सोमवार, नवंबर 30, 2009
सफेद सोना से खाली रहेगी सरकारी झोली
संजय स्वदेश, नागपुर। एक जमाने में विदर्भ में के किसान एक क्विंटल कपास खरीद कर एक तोला सोना खरीदता था। इसी लिए विदर्भ में कपास को सफेद सोने की संज्ञा दी जाती है। पर अब वे दिन हवा हुए। पसीने के गुलाब होने का समय बीत चुका है। आज विदर्भ का किसान 5 क्विंटल कपास बेच कर भी एक तोला सोना नहीं खरीद सकता है। बी.टी.कॉटन ने विदर्भ के किसानों में आत्महत्या करने की मजबूरी जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने राहत देने के लिए कपास खरीदी के सरकारी केंद्र शुरू कर समर्थन मूल्य देना शुरू किया। फिर भी किसानों को राहत नहीं हुई। इस साल फिर से स्थिति पिछले साल की तरह है।
विदर्भ के विभिन्न जिलों से यह खबरें आ रही है कि किसान सरकारी कपास खरीदी केंद्र पर कपास बेचने नहीं जा रहे हैं। सरकारी केंद्र पर कपास नहीं बेचने का कारण यह है कि वहां भाव कम मिल रहे हैं। वहीं कई जिलों में खरीदी केंद्र इतना दूर है कि किसान वहां तक कपास लेकर नहीं पहुंच रहे हैं। चंद्रपुर जिले में तो स्थिति यह यह है कि पड़ोसी राज्य आंध्र-प्रदेश के व्यापारी किसानों के कपास सस्ते में खरीद रहे हैं। आंध्र प्रदेश के कुछ व्यापारी चंद्रपुर के किसानों पर नजर रखते हैँ। फसल से पहले ही किसानों को कुछ राशि का बायाना देकर उसे खरीदने का वादा देते हैं। गरीब ओर जरुरतमंद किसान स्थिति और समय से समझौता करते हुए आंध्र व्यापारियों की साहूकारी के फंदे में फंस जाते हैं। यह सिलसिला गत कई सालों से चल रहा है। राज्य में कपास खरीदने में सरकारी एजेंट की भूमिका निभाने वाली संस्था है पणन महासंघ।
राज्य में कपास की खरीदी शुरू हुए तीन सप्ताह से ज्यादा समय हो गए। पर सरकारी केंद्रों पर कपास बेचने में किसानों की भारी अरुचि दिख रही है। स्थिति को देखकर लगता है कि इस बार भी पणन महासंघ को निराशा हाथ लगे। वर्ष 2007-08 और वर्ष 2008-09 में भी किसानों को कपास के मनमुताबिक दाम नहीं मिले। लिहाजा बड़ी संख्या में किसान व्यापारियों की शरण में गए थे। इस साल भी हालत कमोवेश वही दिख रही है। नागपुर जिले के 76 केंद्रों में अब तक लगभग 7678 क्विंटल कपास की खरीदी हो चुकी है जबकि लक्ष्य 150 लाख क्विंटल है।
महासंघ ने इस वर्ष सामान्य कपास खरीदने के लिए 2850 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य निर्धारित किया है। उच्च गुणवत्ता वाले कपास को 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। सरकार ने कपास के भुगतान की राशि 15 दिन में करने का आदेश भी दिया है। इसके बाद भी कपास खरीदी शुरू होने के तीन सप्ताह बाद भी किसानों में उदासीनता बनी हुई है जिससे पणन महासंघ का लक्ष्य शायद ही पूरा हो सके। लिहाजा, सरकार की झोली खाली इस बार भी खाली रहने की संभावना दिख रही है। इस साल भी किसानों का एक बड़ा वर्ग सरकारी कपास खरीद केंद्र के बजाय व्यापारियों के पास जा रहा है। पणन महासंघ को कपास खरीदने की शुरुआत अक्टूबर माह में ही कर देनी चाहिए थी। लेकिन चुनावी प्रक्रिया में देरी होने के कारण 5 नवंबर से कपास खरीदी के केंद्र शुरू हुए। इससे पहले दशहरा, दीपावली आदि पर्व पर आर्थिक तंगी के कारण सैकड़ों मजबूर किसानों ने औने-पौने दाम पर अपने कपास व्यापारियों को बेच दिये। सरकार कपास केंद्र पर कपास कम पहुंचने का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि केंद्र देर से शुरू हुए।
