रविवार, मार्च 14, 2010

नई दिल्ली टू गडकरी वाडा


भाजपा का मिनी मुख्यालय गडकरी वाडा
संजय स्वदेश

नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष क्या बनें, भाजपा की राजनीति नागपुर से संचालित होने लगी है। स्वाभावित है। गडकरी नागपुर के हैं, संघ कार्यालय नागपुर में है। भाजपा संघ की जन्मदात्री 'मांÓ है। अध्यक्ष होने के नाते पार्टी के 'पतिÓ तो गडकरी ही हुए। इस लिहाज से गडकरी 'सासु मांÓ का दामन भला कैसे छोड़ सकते हैं। वह भी उस मां का जिसने पार्टी के पोस्टर चिपकाने वाले गड़करी जैसे साधारण कार्यकर्ता को पार्टी के शिखर पर पहुंचा देती है। गडकरी के माध्यम से संघ ने पूरी तरह से भाजपा को अपने नियंत्रण में ले लिया है। तभी तो गुजरात के संघी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के लिए सबसे योग्य बताने में गडकरी थोड़े भी नहीं हिचके। हर जगह संघ कैडर प्रभावी होगा। तभी तो अध्यक्ष बनते ही उन्होंने संघ कैडर के प्रभावी नेताओं को पार्टी में वापस लेने का संकेत दिया। इस कवायद में उमा भारती पहले ही संघ मुख्याल में चक्कर लगा चुकी है। पार्टी में किनारे चल रहे कट्टर संघी संजय जोशी को लेकर चर्चा है। इंदौर में रामराज्य के साथ अंत्योत्दय की भी बात हुई। मतलब राष्ट्रवादी की जो बाते संघ करता है, उसके के अनुसरण में करते हुए गडकरी अपनी नीतियों को कारगर तरीके से प्रभावी करने की जुगत में लगे हुए हैं। गडकरी के संकेत स्पष्ट है। पार्टी में रहना है तो संघ की माननी होगी। स्थिति को पार्टी के कई नेता अभी से ही भांप गए हैं। समझ गए हैं कि बिना नागपुर के पार्टी में बड़े कद की गुंजाइश नहीं है। तभी रविवार, 15 मार्च को नागपुर में आयोजित पृथक विदर्भ राज्य की जनसभा में गडकरी को समर्थन देने दो राज्य के मुख्यमंत्री समेत, एक राज्य के उपमुख्यमंत्री आए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रणम सिंह, उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखारिया और झारखंड के उप-मुख्यमंत्री रघुवरदास। सभी ने गडकरी के सुर से सुर मिलाया। अपने सुर- में दूसरे का सुर मिलता देख किसे अच्छा नहीं लगता है। लोकसभा में विपक्ष के उप नेता गोपीनाथ मुंडे ने भी विदर्भ के मुद्दे को संसद में उठाने की हामी भर दी। यहीं मुड़े कभी गडकरी के घोर विरोधी थे। प्रमोद महाजन के जमाने में मुंडे के पीछे-पीछे गडकरी चलते थे। आज गडकरी के नेतृत्व में विदर्भ में आकर पृथक विदर्भ का समर्थन कर रहे हैं।
कहने के लिए तो नागपुर की यह जनसभा पृथक विदर्भ के लिए थी। लेकिन हकीकत में यह राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी की मजबूती दिखाने का एकतरह का 'पीआरÓ का एक नमूना था। भले ही गडकरी अपने गढ़ में हार चुके हों, पर पार्टी में अपने 'गढ़Ó को और मजबूत कर रहे हैं। गडकरी का पीआर बढ़ाने आए दो राज्यों के मुख्यमंत्री और एक राज्य के उपमुख्यमंत्री ने इस जनसभा के माध्यम से गडकरी के संबंध प्रगाढ़ करने की कोशिश की है। उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखारिया यह जानते हैं कि उनके राज्य के मुख्यमंत्री का ताज उनके सिर कैसे आया? उत्तरांचल में पार्टी में पोखारियों को न चाहने वालों की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी की एक लॉबी 'चावल वाले बाबाÓ की टांग खिंचने की जुगत में है। अब भला कैसे कैसे यह नहीं कहा जा सकता कि एक उप मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री की कुर्सी के सपने देखता है। भविष्य में झारखंड में भाजपा के शासन आने पर रघुवरदास को गडकरी से गहरी आशा है। समय से पहले इन नेताओं ने भविष्य में गडकरी की महत्ता को भांप कर नागुपर आने का मौका ढूढ़ लिया। भविष्य के लिए गडकरी के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाने कवायद कर अपने राजनीतिक भविष्य के लिए निवेश कर दिया है। कुछ वर्षों से पार्टी में किनारे चल रहे पार्टी प्रकाश जावड़ेकर पहले भूले-भटके ही नागपुर आते थे। गडकरी के अध्यक्ष बनने ही नागपुर आने की सिलसिला शुरू हो गया है। अब तो वे नागपुर में हर सप्ताह राज्य के संसदीय कार्यालय में आएंगे। इनसे पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रविशंकर प्रसाद भी नागपुर आए। चोरी-छिपे शत्रुघ्न सिन्हा भी नागपुर आए। संकेत है कि आने वाले दिनों में और भी नेता नागपुर की ओर रुख करेंगे। पार्टी का 'मिनी मुख्यालयÓ नागपुर में गडकरी वाडा हो जाए तो आश्चर्य नहीं।

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