गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

प्यासे कंठ सबक सिख रहे हंै नौनिहाल


राज्य के गडचिरौली जैसे पिछड़े इलाके में विकास के लिए बिजली सड़क की सुविधा तो दूर यदि स्कूलों में पढऩे वाले नौनिहालों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं कराया जाए तो वे भला क्या करेंगे? प्यासे कंठ स्कूलों में मास्टर जी के बताये सबक भला वे कैसे आत्मसात करेंगे? ऐसे में यदि ये बच्चे बड़े होकर हाथ में बंदूक लेकर लोकतंत्र के खिलाफ लड़े तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई के नागपुर डिविजन के छह जिलों मेंं संचालित जिला परिषद के स्कूलों की। जहां 45 डिगी के भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए तरह रहे हैं नन्हे-मुन्ने। यह हम नहीं कह रहे हैं, यह राज्य सरकार के शिक्षा विभाग का सर्वे कह रहा है।
नागपुर से संजय स्वदेश की रिपोर्ट
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पानी के लिए तरस रहे हैं जिला परिषद के स्कूल
नागपुर।
नगर में चारों ओर पेयजल के लिए हाहाकार मचा हुआ है। कच्ची कॉलोनियों और ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति और भी गंभीर है। इन्हीं सबके बीच राज्य शिक्षा विभाग का एक चौकाने वाला सर्वे आया है। शिक्षा का मंदिर माने जाने वाले जिला परिषद के 170 स्कूलों में पेयजल की उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, अनुमान लगाया जा सकता है कि इन स्कूलों में पढऩे आने वाली नई पीढ़ी प्यासे रहकर मास्टर जी के बतायी हुई सबक सीख रही है। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है कि जब सरकार ने बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून बना दिया हो। प्यासे बच्चे भला क्या करें। घर से पानी-लाते-लाते उनका शैक्षणिक सत्र समाप्त होने का आया और अब छुट्टियां लगने की है।
आश्चर्य की बात यह है कि राज्य शिक्षा बोर्ड ने जिला परिषद के स्कूलों में यह सर्वे इस वर्ष के शुरूआत में नागपुर डिवीजन के छह जिलों में कराई थी, जब मौसम इतना गर्म नहीं था और पानी के लिए हाहाकार नहीं था। रिपोर्ट अब आई है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब जनवरी-फरवरी के मौसम में पेजयल की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, तब स्थिति इतनी गंभीर थी, तो अप्रैल माह में जब चारों ओर पानी कि किल्लत रही है, तब तो निश्चय ही इन स्कूलों में पढऩे आने वाले बच्चे बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे होंगे। सर्वे में शामिल जिलों में नागपुर के अलावा चंद्रपुर, गोंदिया, वर्धा, भंडारा और गडचिरौली के स्कूलों को शामिल किया गया था। सर्वे में सबसे ज्यादा स्कूल गड़चिरौली जिले के 83 स्कूल, गोंदिया के 56 स्कूलों को शामिल किया गया था। इस सर्वे में नागपुर के 17 और चंद्रपुर के 10 और सबसे कम भंडारा जिले के 4 स्कूलों को शामिल किया गया था। लेकिन कहीं पानी की उपलब्धता को लेकर स्थिति संतोषजनक नहीं मिली।
शिक्षा विभाग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह स्थिति और भी गंभीर है। गडचिरौली जैसे पिछड़े जिलों के बारे मे क्या कहना? सबसे ज्यादा गंभीर संकट इसी पिछड़े जिले में हैं। सर्वे में उन स्कूलों को जोड़ा गया, जहां पाइप लाइन की सुविधा नहीं है। उन स्कूलों को बच्चे दूर-दूर से पानी लेकर स्कूल आते हैं, जिससे कि पढ़ाई के दौरान उनका कंठ सूखे तो उसे तर कर सके। ज्ञात हो कि यह स्थिति तब है जब राज्य सरकार स्कूलों में बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लाखों रुपये की निधि देती है। इसके बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों को स्कूलों पेयजल, शौचाय, कक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। यहां शिक्षा ग्रहण करने आने वाली पीढ़ी के इन सुविधाओं से महरूम रहने से यह स्पष्ट है कि लाखों की निधि यहां पहुंचती ही नहीं है। इन स्कूलों में मिड डे मील योजना के तहत अनाज भी दिया जाता है। अनुमान लगया जा सकता है कि जब यहां पानी जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो फिर इन अनाजों से भोजन कैसे तैयार किया जा सकता है। इस संबंध में बातचीत के लिए शिक्षा विभाग के उप निदेशक मुरलीधर पवार से संपर्क किया गया तो उनका फोन बंद मिला।
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