संजय स्वदेश
नागपुर के विभिन्न चौक-चौराहों पर गुजरते वक्त दीवारों पर कामगार मुले पाहिजे और उसके नीचे दो मोबइल नंबर लिखा नजर आता है। इस विज्ञापन को गौर से पढऩे वाले शायद सोचते हो कि बच्चे सस्ते मजदूर होते हैं, इसलिए उनके ही रोजगार के लिए यह विज्ञापन होगा। पर इस विज्ञापन को को पढ़कर इसके पीछे के सामाजिक उद्देश्य के बारे में कोई नहीं जानता है। आमतौर पर पढ़ कर लोग यही समझते हैं कि इस माध्यम से बच्चों को काम दिया जाता होगा। पर हकीकत कुछ और है। इश्तहार देने वाले सुजाता नगर के बुद्धरक्षित बन्सोड हैं।
श्री बन्सोड पढऩे-लिखने की उम्र में मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए रोजगार के साथ-साथ शिक्षा की राह आसान करने का बीड़ा उठाये हुए हैं। गत एक वर्ष से वे अब तक दर्जनों बच्चों को शिक्षा की राह दिखा चुके हैं।श्री बन्सोड का कहना है कि हर दिन उनके पास पांच-छह बच्चों को फोन आता है। फोन करने वाले बच्चों को वे घर बुलाते हैं। उनकी हर स्थिति अच्छी तरह से समझते हैं। यदि बच्चो की उम्र 14 साल से ऊपर होती है, तो उसे इस शर्त पर कार आदि की साफ-सफाई का काम देते हैं कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा। यदि लड़के की उम्र 14 साल से कम होती है, तो उसे समझाते हैं और उसे नगर के नि:शुल्क छात्रावास में दाखिला दिलाते हैं। इसके लिए कुछ आर्थिक सहयोग भी देते हैं। स्वयं ट्यूशन पढ़ाते हैं। यदि किसी कारणवश उस समय छात्रावास में दाखिले का समय निकल चुका होता है, तो उसके माता-पिता से मिल कर इस बात के लिए सहमत करते हैं कि बच्चों को पढ़ायें और निश्चित समय पर छात्रावास में दाखिला दिलायें, जहां उन्हें नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी।स्टेशन पर भाग कर आए बच्चों की तलाश बुद्धरक्षित सुबह 4 बजे स्टेशन पर बाहर से भाग कर आने वाले बच्चों की तलाश में जाते हैं। यदि किसी दिन ऐसा लड़का मिल जाता है, तो उससे बातचीत कर दोस्ती करते हैं। उसे काम के साथ-साथ पढ़ाई कराने के लिए सहमत कर अपने घर लाते हैं। फिर उसके साथ घर जाकर बच्चों के माता-पिता से मिलते हैं और उन्हें काम कराने के बजाये पढ़ाने के लिए सहमत करते हैं।कहां से मिली प्रेरणा?बुद्धरक्षित 12 भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उम्र 32 साल की है। बचपन में ही गंदे नाले और गलियों में प्लास्टिक और हड्डियां चुनते थे। उसे बेचने से जो पैसा मिलता था, उससे पेट भरते। एक बार घर से भाग कर मुंबई गए तो वहां गलत लोगों के चंगुल में फंस गए। लेकिन मां की याद ने वापस नागपुर आने के लिए विवश कर दिया। नागपुर वापस आए तो बहुजय हिताय संस्था से संपर्क हुआ। यहां से मजदूरी के साथ-साथ पढ़ाई की प्रेरणा मिली। स्नातक पूरी करने के बाद समाज सेवा में स्नातकोत्तर किया। फिलहाल डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज से कानून की पढ़ाई कर रहे हैं।
जेल में बंद मासूमों को देनी है नई जिंदगीबुद्धरक्षित का कहना हैकि कानून की पढ़ाई करने का मकसद उन बच्चों को एक नई जिंदगी देना है जो बचपन में छोटे-मोटे अपराध के कारण जेल में हैं। भागे हुए बच्चों को पढ़ाने के उद्देश्य से कई लोग आर्थिक मदद देते हैं। 14 साल से अधिक उम्र के जो बच्चो हमारी टीम में होते हैं। वे पढ़ाई के साथ-साथ सप्ताह में एक या दो बार कार धोते हैं। इसके एवज में उन्हें 1000-1200 रुपया मासिक पारिश्रमिक मिल जाता है।क्या कहते हैं लोग?लीक से हटकर काम करने वाले दूसरे लोगों की तरह बुद्धरक्षित को भी लोग पागल समझते हैं। घर वालों के विरोध के चलते अलग से किराये के मकान में रहते हैं। कहते हैं कि जब वे गंदी बस्तियों में बच्चों के माता-पिता को पढ़ाने के लिए समझाने जाते हैं, तो लोग हंसते हैं। लेकिन बुद्धरक्षित को इन सबकी चिंता नहीं। उनका काम तो बस अपने काम में लगे रहना है। उन्होंने बताया कि अब उन्होंने इसके साथ नया काम और शुरू किया है। बस्ती में निर्धन और बेसहारा लोग जब बीमार पड़ते हैं तो उनके इलाज के लिए वे सरकारी अस्पताल ले जाते हैं और मदद करते हैं।
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