सोमवार, मार्च 29, 2010

कृषि भूमि के सहारे बढ़ेगा वन क्षेत्र


photo by me from manipur

संजय स्वदेश
गत कुछ वर्षों में वनों की लगातार कटाई से देश के वन क्षेत्रों में भारी कमी आई है। पर्यावरण के लिए यह निश्चय ही चिंता का विषय है। फिलहाल देश में 12 प्रतिशत वन क्षेत्रों की कमी है। यह कहना है भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक तथा इंदिरा गांधी नैशन फॉरेस्ट अकादमी के निदेशक डा. आर.डी. जर्काता का। नागपुर के मूल निवासी जकार्ता ने नागपुर में एक बातचीत में कहा कि फिलहाल देश में 33 प्रतिशत भू क्षेत्रों में वन क्षेत्र होना चाहिए। लेकिन यह अभी 13 प्रतिशत कम 21 प्रतिशत के करीब है। अब इस कमी को दूर करने का एक ही उपाय- कृषि भूमि पर वृक्षारोपण है। लेकिन यह संभव नहीं दिखता है।
रियल इस्टेट क्षेत्र कृषि भूमि पर अपना जबददस्त कब्जा कर लिया है। फिलहाल वन क्षेत्र में वृद्धि के लिए उठाये जाने वाल सरकारी कदम नाकाफी है। जब केंद्र सरकार के एक जिम्मेदार अधिकारी यह बात कहें तो यह निश्चय ही चिंता की बात है। सरकारी कदम नकाफी होने पर हमेशा जनता को जागरूक होने का आह्वान किया जाता है। देश ही नहीं दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण की आवश्यकता है। भारतीय वन सर्वेक्षण देश के जंगलों पर सेटलाइट के जरिए नजर रखता है। इसी आधार पर होने वाल वनों के अध्ययन रिपोर्ट को केंद्र सरकार को भेजी जाती है।
भारतीय वन सर्वेक्षण पिछले 22 वर्षों से हर साल केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज रहा है। इसके आधार पर ही केंद्र सरकार राज्यों के वन विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी करती है। केंद्र सरकार का हमेशा से यह तर्क होता है कि वन क्षेत्रों को बढ़ाने में योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकार के कंधे पर होती है। वहीं राज्य सरकार हमेशा किसी न किसी बहाने से अपना कंधा झटकती दिखती है। कभी फंड का रोना रोया जाता है, तो कभी केंद्र की ओर से देरी की बात कही जाती है। राज्य और केंद्र सरकार का सारा समय एक दूसरे पर दोषारोपण में ही चला जाता है।
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