शुक्रवार, मार्च 05, 2010

लावा में दौड़ीं बिना बैलों की बंडियां


सोनबा बाबा यात्रा महोत्सव में उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम
चमत्कार देखने पहुंचे हजारों लोग

नागपुर। दैवी शक्ति की परंपरा के रूप में प्रसिद्ध नागपुर से करीब 13 कि.मी. दूर वाडी-खडगांव से पश्चिम की ओर स्थित लावा ग्राम लावा हर साल की तरह आयोजित होने वाले सोनबा बाबा उत्सव में शुक्रवार को हजारों श्रद्धालु बिना बैलों की चलती बंडियां देखने के लिए उमड़ पड़े। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह उत्सव दो सौ साल पुराना है। यह हर वर्ष होली के पांच दिन बाद यहां आयोजित होता है। हर साल इसी दिन सोनबा बाबा की दैवी शक्ति से 'बैल से रहित, बिना बैलों की बंडियांÓ चलाने का करिश्मा दिखाया जाता है। हर साल की तरह इस वर्ष भी इस करिश्मे को देखने दूर-दूर से लोग आए। शुक्रवार की शाम 5 बजे सोनबा बाबा के शिष्य 75 वर्षींय माधवराव गणपत गोरले गांव के पंचायत चौक मार्ग पर सोनबा मंदिर मैदान में बिना बैलों की बंडिया चलाकर अद्भुत दैवी शक्ति का प्रदर्शन किया। यहां 5 से 7 बंडियां (धुरी निकाली हुई) एक दूसरे से रस्सी से बंधी हुई बिना बैल की रखी गई। सोनबा बाबा के शिष्य ने अपने घर में स्थित मंदिर के देवी- देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बाद एक बकरे की बलि दी। इसके बाद महोत्सव का शुभारंभ हुआ। ग्रामीणों द्वारा बाबा के शिष्य को मंदिर के सामने के झूले पर झुलाया गया। इसके बाद मंदिर के मुख्य रास्ते पर बिना बैलों की बंडियों की तरफ सोनबा बाबा के शिष्य हाथों में तलवार लेकर आए। इनके पीछे अनेक लोगों की भीड़ थी।
गोरले भगत ने बिना बैलों की इन बंडियों के चारों ओर प्रदक्षिणा कर सामनेवाले जू की पूजा-अर्चना की। इस पूजा में कपूर आदि जलाने के बाद नीबू, दही-भात, चावल के दाने गो-मूत्र की चारों दिशाओं में छिड़काव किया गया। इसके बाद वे पहले बंडी पर विराजमान हुए। उनके पीछे अन्य श्रद्धालु भी बंडी पर खडे हुए। 'होक रे होक सोनबा बाबा की जयÓ के नारे गूंजे। फिर धीरे-धीरे बिन बैलों की बंडियां सरकने लगीं। इसकी एक झलक पाने के लिए लोग बेताब दिखे। यह करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जूना सोनबा बाबा की जागृत भूमिगत देवस्थान तक चली।
इस उत्सव को देखने के लिए विदर्भ ही नहीं बल्कि राज्य के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन सोनबा बाबा के मंदिर में दर्शन करके लोग अपनी मनोकामना की पूरी करने का आशीर्वाद मांगते हैं। इस मौके पर यहां चारों ओर मेला लगता है। स्थानीय नागरिकों व कुछ अन्य सामाजिक संगठनों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। ग्रामीण पुलिस की ओर से तगड़ा बंदोबस्त किया गया था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सैकड़ों लोग बडी पर सवार होते हैं, और वह करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी अपने आप चलती है। अंधश्रद्धा का विरोध करने वाले यहां कई आए। पर पर वे इस रहस्य का पर्दाफाश नहीं कर सके।

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