सोमवार, मार्च 08, 2010

पिछड़ी बहनों को भी साथ लेकर चलने वाला हो महिला आरक्षण बिल

महिला दिवस पर
नागपुर। महिलाओं को लोकसभा तथा विधानसभा में आरक्षण मिलना चाहिए, यह मांग काफी पुरानी है। मगर कुछ राजनीतिक दल इस आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, इसलिए अब तक इस बिल को मंजूरी नहीं मिल पाई। आज महिला दिवस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस बिल को संसद में पेश किए जाने की संभावना है। मगर इसका बसपा, राजग, सपा आदि राजनीतिक दल जोरदार विरोध कर रहे हैं। इनकी मांग है कि इस आरक्षण विधेयक में अनुसूचित जाति, जन जाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कोटा आरक्षित किया जाए। वहीं अधिकतर लोग इस विधेयक के समर्थन में है। दैनिक 1857 ने नगर के विभिन्न संगठनों की कुछ प्रबुद्ध महिला और पुरुषों से बातचीत कर वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर अपनी राय जानी। अधिकर महिलाओं का मनना है कि महिलाओं को आरक्षण तो ठीक है, पर इसमें समाज में पिछड़ी समुदाय की बहनों को भी आगे आने का मौका मिलना चाहिए।
हर वर्ग को मिले प्रतिनिधित्व
महापौर अर्चना देहनकर का कहना है कि महानगरपालिका, ग्रामपंचायत तथा नगरपरिषद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण है। अगर हर जातिधर्म का प्रतिनिधित्व करनेवाली महिलाएं सत्ता में आएंगी तो संपूर्ण समाज का कल्याण हो सकता है। महिलाओं में सीखने की इच्छा तथा कार्य करने की क्षमता प्रचुर मात्रा में होती है, उन्हें बस एक मौका चाहिए होता है। जब तक पिछड़े समाज की महिलाओं को यह मौका नहीं मिलेगा, तब तक वह आगे नहीं बढ़ पाएंगी और उन्हे मौका देने के लिए महिला आरक्षण के अंतर्गत पिछड़ी समाज की महिलाओं को आरक्षण देना बेहद जरूरी है।
विरोध पर गंभीरता से हो विचार
युगांतर शिक्षण संस्था की कार्याध्यक्ष वनिता तिरपुड़े का कहना है कि मेरे विचार से महिला आरक्षण में अनसूचित जाति जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कोटा आरक्षित करने की मांग जायज है। क्योंकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को राजनिति में सीधे मार्ग से प्रवेश मिलना असंभव है। इसका प्रमाण आज की संदद में देखा जा सकता है। इसएि इस बिल में इस वर्ग के साथ अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं के लिए कुछ निश्चत प्रतिशत तय करना आवश्यक है। जिन-जिन क्षेत्रों में महिलाओं को जाति व समाज के आधार पर आरक्षण दिया गया है, वहां महिलाओं ने अपनी कार्यकुशलता दिखाते हुए सफलता प्राप्त की है। इसलिए विरोधियों के मांगों पर गंभीरता से विचार करके इसे संशोधित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश की सभी पिछड़े तथा दलित समाज की महिलाओं को अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा। महिला महाविद्यालय की समाजशास्त्र विभाग प्रमुख डा. सरोज आगलावे का कहना है कि 63वें संविधान सुधार के अनुसार स्थानीय शासन संस्थाओं को राजनीतिक आरक्षण लागू किया गया था। विशेष तौर पर ग्रामीण विभाग की स्त्रियां राजकीय दृष्टी से जागरूक होने लगी तथा गांवो के विकास के लिए कार्य करने लगी हंै। 1993 में संसद तथा घटक राज्य विधानमंडल में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाने वाला महिला आरक्षण विधेयक आज मंजूर होने की कगार पर है और शायद आज वह मंजूर भी हो जाए।
