गुरुवार, दिसंबर 17, 2009

बिहार पर छाया दुबई का संकट


देश ही दुनिया के किसी भी हिस्से में बिहार का मजदूर सबसे सस्ते श्रम के साथ हाजिर हो जाता है. दुबई में भी बिहार से गये मजदूरों की बड़ी तादात है. लेकिन बिहार से गये मजदूरों से अलग दुबई ने सस्ते में अपना काम निपटाता है तो दुबई की कमाई से बिहार के कई जिले अपनी माली हालत को भी सुधारते हैं. दुबई के रियल एस्टेट सेक्टर में आये भूचाल की खबरें तो गायब हो गयीं लेकिन बिहार के इन जिलों में संकट की छाया साफ नजर आ रही है. गोपालगंज और सीवान से लौटकर संजय स्वदेश की रिपोर्ट-
तकनीकी जानकारी रखने वालों के लिए बिहार में रोजगार नहीं है। अच्छा वेतन तो दूर की बात है। काम के साथ अच्छे रोजगार के लालच में देश के लाखों लोग विदेश जाते हैं। देश के कोने-कोने में बिहार के लोग किसी न किसी काम में जरूर मिल जाएंगे। समुद्र पार के देश भी अछूते नहीं हैं। पर इन दिन दुबई पर आए आर्थिक मंदी की काली छाया बिहार पर पड़ गई है। करीब एक लाख से भी ज्यादा लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। गत एक दशक में रोजगार की लालच में खाड़ी देशों की ओर बिहार के लोगों का बड़ी संख्या में पालायान हुआ है। राज्य के सीवान, गोपलगंज और छपरा जिले के हजारों लोग खाड़ी देशों में कार्यरत हैं। काम के साथ वहां जीवन कैसे जीते हैं, वे ही जानें। पर जब एक दो साल बाद वापस बिहार आते हैं तो एक साधारण मजदूर का काम करने वाला भी दो-तीन लाख की पूंजी जुटा लेता है। इस स्थिति को देखकर बिहार के अनपढ़ से लेकर पढ़े लिखे नौवजवानों में अरब देशों में जाने की ललक ज्यादा है। बिहार में सिवान और गोपलगंज ऐसे जिले है। जहां देशभर में सबसे ज्यादा विदेशी धन आता है। कई लोगों तो विदेश से आने वाले धन को मनी ट्राॅस्फर एजेंट के रूप में काम कर जीविका चला रहे हैं। पासपोर्ट बनवाने के और विदेश भेजने के लिए सैकड़ों गिरोह सक्रिय हैं। पासपोर्ट के लिए होने वाली पुलिस की औपचारिकताओं में पुलिसवालों की अच्छी-खासी कमाई हो जाती है।
दो दशक पहले तक जहां मुंबई और दिल्ली में ही विदेश भेजने वाले एजेंट सक्रिय थे, वे अब बिहार के तहसील स्तर तक पहुंच चुके हैं। इसमें कई लोगों के साथ धोखाधड़ी भी होती है। तीन-साल साल पहले एक साधारण मजदूर के लिए एजेंट करीब 30 हजार रूपये लेकख विदेश में जाॅब दिलवाते थे, आज यह रेट 50 हजार से एक लाख का रेट चल रहा है। इसके बाद जैसा वेतन और दाम। सिवान, छपरा और गोपालगंज में तो कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास छत तक नहीं थी, उन्होंने गांव में मटरगश्ती करने वाले लाड़लों को यहां भेज कर अपनी बदहाली को खुशहाली में बदल लिया है। यहां विदेश जाने का क्रेज इतना है कि यदि एजेंट को देने के लिए रूपये नहीं है तो कर्ज देने के लिए कई गिरोह सक्रिय हैं। गहने गिरवी रखकर 5 प्रतिशत प्रतिमाह यानी 60 प्रतिशत सलाना और बिना गिरवी रखने पर 10 प्रतिशत प्रतिमहा यानी 120 प्रतिशत सालाना ब्याज दर पर आसानी से कर्ज मिल जाता है। विदेश जाने के छह माह बाद ही ये सारे कर्ज उतर जाते है। इस तरह के कर्ज लेने वाले अधिक लोग संकट में तब पड़ते हैं जब एजेंट पैसे लेकर गायब हो जाते है।

