रविवार, मार्च 28, 2010

भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के सहारे ताकत बढ़ाने की जुगत

संजय स्वदेश
केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त नक्सल विरोधी अभियान ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली समर्थक ग्रामीण और सरकारीकर्मी की संख्या में तेजी से कमी आई है। इसको लेकर नक्सली नेता खासे परेशान है। सूत्रों की मानें तो संगठन को मजबूत करने और मिशन 2050 के लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से वे अब क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन चरित्र का सहारा ले रहे हैं। बीत 23 जनवरी को विभिन्न नक्सल क्षेत्रों में तीनों क्रांतिकारियों की स्मृति में शहीद दिवस मनाया गया। उनके जीवन चरित्र की कहानी सुनाकर लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की गई। जनता को यह समझाकर अपना साथ देने की कोशिश की गई कि तीनों क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजी सरकार के कानूनी व उनकी नीतियों का विरोध किया था। सरकार उन्हें आतंकी कहती थी। लेकिन अजादी की बुनियाद की उनकी विशेष भूमिका रही है। ज्ञात हो कि 23 मार्च, 1931 तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
पुलिस विभाग के सूत्रों का कहना है कि 23 मार्च के बाद नक्सल प्रभावित क्षेत्र विशेष कर गड़चिरौली के विभिन्न क्षेत्रों से पुलिस को भारी मात्रा में क्रांतिकारियों के चित्र, साहित्य आदि प्राप्त हो रहे हैं। जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ग्रामीणों को अपना समर्थन बनाने के लिए आजादी के दिवनों के विचारों को प्रचार प्रसार कर नक्सली अपने लिए जन समर्थन जुटा रहे हैं, जिससे कि सरकारी की ओर से उनके सफाये के लिए चलाये जा रहे अभियान पर विराम लग सके। जानकारों का कहना है कि नक्सलियों की यह गतिविधियां क्षेत्र में तैनात सुरक्षा बलों के मनोबल को प्रभावित करने की सोझी-समझी रणनीति हो सकती है। ज्ञात हो कि नक्सलियों की इस तरह की गतिविधियों की खबरे महाराष्ट्र से सटे जंगल विशेषकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित गांवों से पहले भी आ चुकी हैं।
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