नागपुर। निजी बीमा कंपनियों से यूनिट लिंक्ड बीमा पॉलिसी (यूलिप) के खरीदारों के मन में भय है। पता नहीं उनके पैसे का क्या होगा। गत दिनों सेबी ने निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों ने यूलिप आधारित बीमा बेचने पर सवाल खड़ा किया था। इसी कारण ग्राहकों के बीच घबड़ाहट बढ़ी है। नागपुर में यूलिप बीमा खरीदने वाले अनेक लोगों ने बताया कि पहले तो एजेंटों ने साधारण बीमा की तुलना में तीन-चार गुना ज्यादा कवरेज देने का लालच दिया। तब मन में यह ख्याल ही नहीं आया कि बीमा कंपनियों के ऐसे यूलिप पर सेबी का नियंत्रण ही नहीं है। बिरला सन लाईफ के एक एजेंट दीपक लाड ने बताया कि अभी हर सप्ताह वे दो-से तीन यूलिप बेच लेते थे। लेकिन सेबी के उठाये सवाल के कारण कोई ग्राहक अभी किसी तरह से यूलिप बीमा खरीदने के लिए राजी नहीं हो रहा है। पता नहीं इस माह का लक्ष्य कैसे पूरा होगा। कुछ ऐसा ही कहना है आईसीआईसीआई प्रॉड्यूसियल की शोभा का। शोभा ने बताया कि कुछ दिन पूर्व टेलिविजन पर भी कंपनियां यूलिप बीमा बेचने के लिए खूब प्रचार-प्रसार कर ही थी। यहां तक इंटनेट पर भी तरह-तरह के विज्ञापन आ रहा था। टी.वी. पर यह विज्ञापन मुश्किल पिछले कुछ दिनों से नजर नहीं आ रहा है। संभावना है कि जैसे ही सेबी इसे हरी झंडी दे देगा। हमार काम और बढ़ जाएगा।
सेबी के आपत्ति से यूलिप बीमा बेचना हुआ मुश्किल/ इस माह एजेंटों के लक्ष्य पूरे होने के आसार नहीं
जानकारों का कहना है बीमा क्षेत्र की निजी कंपनियों ने भी एलआईसी की तरह ही अपने एजेंटों को निर्धारित सीमा से ज्यादा कमीशन देने का लालच देकर अपने व्यवसाय का दायरा बढ़ाया है। वहीं यूलिप बेचने वाली बीमा कंपनियां पहले प्रीमियम का 65 फीसदी हिस्सा खर्चे के तौर पर काट लेती है। तीन साल के तक बीमा चलाने के लिए बाध्य करती है। इसी बीच बंद करने पर मूलधन से ज्यादा रकम काटने की नियम शर्तें बताती है। लेकिन तीन से पांच वर्षों में ही बीमा कंपनियों ने यूलिप कारोबार को छोटे-छोटे शहरों तक बढ़ाया है।
मोतीलाल ओसवाल के एक कर्मचारी अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि यूलिप बेचने में कई ऐसे मुद्दे हैं जो सीधे तौर पर कॉरपोरेट गवर्नेस के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। सेबी ने भी प्रतिबंध लागू करते समय 11 पन्नों का जो ऑर्डर जारी किया था उसमें परोक्ष तौर पर यूलिप बेचने के बीमा कंपनियों के तौर-तरीके के बारे में सवाल उठाए गए थे। दरअसल, कुछ दिन पहले ही इरडा ने बीमा कंपनियों से संबंधित एक आंकड़ा जारी किया है जिससे यह साबित होता है कि ग्राहकों के दावों को खारिज करने में भी निजी बीमा कंपनियां का रिकॉर्ड काफी खराब है। सरकारी क्षेत्र की भारतीय जीवन बीमा निगम ने जहां केवल 1.43 फीसदी दावों का भुगतान करने से मना किया है, वहीं निजी बीमा कंपनियां का औसत 13.98 फीसदी है। कुछ निजी जीवन बीमा कंपनियों ने तो 21 फीसदी या इससे भी ज्यादा दावों का भुगतान करने से मना किया है। बिरला सन लाइफ के एजेंट संदीप सिसोदिया ने बताया कि जब लोग बीमा खरीदते हैं तक संकोच वश कई जानकारी झूठी देते हैं। जैसे पूछा जाता है कि वे शराब कितना पीते हैं। शराब पीने वाले झूठ बोल देते हैं कि वे नहीं पीते। बाद में जब उनकी मृत्यु के बाद क्लेम आती है तो मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि वह ग्राहक शराब का आदि था।
वहीं यूलिप बीमा खरीदने वाले एक कंपनी की एचआर प्रबंधक कंचन उपाध्याय ने बताया कि बीमा कंपनियां पूरी पारदर्शिता नहीं बरत रही। जब एजेंट बीमा बेचते हैं तब तरह-तरह के सपने दिखाते है। तब लोगों को लगता है कि उनका पैसा सबसे ज्यादा उनके यहां ही बढ़ेगा। लेकिन बाद में धीरे-धीरे उनकी कमियों के बारे में पता चलता है कि पहले तीन वर्ष में तो कंपनियों ने तरह-तरह के सर्विज चार्ज के रूप में एक अच्छी खासी रकम काट लिया और धन कुछ संतोषजनक ढंग से नहीं बढ़ा।
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