मंगलवार, दिसंबर 22, 2009

दलित के हाथ में सत्ता नहीं देना चाहती कांग्रेस- अली अनवर

संजय तिवारी
अली अनवर, अध्यक्ष, पश्मांदा मुस्लिम महाज अली अनवर पश्मान्दा मुस्लिम महाज के नेशनल प्रेसीडेन्ट हैं और राज्यसभा में जद (यू) के मुख्य सचेतक हैं. रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत करवाने में अकेले अली अनवर की ही भूमिका है. पिछले दो साल से लगातार वे इस रिपोर्ट को सदन में पेश किये जाने के लिए अभियान चला रहे थे. रंगनाथ मिश्रा आयोग के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर हमने उनसे लंबी बात की. प्रस्तुत है अली अनवर से पूरी बातचीत-

सवाल- रंगनाथ मिश्रा आयोग के बारे में आप क्या कहेंगे?
जवाब- रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन भारत सरकार के नोटिफिकेशन पर 2004 में किया गया जिसका पूरा नाम है भाषाई एवं अल्पसंख्यक धर्म आयोग. गठन के एक साल तक तो यह आयोग काम ही नहीं शुरू कर सका था. गठन के तीन साल बाद 2007 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसके दो साल सात महीने बाद दिसंबर 2009 में सरकार ने इसे सदन पटल पर रखा. रिपोर्ट सदन पटल पर कैसे आयी इसे आप सब जानते हैं. वह भी तब जब मुख्य सूचना आयुक्त ने कहा कि आप रिपोर्ट सार्वजनिक कीजिए और मीडिया में रिपोर्ट के हिस्से छपने लगे. फिर भी सरकार हीला हवाली कर रही थी जिसके बाद मैंने अकेले दो बार राज्यसभा को इस मुद्दे पर नहीं चलने दिया तब जाकर सरकार ने आश्वासन दिया कि वह शीत सत्र के समापन से पहले रिपोर्ट को सदन पटल पर रखेगी. हमें इस मुद्दे पर सभी दलों से समर्थन मिला. कम से कम भाजपा ने भी यह तो कहा ही कि रिपोर्ट सदन पटल पर आनी चाहिए. लेकिन सरकार ने एक तो रिपोर्ट को सदन स्थगित होने वाले दिन इसे सदन पटल पर रखा और वह भी बिना एटीआर के. यह न सिर्फ रिपोर्ट के साथ अन्याय है बल्कि सुप्रीम कोर्ट का भी अपमान है.

सवाल- क्या सरकार जानबूझकर ऐसा कर रही है?
जवाब- बिल्कुल। सरकार की शुरू से ही इस रिपोर्ट को दबाने की मंशा साफ दिख रही है. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आयी तो सरकार ने उसे अल्पसंख्यकों का वोट बटोरने के लिए खूब इस्तेमाल किया. लेकिन रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए तैयार नहीं थे. आयोग की रिपोर्ट को लेकर सरकार कितनी बेपरवाह थी वह आप इसी से समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए प्रधानमंत्री का समय दिया ही नहीं जिसके बाद आयोग के कुछ लोग प्रधानमंत्री कार्यालय में रिपोर्ट रिसीव करवा आये. इससे ज्यादा कुछ और अनादर हो सकता है इस आयोग का?

हमें मुसलमान होने के नाम पर 10 प्रतिशत आरक्षण नहीं चाहिए. रंगनाथ मिश्रा आयोग की इस सिफारिश का हम भी विरोध कर रहे हैं. लेकिन दूसरी सिफारिशें जरूर मान्य की जानी चाहिए.सवाल- इस आयोग में ऐसा क्या है जो सरकार इस रिपोर्ट को लेकर इतनी उदासीन है?
जवाब- असल में आयोग के काम काज में सुप्रीम कोर्ट के कहने पर एक क्लाज जोड़ा था. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में दलित ईसाईयों के आरक्षण को लेकर एक केस की सुनवाई हो रही थी. इसी वक्त सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के काम काज में एक और टर्म्स आफ रिफरेन्स जुड़वाया कि यह आयोग अन्य धर्मों में भी दलितों की पहचान करेगा. सुप्रीम कोर्ट के इसी निर्देश के बाद सरकार ने आयोग के काम काज में इसे जोड़ दिया. बस यहीं से सरकार इस आयोग को लेकर उदासीन हो गयी.

