बुधवार, नवंबर 18, 2009

बढ़ता ही जा रहा है बसपा के बागियों का गुस्सा



भैंस के साथ बसपा कार्यकर्ताओं ने किया प्रदर्शन'वीर सिंह, सचान, साखरे हटाओ,


महाराष्ट्र बसपा बचाओÓ अभियान जारी


संजय स्वदेश


नागपुर। करीब एक दशक पूर्व महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूत पांच जमा कर कांग्रेस को शिकस्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बहुजन समाज पार्टी राज्य में पूरी तरह से अंर्तकलह में फंस चुकी है। बीत विधानसभा चुनाव में बसपा के वोट प्रतिशत में भारी गिरावट उसकी ताकत का आईन दिखा चुके हैं। हर का ठिकरा किसके सिर फोटो जाए, इसको लेकर राज्य के कार्यकर्ता और पदाधिकारी आपस में भीड़े हुए हैं। महाराष्ट्र में बसपा के प्रभारी पदाधिकारियों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। गत एक नवंबर से शुरू हुआ बसपा पदाधिकारियों के खिलाफ बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ है। मंगलवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मेडिकल कॉलेज चौक पर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के महाराष्ट्र प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ एक भैंस पर नारे लिख कर प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर बसपा सुप्रीमों बहनजी का दलाल होने आरोप लगाया है। ज्ञात हो कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद कार्यकर्ताओं में उपजा असंतोष और विवाद चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बढ़ता जा रहा है। इस असंतोष को दबाने के लिए पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेश साखरे ने सात समर्पित कार्यकताओं को निष्कासित कर दिया था। इससे मामला और भड़क गया। अगले दिन नारी रोड स्थित पार्टी के कार्यालय में पार्टी के अन्य दस पदाधिकारियों ने इस्तीफा देकर राज्य पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों को हटाने की मांग करते हुए धरने पर बैठ गए थे। उन्होंने कार्यालय पर ताला भी ठोक दिया था। पार्टी सेअसंतुष्ट कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी की डूबती नैया को बचाने के लिए शीर्ष पदाधिकारी वीर सिंह, के।के सचान, सुरेश साखरे को हटाना आवश्यक है। इसके लिए वे हर प्रदर्शन में 'वीर सिंह, सचान, साखरे हटाओ, महाराष्ट्र बसपा बचाओÓ के नारे लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी पार्टी के बागी नेताओं के धरना आंदोलन को विदर्भ के कार्यकताओं का समर्थन है। बसपा पार्षद हबीबुर्रहमान अंसारी ने पिछले दिनों कहा था कि विधानसभा चुनाव में बसपा की करारी हार की जिम्मेदारी प्रभारी नेताओं की है। वे राज्य में पार्टी का बेड़ागर्क करना चाहते हैं, लेकिन हम उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। ज्ञात हो कि एक दशक पूर्व तक विदर्भ में प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच तीसरी ताकत बन कर उभरी बहुजन समाज पार्टी का जमीन लगातार खिसकती जा रही है। हर बार प्रमुख दल विशेष कर कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाने वाला हाथी इतनी सुस्त पड़ गया कि कई सीटों पर जीत का अंतर बसपा उम्मीदवार को मिले कुल वोटों से भी ज्यादा नजर आया।पिछले दिनों पार्टी कार्यकर्ताओं को यह भनक लगी थी कि उत्तर प्रदेश में हो रहे उप चुनावों के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी पदाधिकारियों से राज्य विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार की खोज खबर लेने वाली थी। इसे लेकर पार्टी पदाधिकारियों के पहले से ही हाथपांव फूले हुए थे। इसके बाद पार्टी का विद्रोह के तेवर तेज हो गए। पार्टी पार्टी की हार की समीक्षा के लिए आयोजित हर बैठक में शीर्ष पदाधिकारियों को विरोध का सामना करना पड़ा था।


कोई टिप्पणी नहीं: