शनिवार, जून 05, 2010

पर्यावरण संरक्षण का काम कम, दिखावा ज्यादा

नागपुर। विश्व पर्यावरण दिवस पर शनिवार को शहर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए। विभिन्न संगठनों ने अलग-अलग तरीके से पर्यावण दिवस मनाया। कहीं रैली निकाली गई, तो कहीं पर्यावरण के थीम पर पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता आयोजित हुई। कुछ संगठनों ने सेमिनार का आयोजन कर पर्यावरण के खतरे को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। पर्यावरण दिवस पर इस क्षेत्र से जुड़े अधिकर विद्वानों ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण को ले कर काम कम और दिखावा ज्यादा हो रहा है।
साइकिल चलाओ, पर्यावरण बचाओ
मराठी विज्ञान परिषद के अध्यक्ष अशोक भट्ट ने बताया कि मनुष्य की मानसिकता जब तक नहीं बदलती, तब तक पर्यावरण संतुलन नहीं हो सकता। मनुष्य ही सबसे बड़ा प्रदूषक है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को देखते हुए सभी लोगों को साइकिल का इस्तेमाल करना चाहिए। वायु प्रदूषण कम करने के लिए यही एकमात्र उपाय है। इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए मराठी विज्ञान परिषद की ओर से महाराष्ट्र स्तर पर 1 जुलाई से 'चलो साइकल चलाएÓ कार्यक्रम का शुभारंभ किया जाएगा।
वन कर्मचारियों को जंगल की चिंता नहीं
वन व्यवस्थापन कार्य से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यभान खोब्रागड़े ने बताया कि जंगल की कटाई से पर्यावरण का नाश हो रहा है। इसके लिए सरकार के बदलते कानून जिम्मेदार हैं। वन कर्मचारियों को ही जंगल की चिंता नहीं है। वन कर्मचारी बढऩे से वन संपत्ति नष्ट हो रही है। वन कर्मचारी नौकरी के जगह पर नहीं रहते। इससे शिकार, जंगल कटाई और रात में होने वाली अवैध यातायात से जंगल के प्राणी मर रहे हंै। वाहन में केरोसिन के इस्तेमाल से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। सिर्फ समिति व्यवस्था करके शिकार एवं जंगल कटाई पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इसके लिए कानून पर अमल करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वनविकास मंडल के माध्यम से वृक्षरोपण होता है। परंतु बड़े-बड़े वृक्ष जैसे आम, नीम, इमली आदि वृक्ष तोड़कर गुलमोहर एवं सागवान के वृक्ष लगाए जाते हैं। उससे जंगल कटाई और बढ़ रही है। वायु प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए 'वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओÓ सिर्फ कगजों पर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष में उस पर कृति होनी चाहिए। वृक्ष प्राणवायु देते हैं और कार्बन-डायऑक्साईड का शोषण करते हंै। लेकिन यह वृक्ष सिर्फ सजावट के लिए नहीं बल्कि पर्यावरण संतुलन में काम आए।
फैशन हो गया है दिवस मनाना
नि:सर्ग संरक्षण संस्था के सचिव दिलीप गाड़े ने बताया कि विश्व पर्यावरण दिन मनाना फैशन जैसे हो गया है। जितनी समाज में जागृती हो रही है उतनी ही पर्यावरण समस्याएं बढ़ रही है। भारतीय संस्कृति में पानी को पवित्र माना गया है। किसी भी पूजा से पहले जल की पूजा की जाती है। किंतु नदी, तलाब में ही पूरे शहर की गंदगी छोड़ी जा रही है। कन्हान, पीली नदी में नागपुर का गंदा पानी छोड़ा जाता हैं। पिछले 10 वर्षों से प्रदूषण नियंत्रण विभाग प्रशासन को नोटिस भेज रहा है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून अमल में लाना जरूरी है। गाड़े का कहना है कि पर्यावरण दिवस मनाने के बजाय कार्यों पर बल देना चाहिए। पर्यावरण का अर्थ सिर्फ वातावरण से नहीं बल्कि अन्न-धान्य से भी है। नदी, नालों में प्रदूषण बढऩे से उसका परिणाम खेतों में होनेवाले फसलों पर हो रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासी राज्य में पर्यावरण की समस्या नहीं थी। वह अशिक्षित थे, परंतु उन्हें वन का महत्त्व मालूम था।
काम कम दिखावा ज्यादा
ग्लोबल एनवायरमेंट संस्था के सचिव दिनेश घोलासे ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण के लिए सरकार की यंत्रणा जिम्मेदार है। मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़-पौधों एवं फसलों पर हो रहा है। समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है। प्रकृति के विपरीत जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है। जमीन में पानी के स्त्रोत कम हो गए हैं। इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष तितली, चिडिय़ा, कौए, गिद्ध जैसे वन्य जीव, पौधें गायब हो चुके हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति पर्यावरण दिन के नाम पर कार्यक्रम लेकर दिखावा करते हंै। नए फंड, नई योजनाएं सिर्फ कागज पर होती है। सिर्फ 1-2 प्रतिशत लोग ही सही मायने में काम करते हैं। अपनी जन्मदाती पृथ्वी का सरंक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।
.................................

कोई टिप्पणी नहीं: