शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

छुटती नहीं काफीर, ये मुंह को लगी है...



संजय स्वदेश

नागपुर। पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने अनाज से शराब उत्पादन की नीति घोषित की। सरकार ने कहा कि अनाज से शराब बनाई जाएगी। नागपुर में जारी राज्य विधानमंडल के शीतसत्र में इसको लेकर काफी हो- हल्ला हुआ। विपक्ष ने कहा कि जब जनता के लिए खाने का अनाज नहीं है, फिर शराब क्यों? सरकार का तर्क था कि सड़े ही अनाज से शराब बनाएंगे। फिर विपक्ष बरसी। पूछा सरकार ऐसी लापरवाही ही क्यों करें कि अनजा सड़े। सूत्र कहते हैं कि निजी शराब कंपनियों ने सरकार को मोटी रकम खिलाकर अनाज से शराब बनाने का लाईसेंस लिया। महाराष्ट्र में झुनका भाकर गरीबों में बहुत लोकप्रिय है। झुनका ज्वारी की रोटी होती है। भाकर बेशन होता है। स्थिति यह है कि बहुसंख्य गरीब जनता को सबसे सस्ता अनाज ज्वारी भी नसीब नहीं होती है कि उसका झुनका बनाएं। अनाज से शराब बनाने के पीछे गरीबों के हिस्से के इसी झुनके को हड़पना था। गरीबों के हिस्से का अनाज सस्ते में लुटों की नीति। इससे बनी शराब अमीर पीते। गरीब भले ही ज्वारी से बने रोटी नहीं खाता। पर गरीबी के गम में यह उसके हिस्से के अनाज से बनी महंगी शराब का गटकता।
जो भी अनाज हर इंसान की बुनियादी जरूरत है। इस पर शराब उत्पादक कंपनियों की काली नजर से बचाना बेहद जरूरी है। भारी विरोध के बाद अब सरकार इसी नीति पर फिर से विचार करने का आश्वासन दिया है। हालांकि इसके लिए राज्य में 23 कंपनियों को लाइसेंस जारी किया गया है। गृहमंत्री आर.आर. पाटील ने इसके लिए पहले से जारी लाइसेंस पर भी विचार करने का आश्वासन दिया है। ध्यान रहें, अनाज से शराब नहीं बनाने का आश्वासन दिया है। जारी लाइसेंस पर विचार करने की बात कहीं है। इस पर ठोस निर्णय नहीं लिया। मामला साफ है। सरकार शराब कंपनियों के भारी दवाब में है। इस कंपनियों से इससे मतलब नहीं है कि शराब बनाने के लिए अनाज किसके हिस्से से आएगा।
शिवसेना की विधायक निलक गोरे ने विधान परिषद में आनाज से शराब उत्पादन की सरकारी नीति के विरोध में कहा कि अनाज खाने की प्राथमिक वस्तु हैं। राज्य के एक ओर जहां अनाज की कमी के कारण किसान आत्महत्या कर रहें हैं, वहीं सरकार अनाज से शराब बनाने की बात कह रही है। अनाज से शराब उत्पादन की नीति से अनाज की कलाबाजारी बढ़ जाएगी। श्रीमती गोरे के सवाल पर राज्य के राजस्व मंत्री नारायण राणे ने भी समर्थन करते हुए कहा कि अनाज खाने के लिए है न की शराब बनाने के लिए। लिहाजा अगली बार इसके लिए लाइसेन्स जारी नहीं होंगे। पर मंत्री महोदय नहीं सोचते,जो लाईसेंस पहले ही जारी हो गए, उसका क्या? राज्य में 23 कंपनियों को लाईसेंस दिए जा चुके हैं। आगे नहीं भी दिए जाएं तो फर्क पड़ता है। गरीबों के हक का अनाज को मय के द्वारा हलक में उतारने के लिए 23 कंपनियां पर्याप्त हैं।
विपक्ष के विरोध का श्री राणे के समर्थन के पीछे मजबूरी है। शीतसत्र के शुरूआत में ही यह कह कर विवाद में आए थे कि विदर्भ कि किसान शराब पीकर आत्महत्या करते हैं। इस पर विपक्ष समेत प्रबुद्ध लोगों ने नारायण राणे को कटघरे में शामिल किया। घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। कर्ज में फंसे किसान को दारू पीने के लिए भला कौन कर्ज देता है। राणे को लगा कि उन्होंने गलत वक्तव्य दे दिया है तो विपक्ष के पाले में एक टूट कह दिया-अनाज खाने के लिए है शराब के लिए नहीं।
गृहमंत्री आर.आर. पाटील रानीति के पुरोधा हैं। जानते हैं थोड़े दिनों बाद जनता इस मुदद् को भूल जाएग। जनता को भरमाने के लिए विधानपरिषद को आश्वासन देते हुए कहा कि इस मामले पर मुंख्यमंत्री अशोक चव्हाण से भी चर्चा हुई है। कुछ अनाज खाने के लिए नहीं होते हैं, लेकिन उसे पशुओं के आहार में उपयोग लाया जाता है। अब सरकार केवल उन अनाज से शराब बनाने की अनुमति देगी, जो एकदम निम्म कोटी के हैं और उसे पशु भी नहीं खाते हैं। श्री पाटील की यह सफाई भी विचार के लायक है। जरा सोचिए जो अनाज पशु भी नहीं खाएंगे, उससे शराब बनेगा। क्या वह सड़ा अनाज जहर नहीं होगा? पर इसे सरकार क्यों सोचेगी। गालिब ने कहा है - छुटती नहीं काफीर, ये मुंह को लगी है। जब नागपुर में सत्र खत्म होता है, विधायक निवास की सफाई के दौरान अधिकतर कमरे से दारू की बोतल ही निकलती हैं।

1 टिप्पणी:

Dinesh yadav ने कहा…

jab muh se lagi hoi to kaise chutegi janawb.