भारत में अभी सिर्फ हिन्दू, सिख और बौद्ध के अलावा अन्य किसी धर्म में दलित को मान्यता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जब यह कह दिया कि अन्य धर्मों में दलित की पहचान का काम भी यह आयोग करे तो सरकार इस आयोग को लेकर उदासीन हो गयी. इसीलिए रिपोर्ट को ढाई साल तक रिपोर्ट को दबाकर रखा और अब बिना एटीआर के रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत कर दिया. यह एक तरह से सुप्रीम कोर्ट और संसद दोनों का अपमान है.

सवाल- रंगनाथ मिश्रा आयोग ने क्या अन्य धर्मों में दलित की पहचान की है?
जवाब- बिल्कुल. 1950 के प्रेसिडेन्सियल आर्डर के तहत जो व्यवस्था कायम की गयी है कि सिर्फ हिन्दुओं में ही दलित हैं उसे रंगनाथ मिश्रा आयोग ने असंवैधानिक माना है. रंगनाथ मिश्रा आयोग ने इसे उतना ही गलत माना है जितना धर्म के आधार पर भेदभाव करना. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे वापस लेने की सिफारिश की है.

सवाल- इसका व्यावहारिक परिणाम क्या होगा?
जवाब- अगर रंगनाथ मिश्रा आयोग की इस सिफारिश को मान लिया जाता है तो दूसरे धर्म के दलितों को एससी कोटे में जगह मिलेगी जिससे वह उन्हीं दलितों के समान अवसर पा सकेंगे जैसे हिन्दू, सिख और बौद्धों को मिला हुआ है.

सवाल- आयोग और कौन सी मुख्य सिफारिशें हैं?
जवाब- देखिए, रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट दो खण्डों में और चार सौ पृष्ठों की है. लेकिन मुख्यरूप से आयोग ने तीन सिफारिशें की हैं. पहली सिफारिश तो यही है कि 1950 का प्रेसिडेन्सियल आर्डर वापस लिया जाए, दूसरी, अल्पसंख्यकों को 15 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए. लेकिन आयोग अपनी इस दूसरी सिफारिश करते समय एक और महत्वपूर्ण सिफारिश करता है. आयोग कहता है कि अगर अल्पसंख्यकों के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था में कोई पहाड़ जैसी समस्या हो तो 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण में अल्पसंख्यकों के लिए 8.4 प्रतिशत जो सीटें आरक्षित हैं उसमें मुस्लिम ओबीसी के लिए आरक्षित 6 प्रतिशत मार्क को अलग से चिन्हित कर दिया जाए.

सवाल- इसे थोड़ा और स्पष्ट करिए?
जवाब- देखिए रंगनाथ मिश्रा आयोग भी जानता है कि धर्म के नाम पर आरक्षण असंवैधानिक है इसलिए वह जब धर्म के नाम पर 15 प्रतिशत के आरक्षण की संभावना बतायी है तो आयोग एक वैकल्पिक व्यवस्था भी देता है. देश में धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. यह जानते भी आयोग ने 15 प्रतिशत आरक्षण धार्मिक आधार पर देने की वकालत करना गलत है. हम इसका विरोध करते हैं. इस्लाम और ईसाई कभी इसका समर्थन नहीं करेंगे.

