मंगलवार, मार्च 16, 2010

सफेद सोना से नहीं भर पाई सरकारी झोली


विदर्भ में बी.टी.कॉटन ने विदर्भ के किसानों में आत्महत्या करने की मजबूरी जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने राहत देने के लिए कपास खरीदी के सरकारी केंद्र शुरू कर समर्थन मूल्य देना शुरू किया। फिर भी किसानों को राहत नहीं हुई। इस साल फिर से स्थिति पिछले साल की तरह हुआ। विदर्भ के विभिन्न जिलों से यह खबरें आ रही है कि किसान सरकारी कपास खरीदी केंद्र पर कपास बेचने के बजाय निजी केंद्रों पर ज्यादा गए।

संजय स्वदेश
नागपुर।
विदर्भ के किसानों से अच्छे मूल्य पर कपास खरीदने की दावा करने वाला महाराष्ट्र कपास उत्पादक पणन महासंघ इस बार निराश हो गया है। कपास की खरीदारी नवंबर से शुरू हुई। अच्छी कीमत देने के दावे किये गए। 200 लाख क्विंटल कपास खरीदने का दावा किया गया। लेकिन आधा मार्च निकलने तक महासंघ के दावे खाली रहे। सरकारी झोली में आई महज 13 हजार 923 क्विंटल कपास। मतलब सफेद सोना से सरकारी झोली खाली रही।
जानकारों का कहना है कि इस वर्ष लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने की मुख्य वजह
कपास का समर्थन मूल्य कम देना और नाफेड (केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी) की कुछ जटिल शर्तें। वहीं दूसरी ओर खुले बाजार में व्यापारियों ने किसानों को समर्थन मूल्य से 300-400 रुपए अधिक का दर दिया। इससे ज्यादातर किसान निजी व्यापारियों के पास गए। लिहाजा, सफेद सोना से व्यापारियों की झोली भरी और सरकारी झोली खाली रही।
महासंघ के निर्धारित लक्ष्य अब पूरा होने की कोई संभावना नहीं है। लिहाजा, महासंघ ने अपनी दुकान बंद करने का निणर्य ले लिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार महासंघ ने 20 मार्च से कपास खरीरी केंद्र बंद करने का निर्णय कर देगा। पिछले वर्ष कपास उत्पादक पणन महासंघ ने 167 लाख क्विंटल कपास खरीदा था। इस साल राज्य में कपास का 300 से 350 लाख क्विंटल उत्पादन हुआ है। महासंघ ने इसमें से 200 लाख क्विंटल कपास सरकार की झोली में आने की संभावना जताई थी। महासंघ ने इसी लक्ष्य के अनुसार अपनी तैयारी की थी। महासंघ के 90 केंद्र पर उचित भाव नहीं ङ्क्षमलने से किसानों ने यहां तक आने में उदासिनता दिखाई। केंद्रों की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी।
महासंघ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 15 मार्च तक महासंघ केवल 13 हजार 923 क्विंटल से अधिक कपास नहीं खरीद पाया। सबसे अधिक वणी जोन में 11 हजार 849 क्विंटल कपास खरीदा गया। इसके बाद यवतमाल जोन में 531, अकोला मेें 178, नागपुर में 186, परली में 128, अमरावती मेें 44, खामगंाव में 7, औरंगाबाद में 3, नांदेड में 27 और जलगांव जोन में 30 क्विंटल कपास खरीदा गया। इसके विपरीत व्यापारियों ने 250 लाख क्विंटल कपास खरीदा है। शेख बचा कपास सीसीआई की झोली में गया। पिछले वर्ष 2850 से 3 हजार रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य घोषित किया गया था।
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