शनिवार, नवंबर 28, 2009
रोजगार की गारंटी, पर बेरोजगार तो मिलें
संजय स्वदेश
महाराष्ट्र में रोजगार गारंटी योजना कानून 1977 में तैयार किया गया। 26 जनवरी, 1979 को लागू हुआ। नियमानुसार जो भी मजदूर सरकार से काम मांगता है, उसे 15 दिन में गांव के पास ही काम मिलना चाहिए। काम नहीं दिया गया तो शासन की ओर से बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है। महाराष्टï्र से ही प्रेरणा लेकर केंद्र सरकार ने राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार योजना फरवरी 2006 में शुरू की। अब केंद्र व राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से देश के कई राज्यों में यह योजना चल रही है।
समय-समय पर इस योजना के लाभ और इसका नजायज लाभ लेने संबंधी खबरे आती रही। पर अब नई खबर यह है कि देश में सबसे पहले गारंटी योजना लागू करने वाले राज्य महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों में इस योजना के तहत कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पिछड़े जिलों में स्थिति ठीक है। मजदूर नहीं मिलने की समस्या उन जिलों की है जहां अधिक उद्योग-धंधे हैं।
के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। राज्य की महाराष्ट्र ग्रामीण रोजगार गारंटी (हमी) योजना राजय के नागपुर विभाग के अंतर्गत विदर्भ के भंडारा, चंद्रपुर, गढ़चिरोली, गोंदिया जिले को शामिल किया गया। 1 अप्रैल 07 को वर्धा तथा 1 अप्रैल 08 को नागपुर जिले को इस योजना में शामिल किया गया। योजना में मजदूर परिवार को 100 दिन का काम प्रतिदिन 86 रुपये के हिसाब से दिया जाता था, जो अब बढ़ कर 105 रुपये हो गई है। मजदूरों की मजदूरी राष्टï्रीयकृत बैंक अथवा डाकघर से भुगतान किया जाता है। योजना के तहत सिंचाई, वनीकरण, सामाजिक वनीकरण, कृषि आदि विभागों के कार्य किये जाते हैं।
पर राज्य में बेरोजगारी का आलम होने के बाद भी रोजगार गारंटी योजना के लिए सरकार को मजदूर नहीं मिल रहे हंै। फिलहाल महाराष्टï्र ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत नागपुर जिले में 43 कार्य चलाए जा रहे हैं। इन कार्यों के लिए कुल 811 मजदूरों की आवश्यकता है लेकिन केवल 464 मजदूर ही काम में लगे हैं। लिहाजा रोजगार गारंटी योजना के तहत होने वाले विभिन्न सरकारी कार्य सुस्त गति से चल रहे हैं।
जिला परिषद और पंचायत समिति स्तर के कार्यों की गति धीमी होने से कार्य से संबंधित राजनीतिक कार्यकर्ता जिला परिषद के बड़े नेताओं व अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। मजेदार बात यह है कि गारंटी योजना के तहत मजदूर नहीं मिलने की समस्या आरंभ से ही है। इस साल की शुरुआत से ही मजदूरों की कमी बनी हुई है। आंकड़ों के अनुसार जहां गत अप्रैल माह में जिले में 14 कामों में केवल 407 मजदूर थे। वहीं नवंबर में चल रहे कुल 43 कार्यों में 464 मजदूर ही काम में लगे हैं। इससे योजना के प्रति मजदूरों की उदासीनता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। विश्वस्त सूत्र कहते हैं कि सरकारी आंकड़ों में कार्य करने वाले कई मजदूरों के नाम फर्जी भी हैं। कई ठेकेदार मजदूर नहीं मिलने के कारण फर्जी नाम जोड़ कर मजदूरों की संख्या दिखा रहे हैं और उनकी मजदूरी उठा रहे हैं। वहीं विभागीय स्तर पर रोजगार योजना के तहत मजदूर बढ़ रहे हैं। 6 जिलों में 4 साल की तुलना में इस बार सबसे ज्यादा मजदूर मिले हैं। सन् 2005-06 में अप्रैल माह में नागपुर विभाग में 52 हजार मजदूरों ने काम किया था। सन् 2006-07 में 49,260, सन् 2007-08 में 40,956 मजदूरों ने काम किया, वहीं 2008-09 तक 1 लाख से भी ज्यादा मजदूर कार्यरत थे।
नागपुर विभाग के दूसरे जिलों में उद्योग धंधे कम होने और रोजगार के दूसरे विकल्प नहीं होने के कारण मजदूर इस योजना के तहत काम करने के इच्छुक होते हैं। वहीं नागपुर जिले में दूसरे जिलों की अपेक्षा ज्यादा उद्योग व रोजगार के अन्य विकल्प होने के कारण मजदूर रोजगार गारंटी योजना में काम नहीं करना चाहते हैं। इस योजना के तहत मजदूरों की कमी एक कारण मजदूरी का कम होना भी है। पहले योजना के तहत प्रतिदिन 86 रुपये की मजदूरी मिलती थी जो बढ़ कर 105 रुपये हो गई है। इसके बाद भी मजदूरों की कमी है क्योंकि नागपुर जिले के मजदूर दूसरे कार्यों में प्रति दिन 105 रुपये से ज्यादा कमा लेते हैं। योजना के तहत काम में अरुचि होने का अन्य कारण मजदूरी के भुगतान में देरी भी है। निजी क्षेत्र के मजदूरों को जहां हर दिन के हिसाब से भुगतान होता है, वहीं इस योजना के तहत कार्य करने वाले मजदूरों को अपने भुगतान के लिए दो-दो सप्ताह का इंतजार भी करना पड़ता है।
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