गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

हरा ही रह गया जख्म, सरकार छल कर चली गई

संजय स्वदेश
नागपुर।
नागपुर के शीतसत्र में पृथक विदर्भ के मुद्दे को जोर पकड़ते देख भले ही सरकार ने विदर्भ के लिए 99 घोषणाएं कर दी हों, विदर्भ के बुद्धिजीवियों में यह चर्चा है कि ये घोषणाएं भरमाने भर के लिए हैं। विदर्भवासियों का ध्यान पृथक विदर्भ आंदोलन से हटाने के लिए है। मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल ने 99 घोषणाएं करते हुए 10 हजार करोड़ के विकास पैकेज की नियमित वार्षिक बजट से अतिरिक्त राशि की बात कही है। पैकेज के नियोजन की चाबी तो महाराष्ट्र सरकार ने अपने पास ही रख ली। पहले भी विदर्भ के लिए लुभावनी घोषणाएं हुई, पर परिणाम कभी भी संतोषजनक नहीं निकल पाया। सरकार का वादा है कि अगले तीन साल में विदर्भ की तमाम सिंचाई और कृषि समेत अन्य सभी विकास की 99 योजनाओं पर यह अतिरिक्त राशि खर्च की जाएगी, पर योजनाओं को समयावधि में पूरा करने के विषय पर निगरानी की जिम्म्ेदारी के लिए कोई एजेंसी तय नहीं की गई है। विदर्भ जनआंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी का कहना है कि जिन घोषणाओं को पैकेज का नाम दिया गया है, वास्तव में पैकेज है ही नहीं। सभी घोषणाएं पिछले बजट में कही गई बातों को एक साथ जोड़ कर पैकेज बनाने की कोशिश की गई है। सरकार ने जिस हाऊ सिंग योजना की बात की है, वह केंद्र सरकार की योजना है। कई क्षेत्रों में बैकलॉग है, उस पर कुछ भी नहीं कहा गया।
फिलहाल विदर्भ में सूखा पड़ा है। मवेशियों के लिए चारा नहीं है। संभावना थी कि शीतसत्र में इसके लिए सरकार कुछ खास करेगी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। विपक्ष प्रभावी नहीं दिखा। विदर्भ की जनता बेहाल हो चुकी है। किसानों को अब उनकी उपज की कीमत 2011 में मिलेगी। गंभीर समस्या यह है कि अब 2010 में किसानों का गुजारा कैसे चलेगा। सरकार के सभी पहले के वादे झूठे निकले हैं।
ज्ञात हो कि पिछली बार शीतसत्र में नागपुर में जीरो लोड शेडिंग की घोषणा की गई थी लेकिन घोषणा पर आज तक अमल नहीं किया गया। अमरावती से 350 करोड़ के प्रसंस्करण संयंत्र को नांदेड स्थानांतरित कर दिया गया। विदर्भ की सिंचाई परियोजनाओं की राशि कहीं और खर्च किये जाने और विदर्भ की परियोजनाओं को अधर में छोडऩे के अनेक उदाहरण हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव, सरकार बनने की गहमागहमी और विभागों की बंटवारे के खींचतान के बीच 13 बड़ी बिजली कंपनियां किसानों के लिए सिंचाई के पानी पर कानूनी रूप से डाका डालने में सफल हो गई। पहले महाराष्ट्र में चल रही बिजली परियोजनाओं राज्य सरकार की इकाई सिंचाई विकास महामंडल को अपने उस प्रस्ताव पर मंजूरी ले लिया है, जिसमें बिजली परियोजनाओं के लिए सिंचाई परियोजनाओं से पानी की मांग की गई थी। मंजूरी के बाद सिंचाई की विभिन्न परियोजनाओं से करीब 324.51 एमएमक्यूब पानी बिजली कंपनियों को मिलेगा। जिन बिजली कंपनियों को सिंचाई का पानी दिया जाएगा, उसमें विदर्भ की कई सिंचाई परियांजनाएं भी हैं। इसके साथ ही विदर्भ की बिजली से महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्र प्रकाशमान हो रहे हैं। लेकिन विदर्भ के कल कारखानों और किसानों को बिजली से वंचित रहता पड़ता है। खनिज और वन संपदा के साथ जल स्रोतों की उपलब्धता विदर्भ के विकास के लिए पर्याप्त है। साफ है कि पैकेज आंकड़ों की बाजीगरी के अलावा कुछ भी नहीं है।
-------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं: