सोमवार, मार्च 29, 2010

हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में पदों की नीलामी!


5 अप्रैल से होने वाले साक्षात्कार के लिए कई दलाल सक्रिय

संजय स्वदेश
नागपुर से प्रकाशित 'दैनिक 1857Ó ने 29 फरवरी के अंक में अपने प्रथम पृष्ठ पर वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय से संबंधित एक सनसनीखेज खबर प्रकाशित की है। प्रकाशित खबर के मुताबिक आगामी 5 अप्रैल से शैक्षणिक पदों के लिए होने वाले साक्षात्कार आंख में धूल झोंकने की प्रक्रिया साबित हो रहा है। इन पदों की नीलामी होने तथा इसके लिए कई दलाल सक्रिय होने की जानकारी मिली है। दूसरी तरफ कुछ विज्ञापित पदों पर नियमानुसार विश्वविद्यालय के लाइजन ऑफीसर की पूर्व सहमति नहीं होने के कारण कुछ पदों पर होने वाले साक्षात्कार अवैध होने की भी जानकारी मिली है।
सूत्रों के हवाले से खबर में कहा गया है कि देश भर में कुलपति विभूति नारायण राय और प्रति कुलपति नदीम हसनैन के मित्र उम्मीदवारों को आश्वासन दे रहे हैं और अपने-अपने उम्मीदवारों की नियुक्तियां तय बता रहे हैं। खेल दिलचस्प है, जो कि विश्वविद्यालय के कैंपस से लेकर देश की राजधानी दिल्ली और दो हिन्दी भाषी राज्यों की राजधानी तक में खेला जा रहा है। शह और मात के खेल में शामिल है कुलपति और प्रतिकुलपति के मित्र और कैंपस में उपस्थित विशेष कर्तव्याधिकारी तथा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो.नामवर सिंह के करीबी रिश्तेदार। पदों के लिए बोलियां लग रही हैं और विभिन्न पदों पर आपसी बंदरबाट भी हो रही है। मार-पीट की घटनाएं भी घट रही हैं तथा इन पदों के लिए होने वाले साक्षात्कारों में आगामी सफल प्रतिभागियों की सूची भी तय की जा रही है।
बोलियां लगाने वाले एजेंटों में सक्रिय हैं प्रो. नामवर सिंह के एक करीबी रिश्तेदार, बिहार के कवि जो गोली दागने का हक मांगते रहे हैं और इस समय कुलपति के करीबियों में शामिल हैं, दिल्ली स्थित हिन्दी के समीक्षक, आलोचक और विश्वविद्यालय की एक पत्रिका के संपादक तथा लखनऊ स्थित एक चर्चित कथाकार, जो एक महत्वपूर्ण पत्रिका के संपादक हैं। आगामी शैक्षणिक नियुक्तियों के इन सिपहसालारों में आपसी झड़पोंं की खबरें भी आती रहती हैं। पिछले 25 मार्च को कुलाधिपति नामवर सिंह के करीबी रिश्तेदार का वर्धा आगमन हुआ। इन्हें ठहराया भी गया चांसलर के कमरे में। उसी कमरे में रात 9 बजे से रिश्तेदार महोदय, विश्वविद्यालय के 5 शिक्षक, जिनमें एक युवा कथाकार हैं और दूसरे नामचीन पत्रकार रहे हैं, दारू-गोष्ठी में शामिल हुए। साथ में शामिल रहे बिहार के नक्सलवादी कवि। ज्ञातव्य है कि वर्धा गांधी जिला है और यहां शराब बंदी है। वैसे हिंदी विश्वविद्यालय कैंपस, जिसे नए कुलपति ने गांधी हिल नाम दिया है, शिव के त्रिशूल पर स्थित माना जाता है। यहां रात के आठ बजे के बाद कई लोग दारू के नशे में रहते हैं। वैसे नियुक्तियों के मामले में कुलाधिपति के करीबी रिश्तेदार और नक्सलवादी कवि का पड़ला भारी है। करीबी रिश्तेदार की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बुद्धिस्ट स्टडी में अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित पद पर नियम-बाह्य तरीके से इस रिश्तेदार का एक राजपूत दोस्त पढ़ा रहा है। गौरतलब है कि कुलाधिपति भी राजपूत हैं और इसलिए माक्र्सवादी होते हुए भी मां भवानी के मंदिर में चढ़ावा चढ़ा आते हैं। खैर उस दारू गोष्ठी मेें नियुक्तियों को लेकर बहस इतनी बढ़ी कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक की गर्दन दबोच बैठा और दोनों एक-दूसरे को अश्लील गालियां देने लगे। बीच-बचाव में उतरे माक्र्सवादी कवि और कोलकाता निवासी प्रसिद्ध पत्रकार।
