


नागपुर से संजय स्वदेश
कभी देश के अव्वल राज्यों की सूची में आने वाला महाराष्ट्र किसान आत्महत्या के कलंक से कलंकित हो गया। दशक से उपर हो गए। किसान आत्महत्या का सिलसिलान हीं था। पैकेज से भी राहत नहीं मिली। हर साल नई-नई समस्याओं की मार किसानों का सहनी पड़ती है। इस साल कम बारिश, फसलों के कम उत्पादन से किसान परेशान हो उठा है। फिर विकट स्थिति सामने हैं। राज्य की दूसरी गंभीर समस्या है बिजली की कटौती। बिजली कटौती के मामले में विदर्भ के नेता हमेशा अपने उपर पक्षपात का अरोप लगाते हैं। विदर्भ में स्थापित विद्युत ईकाइयों से उत्पादित बिजली से दूसरे राज्यों के शहर रौशन होते हैं। बिजली और सिंचाई की समस्या अब एक दूसरे से गुंथ चुके हैं।
राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी किसान हीतों को लेकर राज्य विधानमंडल में सरकार को घेरने की योजना में है। प्रचंड प्रदर्शन की तैयारी चल रही है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव, सरकार बनने की गहमागहमी और मंत्रिमंडल के बंटवारे के बीच अदानी समेत 13 बड़ी बिजली कंपनियां किसानों के लिए सिंचाई की पानी पर कानूनी रूप से डाका डालने में सफल हो गई हैं। पहले महाराष्ट्र में चल रही बिजली परियोजनाओं की 13 कंपनियों ने राज्य सरकार की ईकाई सिंचाई विकास महामंडल को अपने उस प्रस्ताव पर मंजूरी ले लिया है, जिसमें बिजली परियोजनाओं के लिए सिंचाई परियोजनाओं से पानी की मांग की गई थी। अब सिंचाई की विभिन्न परियोजनाओं से करीब 324.51 एमएमक्यूब पानी बिजली कंपनियों को मिलेगा। जिन बिजली कंपनियों सिंचाई का पानी दिया जाएगा, अभी उनकी तैयारी पूरी तरह से प्रारंभिक अवस्था में हैं। इन्हें शुरू होने में अभी बहुत समय लेगा।
13 बड़ी कंपनियों की बिजली परियोजनाओं ने विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल को बिजली उत्पादन के लिए पानी उपलब्ध कराने के प्रस्ताव को नवंबर के प्रथम सप्ताह में ही सरकार की मंजूरी मिलने की सूचना है। यह वह समय था जब मीडिया और जनप्रतिनिधियों को पूरा ध्यान राज्य की राजनीतिक सरगर्मियों के बीच में थी। बिजली उत्पादन के नाम पर सिंचाई का पानी पीने वाली बिजली कंपनियों का दावा है कि इस पानी के बदले वे 12379.80 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेगी। पर यह बिजली गरीब, किसानों को मिलेगी या नहीं, इसे सुनिश्चत नहीं किया गया है।
यह पहला मौका है जब महामंडल ने निजी कंपनियों को सिंचाई परियोजनाओं से पानी उपलब्ध कराने के लिए सहमती दी है। अभी तक विदर्भ के केवल 5 बिजली परियोजनाओं को सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जाता था। हालांकि ये परियोजनाएं सरकारी हैं, बाद में इन्हें कंपनी का रूप दे दिया गया। पहले से पानी उपलब्ध कराई जाने वाली परियोजनाओं में कोराड़ी औष्णिक विद्युत प्रकल्प, खापरखेड़ा औष्णिक विद्युत प्रकल्प, चंद्रपुर औष्णिक विद्युत प्रकल्प, कोराड़ी एक्सटेंशन और पारस औष्णिक विद्युत केंद्र हैं। इन्हें सिंचाई विभाग के विविध परियोजनाओं से 296 एमएमक्यूब पानी उपलब्ध कराया जाता है।
महाराष्ट्र का कुल क्षेत्रफल 3 करोड़ 7 लाख हेक्टेयर है। जानकार कहते हैं कि इसमें करीब 57 प्रतिशत जमीन खेती लायक है। इस खेती लायक जमीन में हर साल करीब 40 से 45 प्रतिशत जमीन पर खेती की जाती है। 16 प्रतिशत जमीन पर दलहन उगाया जाता है। 14 प्रतिशत क्षेत्र में कपास और 12 प्रतिशत क्षेत्र में तिलहन की फसल उगती है। फल और सब्जी-भाजी 4 प्रतिशत और गन्ना महज 3 प्रतिशत क्षेत्र में उगाया जाता है। अन्य उत्पादन में ज्वार की खेती प्रमुख है। रबी के मौसम में होने वाले ज्वार का होने वाला उत्पादन वर्ष 1995 से 98 तक करीब 550 किलो प्रति हेक्टेयर था। आज यह और भी कम हो गई है। इसका कारण यह है कि जिस मौसम में इसकी खेती होती है, जब ज्वार को पर्याप्त मात्रा में सिंचाई नहीं मिल पाता है। करीब एक दशक से ऐसा हो रहा है। अर्याप्त सिंचाई में उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों ने अधिक उत्पादन देने वाले बीज और रासायकिन खाद का उपयोग मजबूरी में करते हैं। इसके लिए कर्ज भी लेना पड़ता है। यदि सिंचाई की सुविधा दुरुस्त कर दी जाए तो किसानों की आधी समस्या स्वत: हल हो सकती है।
पानी की अनुमति लेने वाली कंपनियों की सूची
अदानी पॉवर महा. लि. (90 एमएमक्यूब),
मे. एसएमएस विद्युत प्रकल्प (59 एमएमक्यूब पानी),
पूर्ति सहकारी शक्कर कारखाना (1.31 एमएमक्यूब),
मे. आयडीएल एनर्जी प्रोजेक्ट लि. (7.80 एमएमक्यूब),
मे. विदर्भ इंडस्ट्रीज पॉवर प्रोजेक्ट (13.35 एमएमक्यूब),
मे. आयडीएल एनर्जी प्रोजेक्ट लि. (10 एमएमक्यूब),
अपर्णा इन्फ्राएनर्जी चंद्रपुर (100 एमएमक्यूब),
सारदाम्बिका पॉवर प्लांट (0.33 एमएमक्यूब),
गोसीखुर्द जलविद्युत प्रकल्प, एनटीपीसी मौदा प्रकल्प, मे. लैन्को महानदी थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट मांडवा (40.20 एमएमक्यूब), इंडिया बुल्स पॉवर प्रा. लि. (87.60 एमएमक्यूब), अमरावती थर्मल पॉवर कंपनी (35.92 एमएमक्यूब) है।
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