शनिवार, मार्च 13, 2010
इस आरक्षण में क्रीमी लेयर क्यों नहीं!
आरक्षण की पिछले 20 साल में हुई कोई चर्चा क्रीमी लेयर के बगैर पूरी नहीं हुई है। सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण संबंधी मंडल कमीशन लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के दायरे से क्रीमी लेयर को बाहर करने का फैसला सुनाया। इसी आधार पर 2006 में भी केंद्र की यूपीए सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में ओबीसी आरक्षण लागू करते समय क्रीमी लेयर को कोटे से बाहर रखा गया। हाल ही में जब पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी नौकरियों में मुसलमानों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया, तो उसमें भी क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं देने की व्यवस्था की गई। यहां तक कि दलितों और आदिवासियों के आरक्षण में, संविधान और कानून में कहीं प्रावधान न होने के बावजूद यह शिगूफा अकसर छेड़ा जाता है कि यहां भी क्रीमी लेयर को बाहर किया जाए। महिला आरक्षण के साथ क्रीमी लेयर की चर्चा क्यों नहीं की गई? इससे ही जुड़ा एक और सवाल कि क्या यह कमजोर के सशक्तिकरण का कानून है? महिला आरक्षण के जरिये सरकार विधायिका में लैंगिक आधार पर विविधता लाना चाहती है। लिहाजा महिला आरक्षण से जुड़ा सबसे बड़ा राजनीतिक प्रश्न है कि क्या यह कानून विधायिका यानी संसद और विधानमंडलों की सामाजिक विविधता को नष्ट करेगा। वैसे संविधान को देखें, तो महिला आरक्षण विधेयक विशेष अवसर के मान्य सिद्धांत के तहत नहीं है। संविधान बनाते समय कई वंचित समूहों का नाम लेकर और कुछ का नाम लिए बगैर शासन को यह अधिकार दिया गया कि उनके लिए विशेष उपबंध लाए जा सकते हैं और उन्हें विशेष अवसर दिए जा सकते हैं। लेकिन विधायिका में महिलाओं के लिए विशेष अवसर की बात संविधान निर्माताओं ने कहीं नहीं की। ठीक उसी तरह, जैसे अल्पसंख्यकों के लिए संसद-विधानसभाओं या नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है। ऐसी हालत में अगर महिला आरक्षण को सही मायने में विशेष अवसर का सिद्धांत साबित होना है, तो महिलाओं को सिर्फ महिला के तौर पर देखना अनुचित होगा। इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह अगड़ी महिला है, वह दलित महिला है, वह ओबीसी महिला है और वह अल्पसंख्यक महिला है। महिला कोटे के अंदर कोटे का वही आधार है, जो आरक्षण का आधार है। यानी जो कमजोर है, उसे विशेष अवसर मिले, ताकि वह भी लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी निभाए। साथ ही, महिला आरक्षण के अंदर अगर क्रीमी लेयर भी लागू हो, तभी आरक्षण का फायदा उन्हें मिलेगा, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इन उपायों के बगैर लागू किया गया महिला आरक्षण प्रतिगामी कदम साबित हो सकता है, और अगर इसे मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया, तो हो सकता है कि अगली संसद की सामाजिक संरचना बदल जाए।
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