मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

संरक्षण अधिकारी की बाट जोहता घरेलू हिंसा सुरक्षा कानून


संजय स्वदेश
नागपुर।
महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा संरक्षण कानून के लागू हुए तीन साल से भी ज्यादा का समय हो गया। पर अनेक राजयों में अभी तक संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की। इसकी अतिरिक्त जिम्मेदारी राज्य में महिला बाल कल्याण अधिकारी व समाज कल्याण अधिकारियों को दी गई है। घर के भीतर अपनों से हिंसा झेल रही महिलाएं, तुरंत न्याय की उम्मीद से इस कानून के तहत मुक दमें दर्ज तो करा रही हैं, पर संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने से वे वकीलों का सहारा लेने को मजबूर हैं। कोर्ट में मामले लंबे खिंच रहे हैं। कानून का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने अलग से संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की बात कही थी, पर ऐसा हुआ नहीं।
पहले से काम के बोझ तले दबे महिला बाल-कल्याण विभाग या जिला समाज कल्याण अधिकारी घरेलू हिंसा संरक्षण के मामले में महत्वूपर्ण भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। कानून में साफ कहा गया है कि राज्य सरकार जनसंचार माध्यमों का सहारा लेकर महिलाओं को इस कानून के बारे में अधिक-से अधिक जागरूक करेंगी। वहीं जब महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत लेकर थाने पहुंचती है, तो तो पहले उन्हें परामर्श देकर मामले को सुलझाने की सलाह दी जाती है। कुछ गैर सरकारी संस्थाओं ने नागपुर के प्रमुख थानों में महिला परामर्श केंद्र संचालित किए हैं, जहां थाने में आने वाले घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में संबंधित लोगों को परामर्श देकर समस्या का समाधान किया जाता है।
शहरी क्षेत्र में जिन थानों में ऐसे परामर्श केंद्र चल रहे हैं, वहां हर माह करीब 20-25 मामले आते हैं। यहां महिलाएं तब आती हैं जब घरेलू झगड़े में उन पर होने वाले अत्याचार बर्दास्त से बाहर हो जाता है। इन दिनों आने वाले अधिकतर मामले शराब पीकर पत्नी को पीटने के हैं। आश्चर्य की बात है कि उच्च शिक्षित और अच्छे घरों की महिलाएं ज्यादा प्रताडि़त हैं। ऐसे मामलों में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने से पूर्व परामर्श की सुविधा है। लेकिन थाने के बाहर ऐसा कोई केंद्र नहीं होने से महिलाएं थाने में बेहिचक नहीं आ पाती हैं।
पढ़ी लिखी महिलाएं ज्यादा प्रताडि़त
समाज में यह धारणा है कि गरीब समुदाय के लोग अपनी पत्नियों को ज्यादा प्रताडि़त करते हैं, लेकिन आने वाले केसों की हकीकत यह है कि पढ़े-लिखे परिवारों में महिलाएं ज्यादा प्रताडि़त हो रही हैं। कई मामलों में यह होता है कि पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं, तो कोई किसी की नहीं सुनना चाहता है। पति की मानसिकता यह होती है कि पत्नी लोकलाज के कारण थाने नहीं पहुंचेगी, इसलिए वह जुल्म करने से नहीं डरते हैं। आजकल डॉक्टर, इंजीनियर जैसे दूसरे प्रतिष्ठिïत सेवाओं से जुड़े परिवारों की महिलाएं शिकायत लेकर थाने पहुंचने लगी हैं। संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने से गैर-सरकारी संस्थाओं की और से संचालित विभिन्न केंद्र में महिलाओं को रखने की व्यवस्था की गई है। लेकिन संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने से घरेलू हिंसा पीडि़तों के लिए स्वतंत्र पुर्नवसन केंद्र की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है।
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