संजय स्वदेश
नागपुर। विदर्भ के नेता और विभिन्न संगठन पृथक विदर्भ की मांग पर एक मंच पर आने की बातें भले ही कर रहे हों पर विधानमंडल में जनप्रतिनिधियों के रुख को देखकर लगता है कि विदर्भ का मुद्दा हवा बन कर ही रह जाएगा और पूर्व की भांति इस बार भी शीतसत्र तुरंत समाप्त हो जाएगा। सरकार मुंबई चली जाएगी। मुद्दा फिर शांत हो जाएगा। सदन के बाहर विदर्भ के विभिन्न क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों के पृथक विदर्भ पर बयान सुन कर भले यह लगे कि वे ही इसके सबसे बड़े हिमायती हैं। पर सदन के अंदर पृथक विदर्भ का मुद्दा नहीं उठाया जा रहा है और न ही शीतसत्र के निकट दिनों में चर्चा की संभावना दिख रही है। वहीं दूसरी ओर शीतसत्र के दूसरे सप्ताह तक ही विधायक बोरियत महसूस करने लगे हैं। विधानमंडल के दोनों सदनों की स्थिति यह है कि हर चर्चा सत्र में आधी सीटें खाली रहती हैं। पर दोनों पक्षों के नये विधायक सदन के कामकाज को समझने में खासी रुची दिखा रहे हैं। सत्र में उनकी उपस्थिति ही नजर आती है।
सदन से गायब रहने वालों में सत्ता पक्ष को साथ-साथ विपक्ष के विधायक भी शामिल हैं। हालांकि शीतसत्र के शुरूआत में इसको लेकर राजस्वमंत्री नारायण राणे ने विपक्ष की कम उपस्थिति पर चुटकी भी ली थी। सदन में पूछे जाने वाले पहले से निर्धारित अधिकतर प्रश्नों की सूची में पांच से ज्यादा विधायकों के नाम होते हैं, पर सवाल पूछते वक्त उस सूची में से एक या दो ही विधायक सदन में उपस्थित रहते हैं। वहीं शीत सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष ने सत्ता पक्ष को सदन में घेरने का दावा किया था। पर हल्के-फुल्के विरोध के अलावा विपक्ष कुछ खास आक्रमण नहीं दिखा। सत्र के अंत में सदन में प्रस्तुत किए जाने वाले नियोजन विधेयक के आज प्रस्तुत होने की संभावना है।
ज्ञात हो कि नई सरकार के गठन के बाद पहला अधिवेशन नागपुर में हो रहा है। सरकार ने 23 दिसंबर तक अधिवेशन के चलने की घोषणा की है। लेकिन अब विधायकों को यह तीन सप्ताह पहाड़ लगने लगे हैं। पहले सप्ताह में ही 12 और 13 को अवकाश था, तो दूसरे सप्ताह में 17 से 20 दिसंबर तक विधि मंडल के कार्य बंद रहेंगे जो 21 से 23 दिसंबर तक चलेंगे। इसी कारण जल्दी कार्य निपटाने के लिए सोमवार और मंगलवार को दोनों सदन देर तक चलते रहें। पहले और दूसरे सप्ताह में चार दिनों के अवकाश और सदन में विधायकों की कम उपस्थिति से अधिवेशन का जोश ठंडा पड़ता दिख रहा है। लिहाजा, आज 16 दिसंबर को सदन में नियोजन विधेयक प्रस्तुत होने की संभावना बढ़ती दिख रही है। जानकारों का कहना है कि 18 दिसंबर को होने वाले विधानपरिषद के चुनावों के मद्देनजर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी चुनावी रणनीति में लगे हुए हैं।
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