आज महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति विचित्र मोड़ पर खड़ी हुई है। सत्तारूढ़ कांग्रेस और राकांपा के बीच तालमेल का अभाव है। दोनों सत्तारूढ़ दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और शिवसेना के बीच भी उतने मधुर संबंध अब नहीं रह गए हैं।
क्या नई जिम्मेदारी की नई चुनौती को एक सैनिक के रूप में स्वीकार कर सुधीर मुनगंटीवार अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के स्वप्न को साकार कर पाएंगे? यह सवाल आज हर किसी के जेहन में है और मुनगंटीवार के अब तक के कार्यों को देखकर तो यही लग रहा है कि इसका जवाब हां में ही आएगा।
नितिन गडकरी वर्ष 2014 को लक्ष्य बनाकर केंद्र की सत्ता में भाजपा की वापसी को लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं और उनके इस लक्ष्य की पूर्ति में महाराष्ट्र की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगी। ऐसी स्थिति में गडकरी ने महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सुधीर मुनगंटीवार जैसे युवा और समझदार नेता पर डालकर निश्चित रूप से सराहनीय कार्य किया है। अब मुनगंटीवार के लिए यह अग्निपरीक्षा की घड़ी है। अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के विश्वास पर खरे उतरने तथा महाराष्ट्र में भाजपा को नंबर वन बनाने की कठिन चुनौती उनके सामने है। आज महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति विचित्र मोड़ पर खड़ी हुई है। सत्तारूढ़ कांग्रेस और राकांपा के बीच तालमेल का अभाव है। दोनों सत्तारूढ़ दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और शिवसेना के बीच भी उतने मधुर संबंध अब नहीं रह गए हैं। हिन्दुत्व के मुद्दे पर दोनों भले ही एकजुट हों लेकिन अन्य कई मुद्दों पर भाजपा-शिवसेना के बीच खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है। राज्य में रिपब्लिकन पार्टी कई धड़ों में बंट चुकी है। ऐसी विचित्र राजनीतिक स्थिति के बीच भाजपा को ताकतवर बनाने का जिम्मा मुनगंटीवार पर है और इसके लिए उन्हें कड़े कदम उठाने होंगे। मुनगंटीवार के पास जुझारुपन है, आत्मविश्वास है, राजनीति का लंबा अनुभव है और सबसे बड़ी बात उनके पास गडकरी का मार्गदर्शन है। इसी मार्गदर्शन को पाकर राज्य भाजपा को सही दिशा की ओर ले जाने का कार्य मुनगंटीवार को करना होगा। उनकी राह में कई कांटे आएंगे जिन्हें गडकरी जैसी दिलेरी से उन्हें पार करना पड़ेगा। 20 वर्षों से विधायक मुनगंटीवार पर राज्य भाजपा की बड़ी जिम्मेदारी गडकरी ने यूं ही नहीं सौंपी है। गडकरी को मुनगंटीवार पर विश्वास है और इस विश्वास पर खरे उतरने की चुनौती को मुनगंटीवार जरूर स्वीकार करेंगे।
भाजपा की सहयोगी शिवसेना राज्य में लगातार कमजोर होती जा रही है। विधानसभा में विपक्ष का नेता पद शिवसेना से छिनकर भाजपा की झोली में आ चुका है। गडकरी जब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे तब उन्होंने शिवसेना के सामने भाजपा को कभी दबने नहीं दिया। गडकरी ने शिवसेना पर दबाव बनाकर उसके कोटे की सीटें लड़कर भाजपा के कोटे में लाईं। पूर्व नागपुर विधानसभा क्षेत्र इसका उदाहरण है जहां शिवसेना वर्षों से हारती रही जबकि भाजपा पहले ही झटके में विजयी रही। गडकरी जैसी ही कूटनीतिक चालें मुनगंटीवार को चलनी होंगी ताकि शिवसेना किसी भी मोड़ पर भाजपा पर हावी न होने पाए। चूंकि शिवसेना बार-बार अपना रंग बदलने में माहिर है, अत: शिवसेना की चातिर चालों से भाजपा की रक्षा की जिम्मेदारी भी मुनगंटीवार पर है। गडकरी का मार्गदर्शन हमेशा उनके साथ रहेगा। भाजपा को केंद्र की सत्ता दिलाने की गडकरी द्वारा शुरू की गई घुड़दौड़ में मुनगंटीवार को बराबरी का साथ देना होगा। इसमें जरा सी भी चूक भाजपा के लिए ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकती है।
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