वैसे नक्सलवादी कवि तुलनात्मक साहित्य विभाग के एक पद पर पंजाबी मूल की विश्वविद्यालय की ही शोधार्थी को नियुक्ति का आश्वासन दे चुके हैं जबकि दारू गोष्ठी में शामिल दूसरे अन्य लोगों के अलग-अलग उम्मीदवार हैं। वैसे पंजाबी मूल की लड़की की नियुक्ति तय मानी जा रही है। उधर 5 अप्रैल को मानवशास्त्र विभाग में होने वाले साक्षात्कार में प्रति-कुलपति नदीम हसनैन का उम्मीदवार तय माना जा रहा है, जो इन दिनों वर्धा स्थित उनके आवास पर पाया जा सकता है। 9 अप्रैल को शांति एवं अहिंसा विभाग में उस विभाग के डीन के करीबी तथा भागलपुर विश्वविद्यालय के शोधार्थी की नियुक्ति तय है। डीन महोदय वैसे तो तुलनात्मक साहित्य में भी हिन्दी विश्वविद्यालय के एक शोधार्थी पर दांव लगा रहे हैं जबकि पंजाबी मूल की शोधार्थी की नियुक्ति होनी तय है। जनसंचार विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो.अनिल राय ने अपने दो शिष्यों को आश्वासन दे रखा है और उनकी नियुक्ति तय मानी जा रही है क्योंकि अनिल राय और कुलपति की नजदीकियां जगजाहिर हैं। ये वही छात्र हैं जिन्होंने प्रो. राय की अकादमीक चोरी पर कवरेज के लिए आए सी.एन.ई.वी. के संवाददाता के साथ मार-पीट तक की थी। कुछ तो साक्षात्कार के पूर्व ही शिक्षकों सा व्यवहार करने लगे हैं। डायसपोरा विभाग के लिए होने वाले साक्षात्कार के लिए प्रति-कुलपति नदीम हसनैन के एक उम्मीदवार की नियुक्ति तय है। वैसे फिल्म एवं नाटक स्टडीज का मामला भी कम दिलचस्प नहीं है। इस विभाग के व्याखाता पद के लिए विशेष कर्तव्याधिकारी ने गोरखपुर विश्वविद्यालय में अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे शिक्षक को आश्वासन दे रखा है। गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में तथा हिन्दी विश्वविद्यालय से शांति-अहिंसा में स्नातकोत्तर इस प्रतिभागी को उक्त पद के लिए शिक्षण अनुभव दिलाने का बीड़ा भी इसी विशेष अधिकारी ने ले रखा था और वह प्रतिभागी आए दिन फिल्म और नाट्य विभाग में अतिथि प्राध्यापक के रूप में पढ़ाया भी करता था। वैसे इसने भोजपुरी फिल्मों के लिए पटकथा भी लिखी है लेकिन अंतिम दिनों में खटका हुआ और शौकिया तौर पर नाट्य कर्मी रह चुके विशेष कर्तव्याधिकारी और उनके मित्र प्रति कुलपति के बीच संभवत: किसी उम्मीदवार पर समझौता हुआ तथा गोरखपुर का वह प्रतिभागी स्क्रीनिंग से ही छाट दिया गया।
उधर भाषा प्रौद्योगिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए होने वाला साक्षात्कार वैसे तो रोस्टर के हिसाब से अवैध हैं, परंतु इस पद पर भी विश्वविद्यालय में ही पढ़ा रहे दो व्याख्याता अनिल पांडे या अनिल दुबे की नियुक्ति तय है। अनिल पांडे की पैरवी विश्वविद्यालय का ही एक कथाकार कर रहा है। उधर दूसरे उम्मीदवारों की व्याख्याता पद पर नियुक्ति को राष्ट्रपति ने मान्यता नहीं दी है तथा प्रसिद्ध इतिहासकार विपिन चंद्रा ने इन्हें शिक्षक होने के काबिल नहीं पाया था। वैसे पिछली बार चयन समिति ने इसी पद के लिए नान सुटेबल घोषित किया था।
लखनऊ स्थित कथाकार संपादक अंतिम क्षणों में कुछ गुल खिला सकते हैं। पिछली नियुक्तियों में भी इन्होंने अपने कुछ चहेतों को कुछ पदों पर बैठाया था। दिल्ली के समीक्षक, जो विश्वविद्यालय के दिल्ली स्थित केंद्र पर बैठते हैं, दिल्ली की सभी साहित्यिक गोष्ठियों में कुलपति राय से अपनी नजदीकियां बताते हुए उम्मीदवारों से बायोडाटा मंगवा रहे हैं। गहन जांच के बाद आर्थिक कदाचार भी पाया जा सकता है। सुरा-सुंदरी, भाई-भतीजावाद तो निर्णायक है ही, देखना यह है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शिक्षा में होने जा रहे इस निश्चित नियुक्ति को होने से रोक पाता है या नहीं। नियुक्तियों पर रोक का कदम 5 अप्रैल से पूर्व उठाना होगा।
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