पर्यावरण दिवस पर विशेष
हवाओं में जहर घुल गया है। बारिश के पानी में तेजाबी असर दिखता है। मिट्टी की उपज कम हो गई है। बर्फ के पहाड़ गल रहे हैं। कहीं सूखा हैं, तो कहीं रेगिस्तान में बारिश होती है। नदियां सूख रही हैं, भूजल गिर रहा है। बीमारियां बढ़ती जा रही है। शहर कूड़े के ढेर में बदल रहे हैं और पेड़ पौद्यों के हिस्से की जगह कांक्रिट और प्लास्टिक ने ले ली है। कोई शहर इससे अछूता नहीं है। कभी-कभी किसी खास मौके पर कोई सेलिबे्रटी या फिर किसी संगठन के कार्यकर्ता कचरा सफाई अभियान या फिर पर्यावरण संरक्षण का कोई अभियान चलाकर लोगों को सचेत करने की कोशिश करते हैं। कचरा फैलाने वालों में गरीब नहीं हैं। गरीबों ने कचरे के ढेर से जीविका का रास्ता सुलभ कर लिया है। इसमें महिलाएं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है।
कचरा होगा आमदनी बढ़ेगी
संजय swadesh
नागपुर। संतरनगरी में महिला और बच्चों समेत करीब पांच हजार लोग कचरा से अपनी जीविका चला रहे हैं। अनुमान है कि 65 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। इनके कल्याण के लिए कुछ संगठन सक्रिय होकर काम कर रहे रहे हैं, लेकिन कचरा चुनने वाले के जीवन स्तर में किसी तरह का सुधार नहीं दिखता है। हर वर्ष पर्यावरण दिवस के मौके पर संतरानगरी में किसी न किसी तरह के कार्यक्रम आयोजित कर पर्यावरण सरंक्षण की बात कही जाती है। पर कुछ ठोस नतीजा नहीं निकलता है। पर्यावरण में तरह-तरह के प्रदूषण घुलने की मात्रा हर साल बढ़ती जा रही है।
नागपुर के भांडेवाड़ी डंपिंग यार्ड में हर दिन शहर के कोने-कोने से दर्जनों ट्रक कचरा भर कर लाते हैं। पर शहर में कचरा-चुन कर इसकी साफ-सफाई की जिम्मेदारी भले ही कहने के लिए मनपा के पास हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है की नगर में हजारों ऐसे महिला और बच्चे हैं जो कचरे से न केवल अपना जीवन-यापन करते हैं, बल्कि शहर की गंदगी को कम करते हैं। हर दिन सड़े-गले, बदबू वाले कचरे की ढेर की खाक छानने वाले ये लोग उच्च शिक्षित नहीं हैं। कचरे से पर्यावरण को दूषित करने में इनकी भूमिका भी नहीं है। लेकिन हर दिन कचरे की ढेर से जीविका चलाने वाली महिलाएं शहर की स्वच्छता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
कचरा चुनने वाली चौथी कक्षा की कोमल, छठी कक्षा कि प्रतिज्ञा ने बताया कि वे स्कूल भी जाती हैं। पढ़-लिख कर क्या बनेंगी, अभी तक कुछ सोचा नहीं है। कचरा चुन कर घर का चूल्हा जलाने वाली सुनीता ने बताया कि हर दिन कचरे की ढेर की खाक छानने से 50 से 60 रुपये की आमदनी हो जाती है। पुष्पा राऊत के दो लड़के और एक बेटी हैं। बेटी को पढ़ा रही हैं। पुष्पा नहीं चाहती कि उनकी बेटी भी बड़ी होने तक कचरा से ही अपनी जीविका की राह निकाले। बेटी भी मां के साथ हर दिन इस काम को देती है। स्कूल जाती है, पर सहपाठी नहीं जानते कि वह कचरा भी चुनती है। इसलिए कोई भेदभाव नहीं करता है। रुकमा विभा और मीरा ने बताया कि इस काम को छोड़ कर हर दिन इतनी आमदनी वाला दूसरा कौन-सा काम कर सकते हैं? लोग हमे अछूत मानते हैं, इसलिए घर में नौकरानी भी नहीं रख सकते हैं। पर्यावरण को दूषित करने वाले कचरे के कम होने की दूर-दूर तक संभावना नहीं दिख रही है। जब कचरा होगा तो इसे चुनने वाले की जरूरत तो पड़ेगी ही। जहिर से तमाम अभियान कचरा चुनने वाले का न जीवन स्तर सुधार सकते हैं और न हीं उनका पेशा बदलवा कर पुर्नवास करवा सकते हैं।
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