दलित वोटों के लिए छोटे आंबेडकर को अपने पक्ष में मिलाने के लिए भाजपा पहले से ही है तैयार
नागपुर। दलित वोटों की राजनीतिक मारामारी में भाजपा भी खम ठोंककर मैदान में उतरने की पूरी तैयारी में है। इसके लिए एक रणनीतिबद्ध तरीके से भाजपा के प्रतिनिधि बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर को अपने साथ मिलाने के प्रयास में हैं। पूछने पर भले ही प्रकाश आंबेडकर इस बात से इनकार करें। लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा और आंबेडकर दोनों की राजनीतिक मजबूरी है कि वे एक हो जाएं। सूत्रों का कहना है कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो जून में विदर्भ में दो जिलों में होने वाले परिषद के चुनाव में प्रकाश आंबेडकर के साथ भाजपा का गठबंधन हो सकता है। मतलब कांग्रेस को करारी शिकस्त देने के लिए भाजपा की भारिप बहुजन महासंघ साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। जानकारों की मानें तो यह दोनों की दलों की राजनीतिक मजबूरी है। भारिप बहुजन महासंघ अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकती। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी हार से सहमी हुई है। नये अध्यक्ष कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे घटक और प्रकाश आंबेडकर का भरोसा नहीं है। हालांकि रिपाई नेता रामदास आठ्वल्ले अभी भी प्रकाश आंबेडकर से उनके साथ मिलकर मजबूत होने का आह्वान करते हैं। लेकिन प्रकाश आंबेडकर कई मौके पर खुले आम कांग्रेस की अलोचना करने के साथ यह कह चुके हैं कि रिपाई के दूसरे घटक कभी भी कांग्रेस के साथ खड़े हो सकते हैं। इसलिए रिपाई घटकों के साथ उनका गठबंधन होने का कोई सवाल ही नहीं है।
हालांकि अभी भी प्रकाश आंबेडकर अभी भी भाजपा से दूरी बनाये दिख रहे हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देशन में भाजपा के प्रतिनिधि प्रकाश आंबेडकर से संपर्क में है। नितिन गड़करी के साथ प्रकाश आंबेडकर के रिश्ते भी मधुर माने जाते हैं। यदि इस चुनाव में भाजपा को शिकस्त मिलती तो राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी की काफी किरकिरी हो सकती है। इसलिए दोनों जिला परिषद के चुनाव को जीतने के लिए भाजपा हर जोखिम लेने को तैयार है। वैसे भी भाजपा के पास अभी कोई कद्दवार दलित नेता नहीं है जिससे कि वह हिंदुत्व के वोट बैंक के साथ ही दलित वोट बैंकों पर कुछ सेंध लगा सके। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी की कमान संभालने के बाद यह साफ कह दिया था कि उनका लक्ष्य पार्टी के मौजूदा वोट प्रतिशत में दस प्रतिशत बढ़ाना है। इसके लिए भाजपा नए मित्रों व नए क्षेत्रों में पहुंच बनाने में परहेज नहीं करेगी। यदि प्रकाश आंबेडकर भाजपा के साथ आते हैं तो इससे भाजपा को न केवल विदर्भ में लाभ मिलेगा। बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा। अनेक घटनाक्रमों में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के प्रति दलित का विश्वास घटता जा रहा है। इस लिहाजा से भी प्रकाश आंबेडकर भाजपा के लिए काफी लाभकारी हो सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि एक सीमित क्षेत्र में केवल अपनी पार्टी के दम पर प्रकाश आंबेडकर राष्ट्रीय राजनीति से ओझल है। यदि वे भाजपा का दामन थामते हैं तो लोकसभा से पूर्व उनके राज्य सभा में जाने की राह भी असान हो सकती है। पिछले दिनों में प्रकाश आंबेडकर ने इस बात का संकेत दे दिया था कि कांग्रेस आलाकमान यदि पृथक विदर्भ आंदोलन को समर्थन नहीं देता है तो वे अपनी रणनीति बदलने से परहेज नहीं करेंगे। अभी तब वे भाजपा से दूर-दूर खड़े दिख रहे थे। लेकिन भविष्य में भी ऐसा होगा यह जरूरी नहीं।
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