सवाल- इसाई और मुसलमान इसका विरोध क्यों करेंगे?
जवाब- अगर रंगनाथ मिश्रा आयोग की इस सिफारिश को मान लें कि धर्म के नाम पर आरक्षण होगा तो इसमें सबसे अधिक नुकसान ईसाईयों और मुसलमानों को ही होगा. हम क्या चाहते हैं? हम सिर्फ यह चाहते हैं कि आयोग ने जिस 1950 के प्रेसिडेन्सियल आर्डर को समाप्त करने की सलाह दी है उसे मान लिया जाना चाहिए. इससे मुसलमान और ईसाई दलितों को एसएसी केटेगरी में जगह मिल जाएगी और उसकी समस्या का समाधान भी हो जाएगा और सांप्रदायिक सद्भाव नहीं बिगड़ेगा. अगर धर्म के नाम पर आरक्षण दिया जाएगा तो देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा. इसका विरोध तो हम सब कर रहे हैं. और अभी ईसाईयों और मुसलमानों को विभिन्न वर्गों में जो सुविधाएं मिली हुई हैं वे सब धर्म के नाम पर आरक्षण मिलने पर खत्म हो जाएगा. आप ही बताइये हम भला धर्म के नाम पर आरक्षण को कैसे मान सकते हैं?

सवाल- भाजपा का इस पूरे मसले पर क्या रुख है?
जवाब- भाजपा इस पूरे मामले में गंदा खेल खेल रही है. उनके लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं. वे वास्तविक स्थिति को सामने रखने की बजाय इसे राजनीतिक रंग दे रहे हैं. हम भी तो यही कह रहे हैं कि धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं होना चाहिए. हम सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के नाम पर आरक्षण मांग रहे हैं. इसमें गलत क्या है? हम खुद मुसलमान होने के नाते आरक्षण की मांग नहीं कर रहे हैं. लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों ही बात को बिगाड़ रहे हैं और इसे सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं. इससे असल बात पीछे छूट जाएगी और राजनीति हावी हो जाएगी.

सवाल- और कांग्रेस क्या कहती है?
जवाब- कांग्रेस भी ड्रामेबाजी कर रही है. वह दलितों का भला नहीं चाहती है. वे दलितों के हाथ में सत्ता नहीं देना चाहते. दलितों के नाम पर राहुल गांधी ड्रामेबाजी कर रहे हैं. मुसलमान और ईसाई दलितों को आरक्षण राजनीतिक एजेण्डा है जिसे कांग्रेस पूरा नहीं करना चाहती. दलित मुसलमानों की आज भी कोई नुमाइंदगी नहीं है हमारे संसद में. रंगनाथ मिश्रा आयोग इस दिशा में रास्ता खोल रहा है लेकिन कांग्रेस जानबूझकर इसमें अडंगा लगा रही है.

सवाल- आप चाहते क्या हैं?
जवाब- धर्म चाहे कोई भी हो लेकिन भारत में जाति व्यवस्था वास्तविकता है. कोई भी धर्म जाति व्यवस्था के गुण-दुर्गुण से मुक्त नहीं है. अगर हिन्दू दलितों को आगे बढ़ने का मौका है तो फिर मुसलमान दलित और ईसाई दलित को आगे बढ़ने का मौका क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? भारतीय संसद में कुल तीस मुसलमान सांसद हैं लेकिन उसमें दलित मुसलमान कितने हैं? एक भी नहीं. बीस इसाई सांसद हैं जिसमें एक भी दलित वर्ग से नहीं है. क्या इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए? क्या सिर्फ हिन्दू दलितों की ही चिंता होगी? दूसरे धर्मों के दलितों की चिंता क्यों नहीं होनी चाहिए?