डा. सरोज का कहना है कि पहले लोकसभा चुनाव से लेकर तेरहवे लोकसभा चुनाव परिणाम पर गौर करना चाहिए। इसमें महिलाओं का प्रतिशत 8 से उपर कभी नहीं गया। ये आठ प्रतिशत महिलाएं भी ऐसी है जिनकी पृष्ठभूमि पहले से ही राजनीतिक रही है। इतना ही नहीं इनमें से ज्यादातर उच्च जाति की महिलाएं हैं। देश की राजनीति में परिवारशाही चलती है। अगर ऐसी ही परिवारशाही चलती रही तो पिछडे समाज की महिलाएं कभी सामने नहीं आ पाएंगी। समाज में महिलाओं की मजबूती के लिए हर समाज की महिलाओं का प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। लोकतंत्र में अपने बलबूते पर चुनाव जीता जा सकता हैं, ऐसा कहकर छोड़ दिया जाय तो कोई भी पिछड़े समाज की महिला कभी जीत नही पाएगी, क्योंकि चुनाव में खर्च करने की उनकी क्षमता नहीं होती। महिला तथा देशहित का विचार किया जाय तो महिला आरक्षण को होनेवाला विरोध उचित है तथा इस आरक्षण के अंतर्गत पिछड़े समाज को आरक्षण मिलना चाहिए।

सभी को मिले आगे बढऩे का मौका
पूर्व महापौर माया इवनाते की राय है कि महिला आरक्षण के अंतर्गत एसी, एसटी ओबीसी तथा अल्पसंख्यांक महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण जरूरी है, जिससे कि पिछड़े समाज की महिलाओं को आगे बढऩे का मौका मिल सके। भारत में अनेक जाति-धर्म के लोग रहते हैं, मगर राजनीति में सभी वर्ग-समुदाय के प्रतिनिधि रहते हैं। मगर राजनीति में सभी धर्मों के प्रतिनिधि कहां है? हर धर्म की नारी का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता हो, इसके लिए महिला आरक्षण में पिछडे, दलित तथा अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण आवश्यक है। समाजिक कार्यकर्ता रूपा कुलकर्णी भी महिला आरक्षण के विरोध में समर्थन देती है। उनका कहना है कि विरोध जायज है। जब तक एसी. एसटी, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया जाता, तब तक राजनीति तथा अन्य क्षेत्रों में भी उनका आगे बढऩा मुश्किल है। महिलाएं समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं, अगर हर समाज की स्त्री सत्ता में आती है तो अपने समाज की तथा अपने समाज की महिलाओं की समस्याओं को वह अच्छी तरह से सुलझाने की दिशा में काम कर सकती है। से पेश कर सकती है, जिससे उन समस्याओं का समाधान ढूंढना भी आसान हो जाएगा। महिला आरक्षण बिल को पास करने से पूर्व उसमें पिछड़े समाज की महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण होना ही चाहिए।
गलत है विरोध
मेमोरी लैब के चेयरमैन सुदेश मानकर की राय है कि महिला आरक्षण का विरोध गलत है। यह विधेयक उसके वर्तमान रुप में ही पारित होना चाहिए। महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जो मेेरे हिसाब से काफी है। इसके अंतर्गत भी एससी, एसटी, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं को अलग आरक्षण की जरूरत है, ऐसा मुझे नहीं लगता। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, किसी भी समाज का पुरुष अथवा महिला चुनाव में खड़ी रह सकती है, अगर वह काबिल है तो लोग उन्हें जरूर चुनकर संसद में भेजेंगे। इसके लिए आरक्षण की क्या जरूरत है। 33 प्रतिशत आरक्षण पूरी महिला जाति को दिया जा रहा है। मेरे विचार से इसमें अलग से आरक्षण की आवश्यकता नहीं है।
