले रख लेते हैं। फ्रिज में ठंड करने पर बिजली का अतिरिक्त बिल भरो। एक ही फ्रिज में ज्यादा बोलते डालते हैं जिससे कि एक ही समय ज्यादा से ज्यादा ठंड हो सके। यदि ऐसे में ज्यादा बोलते बिकती हैं तो लाभ होता है। नकली माल बेचने के बारे में पूछने पर एक दुकानदार ने बताया कि हमें तो पता ही नहीं कि बोलत में बंद माल नकली है या असली। जो डिलर दे जाए, उसे ही बेचते हैं।
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बादलों ने ठंडे किए पारे के तेवर

नागपुर। संतरनगरी में शनिवार को भी मेघ मेहरबान रहें। शुक्रवार को जहां समूचे विदर्भ की जनता को भीषण गर्मी से कुछ घंटे के लिए राहत मिली। वैसा ही मैसम 1 मई को भी मेहरबान रहा। नागपुर का अधिकत तापमान 39 डिग्री नहीं पार कर पाया। गत दो सप्ताह से हमेशा 40 डिगी सेलिसियल पार की गर्मी सहने वाले नागपुरियों को शनिवार को भी राहत की सांस ली। महाराष्ट्र स्थापना दिवस और विदर्भ आंदोलन के कारण इन मौके पर आयोजित होने वाले समारोह को भी गर्मी के कारण जनता का अच्छा प्रतिसाद मिला। संकट चतुर्थी होने से टेकड़ी स्थित गणेश मंदिर में भी श्रद्धालुओं को भारी भीड़ उमड़ पड़ी। शनिवार को सड़कों पर अधिकर लोगों कानों पर बिना कुछ बांधे वाहन चलाते दिखे। ज्ञात हो कि गुरुवार को पारा 44 के पार था। लेकिन शुक्रवार और शनिवार को बादलों की मेहरबानी से यह 40 को नहीं पर कर पाया।
मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार उपराजधानी में मेघों की आवक क्या हुई कि पारे की रफ्तार पर ब्रेक लग गया। अधिकतम तापमान में दो-से तीन डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा की गिरावट आई है। मेघों से कुछ उम्मीदें जगी हैं, लेकिन ये ज्यादा दिन तक राहत नहीं दे सकते हैं। शुक्रवार की तरह शरिवार को भी मौसम का मिजाज एकदम बदला हुआ नजर आया। सुबह धूप निकली, लेकिन फिर बादलों ने सूरज को ढक लिया। इसके चलते सूरज की तपिश ने हलकान नहीं किया।
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