एक डेढ़ दशक पहले तक अरब देशों में काम के लिए जाने वालों में मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा थे। पर अब बदहाली में हर समुदाय के युवक वहां जाते है। अरब देश में ही काम करने वाले सिवान के हैदरअली कहते हैं कि दुबई समेत अरब देशों के प्रमख शहरों में मिनी बिहार है। कदम-कदम पर भोजपुरी बोलने वाले लोग मिल जाएंगे। अब तोलगता ही नहंी कि वह विदेश है।
गोपलगंज के हरीलाल को विदेश जाने की ललक बचपन से ही थी। कहते है दस साल पहले एक एजेंट इस नाम पर बीस हजार रूपया लेकर भाग गया। बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत एक लाख रूपये का कर्ज लेकर किराने की दुकान चालू की। पर मुनाफा क्या हो, बैंक के एजेंट और अधिकारी की कमीशन के नाम पर कर्ज की अच्छी-खासी रकम खा गए। व्यवसाय नहीं चला। तो एक दो माह में एयरकंडीशन मैकेनिक का काम सीखा। बीबी के गहने गिरवी रखकर बयाज पर रूपये लिए। रूपया कम पड़ा तो अधिक बयाज पर और रूपया उठाया। करीब 50 हजार रूपया भरकर 12 हजार के वेतन पर दुबई गए। हालांकि छह माह में कर्ज उतार लिया। पर कंपनी का काम खत्म हो गया तो वापस गांव आना पड़ा। हरीलाल कहते हैं गलत एजेंट के चक्कर में पड़ गया। अब दूसरे किसी अच्छे एजेंट से पास फिर से विदेश जाने का नंबर लगाना है। ऐसी कहानी केवल हरीलाल की ही नहीं है। सैकड़ों ऐसे हरीलाल बिहार में हैं, जो कर्ज लेकर भी विदेश गए ओर अपनी बदहाली दूर कि वहीं कई ऐसे हैं जिन्होंने कर्ज लेकर एजेंट से धोखा खाकर अपनी बाबार्द पर मातम मना रहे हैं।

अब आर्थिक संकट में इन तीनो जिलों में मायूसी का माहौल बना दिया है। इसके बाद भी एजेंट दुबई के अलावा दूसरे खाड़ी देश में अच्छे वेतन पर रोजगार दिलाने का दावा कर रहे हंै। दुबई से काफी संख्या में लोग घर लौट आए हैं। लौअने का सिलसिला अभी जारी है। जानकार कहते हैं कि सिवान जिले के करीब 50 हजार से अधिक लोग खाड़ में काम करते हैं। पर मंदी की मार उन पर पड़ने से सहमे हुए हैं। छपरा के मोरु नसीम कहते हंै। वे दुबई में वेंडिंग का काम करते थे। तीन माह पहले ही कंपनी ने उन्हें यह कहर वापस भेज दिया कि काम का कंट्रक्ट समाप्त हो गया। जब कंपनी को नया काम मिलेगा तो फिर बुलाएंगे, पर नया काम कब मिलेगा, यह तय नहीं है। शादी-बिहार में छुट्टी पर आए लोगों को यह संदेश मिल रहे हैं कि वे दुबारा काम पर अभी नहीं आएं। बाद में सूचना भेजने पर ही वे आएंगे। संकेत सब समझते हैं। अनुमान है कि बिहार के इन तीनों प्रमुख जिलसे से हर माह करीब पांच हजार लोग खाड़ी देशों में जाते है। पिछले दिनों समाचार आई थी कि उतर बिहार के 18 जिलों में हर माह आने वाले लगभग 75 करोड़ की रकम नवंबर माह में आधी थी। बैंक में मनी ट्रांसफर करवाने वालों की संख्या घटती जा रही है। बिहार में करीब 35 हजार लोगों के घर वापसी की खबर भी आई है।

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