संशोधित होकर लागू हो महिला आरक्षण
समाजिक कार्यकर्ता नंदा तायवाडे की राय भी विधेयक के वर्तमान स्वरूप के विरोध में है। उनकी राय है कि अगर महिला विधेयक जैसे का तैसा लागू कर दिया गया तो देश में बहुजनों की सत्ता आने में बहुत बड़ी बाधा निर्माण हो जाएगा। उच्च वर्ग ने हमेशा ही लोगों को गुलाम बनाये रखने के लिए महिलाओं का उपयोग किया है। आज भी अल्पसंख्यक तथा पिछड़े समाज को गुलाम बनाये रखने के लिए महिला विधेयक में विशेष आरक्षण देने से इनकार किया जा रहा है। महिला आरक्षण विधेयक को जस का तस पारित करने के पीछे एक सोची-समझी रणनीति है। एक तो पिछड़े समाज की महिलाओं को आगे आने से रोकना तथा दूसर संसद में उच्चवर्ग के लोगों की संख्या बढ़ाना, जिससे बहुजन समाज का सत्ता में आने का सपना कभी पूरा न हो सके। कांग्रेस और भाजपा आज जहा हर मुद्दे पर एक दूसरे के विरोध में खड़े रहते हैं, महिला आरक्षण के मुद्दे पर वह एक साथ खड़े हैं। इससे स्पष्ट है कि ये दोनों दल पिछले वर्ग को उपर नहीं आने देना चाहते। समाजिक कार्यकर्ता हनुमान राठी का मत है कि महिला आरक्षण विधेयक में अगर पिछडे समाज की महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण नहीं दिया गया, तो इससे समाज की महिलाएं पिछड़ी ही रह जाएगी। एक महिला की प्रगती से एक परिवार और फिर पूरे एक समाज की उन्नति कि जा सकती है। आज भी देश में लोगों को किसी न किसी तरह से गुलाम बनाकर रखने की परंपरा चली आ रही है। उच्चवर्ग के लोगों को इसकी आदत-सी हो गई है, इसलिए भाजपा तथा कांग्रेस पिछड़ी समाज की महिलाओं को विशेष आरक्षण के बारे में नहीं सोच पा रही है।
यह विरोध मानवाधिकारों की अवहेलना है : डा. रमेश राव, मानव
मानवाधिकार कानून के अधिवक्ता डा. रमेश राव का मनना है कि वर्तमान महिला आरक्षण विधेयक का विरोध एक तरह से मानवाधिकार का विरोध है। उनका कहना है कि जब भी महिलाओं ने उनके मानवअधिकारो की बात की उसकी हमेशा अवहेलना ही हुई है। इसका मुख्य कारण पुरुषप्रधान व्यवस्था है। पुरुषों ने हमेशा महिलाओं की आवाज को दबाया है। महिला विधेयक कानून को चौदह वर्ष पहले ही संसद में मंजूरी मिल जानी चाहिए थी, लेकिन राजनितीक दबाव के तहत यह अपनी मंजील तक नहीं पहुच पाया। महिला-पुरुष समानता की बात केवल कागजों पर ही है। दुनिया की आधी संख्या महिलाओं की है। फिर भी आज 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात से हम मुकर जाते है। क्या यह महिलाओं के राजकीय अधिकारो का हनन नहीं है?
राष्ट्रीय महिला आयोग बनाकर महिलाओं के अधिकारी का संरक्षण हो गया यह बात अधुरी सी है। यदि स्त्री पुरुष समानता को एक धुरी पर लाना हो तो महिलाओं का संसद व राज्य विधान सभा में 33 प्रतिशत आरक्षण ही एकमेव विकल्प है। आज संसद में बैठे जनता के नुमाइंदे को उनकी आत्मा की आवाज से इस आरक्षण विधेयक को मंजूरी देने की जरूरत है। नहीं तो फिर एक बार महिलाओं पर सांसदों द्वारा एक राजकीय अत्याचार दोहराया जाएगा।
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