रविवार, मार्च 07, 2010

विदर्भ भीषण जल संकट की ओर


पशुओं को कसाई के हाथों बेचने के लिए मजबूर हुए किसान
रबी फसल संकट में, पशुचारे का भी संकट

नागपुर। आगामी गर्मी के मौसम में भीषण जल संकट पैदा होने के आसार अभी से दिखाई दे रहे हैं। चारे के अभाव में पशुओं पर गंभीर संकट आ पड़ा है। किसान पशुओं को खंूटे से बांधकर मारने की बजाय उसे कसाईयों हवाल कर कुछ पैसे पाना उचित समझ रहे हैं। विदर्भ के अकोला, यवतमाल, नागपुर, वर्धा, वाशिम जिलों में जलसंकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। आए दिन खबरों से पता चलता है कि लोग पानी के लिए मारपीट पर उतारू हो रहे हैं। अप्रैल-मई-जून में स्थिति कितनी भयानक होगी, इसकी कल्पना से ही सिहरन होने लगी है। पिछले वर्ष बारिश के दिनों में बेहद कम बारिश का झटका किसानों को लगा है। सफेद सोना कहे जाने वाले कपास की फसल ने इस बार भी धोखा दिया। व्यापारियों द्वारा की जा रही लूटपाट के कारण किसानों ने कपास से मुंह मोड़कर सोयाबीन को अपनाया। विदर्भ में सोयाबीन की बुआई में इजाफा हो गया लेकिन सोयाबीन को बारिश ने धोखा दे दिया। बारिश के अभाव में सोयाबीन पर लष्करी इल्लियों का प्रकोप हो गया। चंद्रपुर-वर्धा जिलों में इन इल्लियों के कारण हाहाकार मच गया। जिस क्षेत्र में लष्करी इल्लियों का प्रकोप नहीं था, वहां अज्ञात बीमारियों ने सोयाबीन को झटका दे दिया। सोयाबीन का उत्पादन घटकर प्रति एकड़ 2क्विंटल पर आ गया। इससे पूर्व यही उत्पादन प्रति एकड़ 5 क्विंटल से ज्यादा था। बाजार में भी सोयाबीन के भाव कम हो गए। धान का कटोरा कहे जाने वाले गड़चिरौली, चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया जिले के किसान भी परेशानी में फंस गए। भारी मेहनत के बाद उनके हाथ में आया अनाज किसानों की आंखों में आंसू लाने वाला रहा। पशुओं के लिए तो महज तनस हा हाथ लग पाया।
कमजोर बारिश के कारण विदर्भ में जलस्तर भी घट गया है। रबी का फसल के लिए पानी मिलना मुश्किल हो गया है। तालाब से फसल के लिए दिया जाने वाला पानी पीने के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है। फसल को 4-5 पानी की जरूरत वाले किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। सरकार जब अभी से जलसंग्रह को नियंत्रित करने में लगी है, तो गर्मी के दिनों में जलसमस्या कितनी भीषण होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस वर्ष विदर्भ का कोई भी जलाशय पूरी तरह नहीं भरा। अधिकतर जलाशय तो 40 प्रतिशत भी नहीं भर पाए।
कमजोर बारिश के कारण जलसमस्या के साथ-साथ पशुओं के लिए चारे का संकट किसानों के सामने है। जानकार कहते हैं कि इसी संकट के कारण सैकड़ों गायों को कसाइयों के हवाले किया जा चुका है। खेती के लिए किसानों को अच्छे बैलों की जोड़ी मिलना मुश्किल हो गया है। 5 वर्ष पूर्व 10 से 12,000 रूपये मे मिलने वाली बैलजोड़ी की कीमत आज 30 हजार रूपये से ऊपर पहुंच गई है। खेती के लिए निरूपयोगी, कमजोर पशु ही पहले कसाइयों को बेचे जाते थे, लेकिन इन दिनों चारे के अभाव के कारण मजबूत व उपयोगी पशु भी कसाइयों के हाथों बेचे जा रहे हैं। 30 हजार वाले पशु महज 5 से 7 हजार रु. में भी बेचकर किसान अपना घर चलाने का मजबूर हो रहे हैं।

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