मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते


एम.ए रफी
नागपुर।
नागपुर में विधान सभा का शीतसत्र समाप्त हो गया। विधानभवन परिसर में प्रसिद्ध सूफी संत सैय्यद जलालुद्दीन बाबा का दरबार मौजूद है। वर्षों पुरानी यह मजार 'मीठा नीम दरबारÓ कहलाती है। इसी मज़ार के ठीक सामने कुछ लोग खुली सड़क पर आसमान के नीचे न केवल दिन गुजार रहे हैं बल्कि, वे रातें भी यही गुजारते हैं। इनका जीवन मस्ती में गुजर रहा है, लेकिन क्या वे लोग सही मायने में सुखी हंै?
रुखी-सुखी बासी कुछ भी मिल गया तो खा लिया। नहीं मिला तो राम-रहीम का नाम लेकर घुटने से पौरों को दबा कर सोने लगे। भूख जब तक सही जा सकी, नींद आती रही। नहीं तो उठ कर बैठ गए। घुटनों को सुकेड़ कर पेट दबाये आसमान को निहारते-निहारते रात गुजार दी। विधानसभा को शीतसत्र के दौरान भी ये लोग बाबा के दरबार के पास थे। सरकारी महकमे की चमचमाती लाल, पिली बत्तियों में चलने वाले सरकार और अधिकारियों की शायद ही इधर नजर पड़ी होगी। यहां से गुजरने वाले शायद ही कभी सोचते होंगे कि यहां कोई बंदा बिना चादर संतरानगरी की शबनमी ठंड में रात गुजारता होगा। मजार में चादर चढ़ाने के बजाय एक चादर यहां भी चढ़ा लिया जाए। जब संवाददाता ने इन लोगों से पूछा कि यहां आप लोग सरकार से क्या चाहते हैं, तो उन्होंने उलटे सवाल दाग दिया। कौन सरकार, कैसी सरकार? यहां तो हमे कोई सरकार नजर नहीं आती। गरीब, बेसहारों की यह कहानी यही खत्म नहीं होती। शहर की अधिकांश दरगाहों, मंदिरों के सामने, रेल्वे स्टेशन के करीब, चौराहों और फुटपाथों पर यह नजारा दिखाई दे रहा है। कोई एक चादर में 10 डिगी तक तापमान का ठंड गुजार रहा है, तो कोई बोरा ओठकर चैन की निंद में डूबा है। ऐसे जगहों पर कुछ लोग ऐसे भी नजर आते हैं जो एक अखबार बिछाकर रात गुजारते हैं। इस ठंड में ऐसी जगहों पर रात गुजारने वालों में अधिकतर मजदूर, भिखारी और कुछ अनाथ तथा बेसहारा शामिल होते हैं। ऐसे लोगों पर किसी शायद ने ठीक ही लिखा है:-
सो जाते है फुटपाथ पर अखबार बिछा कर, मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

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