संजय स्वदेश
ठंड के मौसम में तिब्बती शरणार्थियों के गर्म कपड़ों से कौन परिचित नहीं होगा। हर साल सर्दी शुरू होते ही देश के प्रमुख शहरों में कई तिब्बती सपरिवार आते हैं। उनके रंग-बिरंगे फैशनेबल गर्म कपड़े नागपुर के लोग खूब पसंद करते हैं। गर्म कपड़ों के खरीदार शायद ही उनके आंखों में झांकते दर्द को पढऩे की कोशिश करते होंगे। पचास साल हो गए। तिब्बती लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में निर्वासित जीवन जीने को अभिशप्त हैं। हालांकि सरकार ने उन्हें गुजारा करने के लिए खेती की जमीन भी दी है। खेती से इतनी आय नहीं होती कि वे साल भर गुजारा कर सकें । लिहाजा, सर्दी शुरू होते ही वे विभिन्न शहरों में गर्म कपड़े बेचने निकल पड़ते हैं। 50 साल से खानाबदोश जीवन से तंग तिब्बती परिवार, नई पीढ़ी को इस पेशे नहीं जोडऩा चाहते हैं।
संतरानगरी नागपुर के मध्य में स्थित यशवंत स्टेडियम के समीप पटवर्धन मैदान में तिब्बती शरणार्थियों ने गर्म कपड़े की दुकानें सजा दी हैं। ये वर्षों से संतरानगरी में आ रहे हैं। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि संतरानगरी के इन मेहमानों का जीवनयापन केवल गर्म कपड़ों के व्यवसाय से नहीं चलता है। यह उनका केवल तीन-से चार महीने का व्यवसाय है। बाकी समय तो वे खेती करते हैं। खेती में जी-तोड़ मोहनत के बाद भी उन्हें इतनी कमाई नहीं होती कि वे साल भर गुजारा कर सकें। मौसम ने बेरुखी दिखाई तो खेती से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। तब इस नुकसान की भरपाई अक्सर सर्द मौसम में गर्म कपड़ों के व्यापार से होती है। मैसूर की डोलमा ने बताया कि वह 5 एकड़ जमीन में खेती करती हैं, पर खेती में लागत ज्यादा होने और मौसम की बेरुखी से जब अच्छी फसल नहीं होती तब आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें इस पेशे में नहीं लाना है, क्योंकि यह बहुत तकलीफ वाला है। सर्द मौसम में सुबह जल्दी उठ कर घर का काम, फिर स्टॉल सजाओ, रात को घर वापस जाकर खाना बनाना-खाना। अपने लिए समय ही नहीं मिलता है। प्रेमा दसवीं की छात्रा है। उसके परिवार के लोग गोंदिया में चावल की खेती करते हैं। कहती है वह केवल दुकान में बैठती है। बारी-बारी से दुकान में बैठने से घर के दूसरे लोग आराम कर लेते हैं। हुबली की भी यही परेशानी है। कहती हंै कि जब खेती पर मौसम की मार पड़ती है, तो सर्दी में फैशनेबल गर्म कपड़ों का साथ मिलता है। नागपुर के लोग गर्म कपड़ों में भी फैशन और स्टाइल देखते हैं। इसलिए यहां फैशनेबल कपड़े ज्यादा लेकर आते हैं। तेंजिन कहती हैं कि गर्म कपड़ों का व्यवसाय कुछ महीने का है। कई सालों से इसी व्यवसाय से जुड़े हैं, इसलिए दूसरा बदलने की सोचते नहीं। तिब्बती शरणाथियों के संगठन के प्रमुख टी. नूरपुर ने बताया कि अल्पकालीन समय के लिए बने इस बाजार के लिए वे मनपा को चार लाख रुपये किराये के रूप में देते हैं। हर साल मनपा की ओर से ही इस बाजार की व्यवस्था की जाती है। यहां करीब 60 परिवारों के स्टॉल हैं। हर परिवार के नन्हे-मुन्ने इसी बाजार में खेलते हैं। श्री नूरपूर ने बताया कि उनके गर्म कपड़े दिल्ली और पंजाब से आते हैं। कई दुकानदार बैंक से ऋण लेकर स्टॉल सजाते हैं। विश्वसनीयता के आधार पर व्यापारी कपड़े भी उधार देते हैं। नवंबर से जनवरी तक नागपुर में रहते हैं। इस बीच व्यापारी अपनी उधार वसूली के लिए आते हैं। पिछले साल ठंड ज्यादा होने से कपड़े जल्दी बिक गये थे। फिलहाल अभी ठंड नहीं होने से बिक्री सामान्य है। कई दुकानदारों के पास ऋण चुकाने भर की पर्याप्त कमाई नहीं होती तो उनकी चिंता बढ़ जाती है। खेती में उपज और सर्दी कम होने से कई परिवार कर्ज के बोझ से दब जाते हैं।
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