सवाल- तो क्या आप बड़ी राजनीति की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं?
जवाब- देखिए हम सिर्फ यह चाहते हैं कि मजहब के आधार पर हम दलितों को बांटने की कोशिश बंद होनी चाहिए। हिन्दू हो या मुसलमान दलित सब जगह दलित एक समान है. इसलिए हम चाहते हैं कि सभी धर्मों के दलितों में एकता हो. धर्म के नाम पर दलितों को बांटने का खेल बंद होना चाहिए. सभी दलित एक समान हैं फिर चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या फिर ईसाई. इसलिए इनकी पहचान सिर्फ दलित के तौर पर होनी चाहिए. इसे आप बड़ी राजनीति कह सकते हैं क्योंकि हम मजहब के नाम पर होनेवाली राजनीति हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहते हैं. हमारी मांग पूरी तरह से सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर आरक्षण पाने की है जिसकी मंजूरी हमारा संविधान भी देता है और अब रंगनाथ मिश्रा आयोग भी विकल्प रूप में जो सुझाव दे रहा है उसे मांनने के अलावा और कोई चारा नहीं है. यह देश और समाज दोनों के हित में है. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है गरीबी को दूर करने के िलए सरकार उपाय तो करे ही लेकिन आरक्षण जाति के आधार पर गलत नहीं है. धर्म बदलने से भी अगर व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में बदलाव नहीं है तो क्या उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए? मैं खुद अंसारी हूं लेकिन मैं यह आरक्षण मुसलमान होने के नाते अपने लिए नहीं मांग रहा हूं. मैं मुसलमान दलितों के लिए आरक्षण की मांग कर रहा हूं. यह उनकी जरूरत है.

हम ऐवान (संसद) में अकेले थे लेकिन आवाम में हम अकेले नहीं होंगे. हम इंसानियत के इस सवाल को लेकर आवाम के बीच जाएंगे.सवाल- धर्म के आधार पर आरक्षण गलत तो जाति के नाम पर आरक्षण सही कैसे है?
जवाब- धर्म के नाम पर आरक्षण पहले तो असंवैधानिक है और यह कभी हो नहीं सकता. और हर धर्म में ऊंच नीच है. मैं कह रहा हूं कि जाति के नाम पर आरक्षण होना चाहिए और आरक्षण का लाभ सिर्फ जरूरतमंदों को मिलना चाहिए. हम तो कहते हैं कि हम अल्पसंख्यक नहीं है. हम बहुसंख्यक है. हम दलितों की एकता चाहते हैं फिर वे किसी भी धर्म हों. यही नैसर्गिक, स्वाभाविक और मूल बात है. सांप्रदायिकता नामक बीमारी की यह अचूक दवा है.

सवाल- तो क्या ऊंची जाति के मुसलमान आपका विरोध नहीं कर रहे हैं?
जवाब- ऊंची जाति के मुसलमान तो हमारे दुश्मन हैं ही क्योंकि इससे उनको नुकसान होता है. आपको क्या लगता है कि कोई अब्दुल्ला बुखारी और शहाबुद्दीन इस मसले पर हमारा समर्थन करेंगे. उनका वश चले तो न जाने मेरे साथ क्या करें. लेकिन इस सवाल पर मैंने संसद में भी कहा कि भले ही यहां मेरा साथ कोई नहीं दे रहा है मैं इस मसले को आवाम के बीच लेकर जाऊंगा और वहां मैं अकेला नहीं रहूंगा. आप देखिए सदन में अल्पसंख्यक सांसदों की संख्या पचास के करीब है लेकिन इस मसले पर कोई सांसद आगे नहीं आया. ये सारे सांसद ऊंची जाति के हैं. रसूखवाले लोग हैं. उन्हें दलित मुसलमानों से कोई हमदर्दी आखिर क्यों होगी?

सवाल- आगे आप अपनी मांग के समर्थन में क्या करेंगे?
जवाब- मैंने पहले ही कह दिया है लोगों के बीच जाऊंगा. सरकार को मजबूर कर दूंगा कि वह रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिश को माने और दलितों को उसका वाजिब हक दे. जब तक यह नहीं हो जाता तब तक न हम चैन से बैठेंगे न तो सरकार को चैन से बैठने देंगे.

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