संजय स्वदेश
महाराष्ट्र की सबसे बड़ी गृह निर्माण संस्था म्हाडा से शहर के वे लोग हमेशा इस बात की आस लगाए रखते हैं, जिन्हें शहर में उंची कीमत पर मकान-फ्लैट खरीदने की कूबत नहीं होती है। हर शहर का एक वर्ग यह सपना देखता है कि शायद उनकी किस्मत में म्हाडा के मकान की कोई लॉटरी लग जाए और सस्ते में अपना आशियाना मिल जाए। पर इन दिनों यह सपना देखने वाले क्या जानें कि अब शायद ही म्हाडा उन्हें सस्ते में मकान शायद यही उपलब्ध करा पाये। आप माने या न मानें, राज्य की सबसे बड़ी गृहनिर्माण संस्था म्हाडा भूमिहीन हो चुकी है। म्हाडा की नागपुर और पुणे संभाग के पास जनता को सस्ते में मकान उपलब्ध कराने के लिए जमीन नहीं है। इसका लाभ कुछ बड़े भू-मालिक उठाने के फिराक में हैं। म्हाडा महंगी दरों पर बड़े-बड़े भू-स्वामियों से जमीन खरीदने पर मजबूर है। मंदी के महौल में कई बड़े भूस्वामियों ने म्हाडा से साठ-गांठ कर महंगे दरों पर अपनी जमीन बेची और कई बेचने के फिराक में हैं। कुछ भू-स्वामियों ने तो म्हाडा अधिकारियों से सांठ-गांठ कर शहर से काफी दूर स्थिति उन जमीनों को काफी महंगे दामों पर बेच दिया, जिसे तत्काल भविष्य में किसी तरह की लाभ की गुंजाईश नहीं दिख रही थी। यदि वहां अवास योजनाएं बनाईं भी जाएं तो लोग जाना नहीं चाहेंगे। खुद की जमीन नहीं होने से म्हाडा की अनेक लोक कल्याणयोजनाएं अटकी हुई हंै। सैकड़ों जरूरतमंद म्हाडा में आस लगाए हुए हैं कि कब सस्ते मकानों का विज्ञापन निकलें और उनकी किस्मत में सस्ता मकान आ जाए।
शुक्रवार, नवंबर 27, 2009
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