सोमवार, अप्रैल 12, 2010

इलाज के लिए इंतजार ही इंतजार

नागपुर। गिट्टी खदान निवासी राकेश सिंह को पेट में दर्द की शिकायत के कारण उसके घर वालों ने मेडिकल अस्पताल में दिखाया। डाक्टर ने मरीज का इलाज शुरू करने से पहले अल्ट्रासाउंड की जांच लिख दी। परिवार वाले जब अल्ट्रासाउंड कराने पहुंचे तो जांच के लिए उसे 10 दिन बाद का समय बाद की डेट दे दिया गया है। दर्द से तड़पते राकेश का इलाज रोका नहीं जा सकता था, इसलिए उसे बाहर में दोगुने से भी ज्यादा फीस भकर अल्ट्रासाउंड कराया गया। यह स्थिति अकेले राकेश की नहीं है। बल्कि मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले हर दिन सैकड़ों मरीजों की है। हर दिन जांच के लिए आने वाले सैकड़ों मरीज लंबी कतार में इंतजार के बाद डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, तब उन्हें किसी न किसी तरह की टेस्ट कराने के लिए लिखा जाता है। जब मरीज टेस्ट की पर्ची लेकर संबंधित जांच विभाग के पास जाता है, तो वहां खड़ा मेडिकलकर्मी या सिस्टर उसका नाम और पर्ची नंबर लिखकर उसे अलग सप्ताह की तिथि देती है। उस दिन पहले से ही जांच के लिए भीड़ रहती है।
डॉक्टर व जांच उपकरण पर भारी बोझ
मेडिकल अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इसमें हम क्या कर सकते हैं? डॉक्टर और जांच रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम की और हर दिन आने वाले मरीजों के बीच का औसत में भारी अंतर है। फिर भी हमारी कोशिश होती है कि सभी का दु:ख-दर्द सुना और समझा जाए। लेकिन मरीज के परीजन हमारी बेवशी नहीं समझते हैं। उनका धौर्य टूट जाता है। डॉक्टर और अन्य मेडिकल कर्मियों की संख्या के साथ-साथ अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे मशीन समेत अन्य दूसरे कई मेडिकल जांच उपकरण की संख्या तो सीमित है, उल्टे हर दिन आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। एक डॉक्टर पर तीन-चार घंटे में सौ से भी ज्यादा मरीजों को देखना होता है। यही स्थिति एमआरआई विभाग की है। जांच रिपोर्ट तो दो दिन में तैयार नहीं हो सकती है। इसलिए मरीजों की जांच के लिए आगे की तिथि दी जाती है। जांच के बाद रिपोर्ट लेने के लिए भी सप्ताह भर बाद का समय दिया जाता है। दर्द से कराहते मरीज के परिजन यदि आर्थिक रूप से सक्षम हैं, तो वे बाहार से जांच रिपोर्ट ले कर आ जाते हैं। जो सक्षम नहीं हैं, वे मेडिकल में चक्कर लगाते-लगाते दूसरी किसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं या फिर उनकी वह बीमारी और गंभीर हो जाती है।
एजेंट हैं सक्रिय
मरीजों और उनके परिजनों की बेवशी का लाभ उठाने के लिए निजी पैथलॉजी के एजेंट मेडिकल परिसर में ही सक्रिय होते हैं। कई बार वे जांच विभाग के बाहर मंडराते रहते हैं। जांच की तिथिी देरी से मिलने पर मायूस मरीज या उनके परिजनों के निराश देखकर उसके पास जाते हैं और उसे अपने पैथलॉजी में जांच तुरंत जांच रिपोर्ट दिलाने का झांसा देकर ले जाते हैं। एक निजी पैथलॉजी रिपोर्ट से खून की जांच रिपोट लेकर आए संतोष गजभिये ने बताया कि इलाज तुरंत करवाना है। यदि मेडिकल के पैथलॉजी के भरोसे बैठे तो पहले डेट ले, फिर जांच के लिए आओ उसके बाद फिर सप्ताह भर बाद रिपोर्ट मिलेगी, फिर संबंधित डॉक्टर का दिन देखकर अस्पताल आओ। इस तरह से मर्ज घटने के बजाय और बढ़ जाएगी। इसलिए बाहर भले ही थोड़ पैसे अधिक लगते हों, लेकिन रिपोर्ट तो जल्द मिल जाती है।
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