इस साल नागपुर महासंघ ने करीब 300 लाख क्विंटल कपास उत्पादन का अनुमाान लगाया था। लेकिन इस वर्ष देरी से हुई बारिश और फसल में लाल्या रोग लगने के कारण कपास की फसल पर काफी नाकारात्मक असर पड़ा है। इससे बाजार में करीब 200 से 250 लाख क्विंटल कपास ही आने की संभावना है। महासंघ ने इस वर्ष करीब 150 क्विंटल कपास खरीदने का लक्ष्य रखा है। कपास किसानों को आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार ने 500 करोड़ रुपये की गारंटी दी है। 100 करोड़ रुपये मार्जिन मनी के रूप में जारी हो चुके हैं। इसके बाद भी किसानों की विश्वसनीयता व्यापारियों के प्रति ज्यादा है।
ज्ञात हो कि महाराष्टï्र में विशेषकर विदर्भ में कपास का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। पर गत कुछ वर्षों से कपास की अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण स्थिति बदल गई है। विदर्भ के किसानों का एक बड़ा वर्ग कपास की बजाय सोयाबीन या अन्य फसलों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। वर्ष 2007 की तुलना में वर्ष 2008 में नागपुर जिले में 18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कपास उत्पादन कम हुआ है। जहां वर्ष 2007 में करीब 62 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कपास लगाया गया था, वहीं वर्ष 2008 में केवल 44 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही कपास हुआ। इसी बीच सोयाबीन 2.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से बढ़कर 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के ऊपर चला गया है। चालू वर्ष में यह आंकड़ा और कम हो गया है। वर्ष 2009 में करीब 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही कपास उत्पादन हुआ है। किसान पणन महासंघ के केन्द्रों की बजाय अब सीधा व्यापारियों को अपना कपास बेचना पसंद करते हंै। कारण यहां उन्हें पर्याप्त भाव मिलता है। वे भाव को लेकर मोल-भाव कर सकते हैं।
वर्ष 2007-08 में जहां पणन महासंघ ने कपास के प्रति क्विंटल 2030 रुपये दिये थे, वहीं व्यापारियों ने प्रति क्विंटल 2500 रुपये का भाव दिये। 2008-09 में करीब 2600-2700 के भाव दिए गए तब व्यापारियों ने 3000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव दिए थे। इस साल भी सरकारी और निजी व्यापारियों के भाव में काफी अंतर हैं। कई व्यापारी तो 3200 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा के भाव पर कपास खरीद रहे हैं। पिछले वर्ष अनेक दिनों तक पणन महासंघ के खरीदी केन्द्र सुने पड़े थे। महासंघ जनवरी तक बड़ी मुश्किल से 50 क्विंटल कपास किसान से खरीद पाया था। अगर इस साल भी पर्याप्त भाव नहीं दिया जाता है, तो किसान व्यापारियों की तरफ मुड़ सकता है, जिस कारण पणन महासंघ के केन्द्रों में सन्नाटा रहने की संभावना जतायी जा रही है।
नागपुर जिले के गत वर्ष के कुछ आंकड़ें
सन खरीदी (क्विंटल में) भुगतान
2004-05 211.65 लाख 4739.45 करोड़
2005-06 18.85 लाख 336.39 करोड़
2006-07 32.65 लाख 644.77 करोड़
2007-08 1.29 लाख 26 करोड़
2008-09 168 लाख 4716.09 करोड़
०००००००००००००००००००००००००००
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें