शुक्रवार, मार्च 12, 2010

200 रूपये में राजहंस!


मंगोलिया से हर वर्ष भारत में आने वाले दुर्लभ राजहंस (बार हेड़ेड़ गीज) को जाल बिछाकर पकड़कर उसे 200 से 300 रुपए में बेचे जाने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आय है। चन्द्रपुर और वर्धा के पक्षी मित्रों ने अपने स्तर का स्टिंग आपरेशन करते हुए दुर्लभ प्रजाति के राजहंस को बेचते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। इस मामले से संबंधित एक दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के मुताबिक इस खुलासे से राज्य के पक्षीमित्र एवं पक्षी अध्ययनकर्ताओं को गहरा सदमा पहुंचा है। मंगोलियन राजहंस को भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून की अनुसूची-2 के अंतर्गत समिलित किया गया है। चंद्रपुर जिले के वरोरा पास के चारगांव बांध में प्राय: दुर्लभ मंगोलियन राजहंस सैकड़ों की तादाद में आते हैं। पिछले वर्ष चंद्रपुर के पक्षी अध्ययनकर्ता और निरीक्षकों ने चारगांव बांध परिसर में 640 राजहंस को खोजकर उसकी सूची वन विभाग को सांैपी थी। इस बार चारगांव बांध लगभग सूख जाने से यहां बहुत कम राजहंस ही दिखाई दिए, जबकि अधिकतर चंद्रपुर-वर्धा सीमा के खांबाड़ा समीप पोथरा बांध में चले गए। पर्यावरण प्रेमी और पत्रकार मुकेश वालके ने बताया कि कि यहां स्थानीय मछुआरों द्वारा जाल बिछाकर इस दुर्लभ प्रजाति के राजहंस को पकड़ा जाता है। पकड़े वाले इसका महत्व नहीं जाते हैं। वे पोथरा, समुद्रपुर और खांबाडा जैसे गांवों में दलालों को 200-300 प्रति नग में बेचा देते हैं। चन्द्रपुर के पक्षी मित्र प्रविण कडु, एम. एस. आर. शाद , योगेश सूर्यवंशी और धीरज खोंडे ने इस मामले की पोल खोलने की सोची। हकीकत जानने और देखने के लिए पोथरा गांव पहुंचे। तब उन्होंने एक मछुआरे को 300 रुपए में राजहंस बेचते देखा। उन्होंने स्वयं इस पक्षी को मछुआरे से खरीद कर उसे वन विभाग के स्थानीय कार्यालय में सूचित किय और राजहंस को वन अधिकारियों के हवाले किया। मछुआरे द्वारा राजहंस के पकड़े जाने के बाद से राजहंस बीमार था। वन अधिकारियों ने उसे इलाज के बाद सुरक्षित छोड़ देने की जानकारी दी है। पर खुले आसमान में उड़े मंगोलियन राजहंस को क्या पता कि भारतीय जमीन पर उसके कई दुश्मन उसे जाल में फांसने के लिए तैयार बैठे रहते हैं।
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