शनिवार, जून 05, 2010

नाग नदी का मिटते अस्तिस्व

नागपुर। दुनिया के अधिकतर विकसित शहर किसी न किसी नदी के किनारे बसे हैं। लेकिन बहुत कम शहर ही ऐसे हैं जिसके बीचो-बीच एक नदी गुजरती हो। ऐसे शहरों में नागपुर एक रहा है। नगर के बीचों-बीच गुजरने वाली नाग नदी गंदा नाला बना चुकी है। आज स्थिति यह है कि इसके पास से गुजरने वाले लोग इसकी बदबू के कारण दूर भागते हैं। नदी के नाम से पहचाने जाने वाला नागपुर का नाग नदी नाला बन चुकी है। नयी पीढ़ी इसे नाला के रूप में ही जानती है। उसके सामने नदी कहने पर उसे आश्चर्य होता है।
जानकारों का कहना है कि पिछले साल नागपुर महानगर पालिका और केंद्र की जेएनयूआरएम योजना के तहत नाला नहरीकरण योजना बनाई थी। इसके लिए 248 करोड़ रुपये खर्च के लिए तय किए गए थे। लेकिन इस योजना का क्या हुआ, इसका कहीं कोई आता-पता नहीं है। महापौर देवेन्द्र फडणवीस के कार्यकाल 1995 से 2000 में नाग नदी के सौन्दर्यीकरण के लिए एक विशेष योजना बनाई गई थी। योजना बनाने के लिए इकोसिटी फाऊंडेशन नामक संस्था की मदद की बात भी कही गई थी। बाद में केंद्र की राजग सरकार के कार्यकाल में केंद्रीय नदी संरक्षण प्रकल्प में नाग नदी को भी शामिल कर लिया गया। इसके लिए 30 करोड़ रुपये की भी मंजूरी हुई थी। राशि का कुछ हिस्सा राज्य सरकार व मनपा को भी वहन करना था। इस पर नीरी ने प्रदूषण रिपोर्ट भी तैयार की थी। लेकिन योजना कब और कैसे ठंडे बस्ते में चल गई? किसी को कुछ पता ही नहीं चला।
सामाजिक कार्यकर्ता उमेश चौबे का कहना है कि नदी की सफाई के लिए कई बार मांगे तो उठी, लेकिन कोई आंदोलन नहीं हुआ। 2002-2003 में जब नागपुर का त्रिशताब्दी महोत्व मनाया गया, तब इसकी सफाई के लिए विशेष मांग की गई थी। श्री चौबे का कहना है कि इसी वर्ष मुंबई में उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री विलाश राव देशमुख के साथ बैठक हुई। बैठक में नाग नदी की सफाई की मांग उठाई गई। बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने एक प्रेसवार्ता में यह घोषणा भी कि की नाग नदी की सफाई की जाएगी। लेकिन हुआ कुछ नहीं। इसके अलावा मनपा के बजट में नाग नदी की सफाई के लिए लाखों की राशि आवंटित होती रही है। लेकिन काम कुछ नहीं हुआ है।

इसके अलावा हर साल मनपा की ओर से मानसून आने से पूर्व बरसाती पानी की समुचित बहाव के लिए इसके साफ-सफाई का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत इस नदी के पास से गुजरने पर पता चलता है कि इसके लिए कितना काम हुआ है? लगभग 19 किलोमीटर लंबी यह नदी कूड़ा-करकट और प्रदूषण से गंदे नाले में का रूप ले चुकी है। मनपा नाग नदी की साफ-सफाई के लिए जो अभियान चलाती है, लेकिन इसका पर केवल रुपये ही खर्च होते हैं। हर साल की तरह इस साल भी साफ-सफाई हकीकत में यही है कि इसका कचरा निकला कर किनारे पर ही रख दिया जाता रहा है, बारिश आते ही पानी के बहाव के साथ यह कचरा फिर से नाले में ही मिल जाएगा।

सिचाईं के पानी का स्रोत

भोंसला बंशज राजे मुढ़ोजी भोंसले यह स्वीकारने से नहीं हिचकते कि नाग नदी नहीं रही। यह पूरी तरह से गंदे नाले में परिवर्तित हो चुकी है। इसकी जो वर्तमान चौड़ाई है, वह कभी तिगुनी होती थी। इसके किनारे अतिक्रमण हुए हैं। कभी धोबियों के लिए यह नदी बेहद उपयोगी होती थी। ब्रिटिश शासन काल से कपड़े धोने के लिए उनके लिए घाट बने थे। छह-सात घोबी घाट तो 1965 तक चले। आज कहीं भी यह घाट नजर नहीं आता है। नदी की पानी का उपयोग आमजन विभिन्न कार्यों में करते थे। इसके किनारे होने वाली खेती की सिंचाई, नाग नदी के भरोसे ही थी। किनारे कई मंदिर थे। महाशिवरात्री और नागपंचमी के दिन मेले लगते थे। राजधानी बने रहने तक इसका पानी कई कार्यों में उपयोग होता था। किनारे के बगीचे इसी से सींचे जाते थे। रेसिम बाग, तुलसी बाग में कुंए तो थे, लेकिन सिंचाई के लिए इसके पानी का उपयोग ज्यादा होता था। आश्चर्य की बात यह है कि विभिन्न जन-समस्याओं व पर्यावरण से संबंधित मामलों को लेकर न्यायालय में कई जनहित याचिका दायर की गई। लेकिन नाग नदी की सफाई के लिए किसी ने कोई जनहित याचिका दायर नहीं की। नागपुर नगर की रचना के केंद्र में यह नदी रही है।
करीब 60 के दशक में इसके आसपास अतिक्रमण शुरू हुआ। इसका सारा दोष नगर पालिका को जाता है। नगर पालिका ने इसकी बार्बदी में कम भूमिका नहीं निभाई है। कई जगहों पर नाग नदी की जमीन को स्वयं नगर पालिका प्रशासन ने दूसरे को दिया। सड़क को बढ़ाने के लिए इसकी चौड़ाई घटाई। नदी के किनारे नगर को बसाने में भोंसले राजाओं का उद्देश्य था कि नगर के आमजन को पानी के परेशानी न हो। पानी के कारण नगर में हरियाली से पर्यावरण स्वच्छ रहने के साथ समृद्धी रहेगी। पुराने नागपुर का भूगोल नदी के इर्द-गिर्द ही है। जिस नदी के नाम से शहर को पहचाना जाता है, उसका अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है। 25-30 साल पहले तक नदी का जल अशुद्ध नहीं था और पीने के अतिरिक्त पानी की समस्या नहीं होती थी।
नदी के किनारे रहने वाले बच्चे बीमार
नीरी ने अपनी रिपोर्ट में नाग नदी के पुनर्जीवन को शहर के स्वस्थ व पर्यावरण की दृष्टिï से महत्वपूर्ण बताया है। नीरी के विशेषज्ञों का कहना है कि नदी का जल प्रवाह ढलान की ओर होने से इसमें परेशानी नहीं आएगी। संस्था ने नदी के किनारे रहने वाले कुछ बच्चों की श्वसन प्रक्रिया की जांच की थी। इन बच्चों की तुलना बेहतर वातावरण में रहने वाले दूसरे बच्चों के श्वसन प्रक्रिया से की गई, जिसमें नाग नदी के किनारे रहने वाले बच्चों में सांस लेने में समस्या होने का खुलासा हुआ था।
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