सोमवार, जून 28, 2010

नागपुर सिटी




भाई की जिंदगी के लिए बेचती रही जिस्म

फरार मीना की तलाश जारी
नागपुर।
गत शनिवार को शहर की बदनाम गली में 15 लड़कियों के साथ पकड़ी गई खुशबू (परिवर्तित नाम) अपने भाई रोहित की जिन्दगी बचाने के लिए नागपुर में 8 महीने से गंगा जमुना की कश्मीरी गली में जिस्म फरोशी का काम कर रही है। पकड़े जाने के बाद यह रहस्य खुशबू ने उजागर किया कि उसका छोटा भाई रोहित इन लोंगो (धंधा कराने वाले) के चंगुल में था। उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी थी। अगर वह उनका कहना नहीं मानती तो वह अपना भाई हमेशा के लिए खो देती। खुशबू के माता-पिता पहले ही मर चुके हैं। खुशबू को मुंबई से लेने पुलिस के साथ उसका मौसा आया था। खुशबू का छोटा भाई रोहित भी अपने मौसा के साथ नागपुर आया। रोहित को दिल्ली में मीनाबाई के भाई के घर रखा गया था। मीनाबाई सतीश कर्मावत (40)कश्मीरी गली का एक ऐसा नाम हैं जहां गरीब मजबूर लड़कियों को खरीदकर उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनसे जिस्म फरोशी का धंधा कराया जाता है। मीनाबाई मूलत: आगरा की पिपरेटा खेडागर की रहने वाली है। मीना के साथ पुलिस ने अनारकली, कृष्णा, मुन्नीबाई टिकाराम कालफोर, रुखसाना, कश्मीरी बाई, आशा बाई, स्नेहल बुद्धम राऊत ने खुशबू को जबरन धंधे में उतारा था। पुलिस मीनाबाई के एक भाई की तलाश में आगरा भी गई थी। लेकिन वह वहां नहीं मिला।
मीनाबाई के घर से नागपुर क्राइम ब्रांच और लकडग़ंज पुलिस ने संयुक्त रुप से कार्रवाई कर लड़कियों को पकड़ा। पुलिस ने कार्रवाई के दौरान ग्राहक शैलेष मिलिन्द मेश्राम, आदाम इसा खान वर्धा तथा राकेश यादवराव राऊत को गिरफ्तार किया है।
मीनाबाई के घर से मिली लड़कियों में कई कम उम्र की लड़कियां भी हैं। मीनाबाई के पास खूशबू 8 महीने से है। पुलिस सूत्रों के अनुसार देह व्यापार का धंधा इतनी गहराई तक पैठ जमा चुका है कि एक धंधे वाला दूसरे धंधे वाले के पास अपनी लड़कियों को भेजता है और उसकी लड़कियों को अपने पास रखता है। इससे ग्राहकों को हर बार नई लड़की आई है का झांसा दिया जाता है। ग्राहक भी दलालों के झांसे में आ जाते हंै। नागपुर की गंगा जमुना में छापा मार कार्रवाई के दौरान खुशबू जब पुलिस के हाथ लगी तो एक ुपुलिसकर्मियों को उसने अपनी कहानी बताई कि उसे इस धंधे मेंं आखिर किस तरह ढकेल दिया गया। उस पुलिसकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि खुशबू मूलत: मुंबई की रहने वाली हैं। उसके माता-पिता की मौत के बाद छोटे भाई की जिम्मेदारी उस पर आ गई। वह कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई। उन लोगों ने उसके छोटे भाई रोहित को अगवा कर नई दिल्ली भेज दिया। खुशबू को धमकी दी गई कि अगर वह धंधा नहीं करेगी तो उसके भाई को मार दिया जाएगा। वह मजबूर हो गई। 8 महीने पहले उसे नागपुर की मीनाबाई के पास भेजा गया। उसे यकीन दिलाने के लिए कि उसका भाई जिन्दा है। रोहित से खुशबू की बात कराई जाती थी। खुशबू के मौसा को जब यह बात पता चली कि वह नागपुर में मीनाबाई के पास है तो वह मुंबई अपराध शाखा पुलिस की मदद ली। मुंबई पुलिस ने अपराध शाखा नागपुर पुलिस के फोन पर जानकारी दी कि मुंबई से एक लड़की को अगवा कर जिस्म फरोशी के धंधे में लगाया गया है। खुशबू की पहचान के लिए उसका मौसा भी मुंह पर कपड़ा बांधकर नागपुर की बदनाम गली में पुलिस के साथ पहुंचा। मीनाबाई के देहव्यापार अड्डे पर जब नागपुर क्राइम ब्रांच ने लकडग़ंज पुलिस के साथ छापा मारा तो वहां पर खुशबू भी मिली। उसके मौसा ने उसे पहचान लिया। इस घटना की खबर मिलने पर रोहित को मीनाबाई ने पकड़े जाने के डर से आजाद कर दिया। रविवार को रोहित भी नागपुर पहुंचा। खबर लिखे जाने तक रोहित लकडग़ंज थाने में थानेदार मकेश्वर के समक्ष था। थानेदार मकेश्वर यह सच जानने की कोशिश कर रहे थे कि खुशबू ने जो आपबीती जो बताई उसमें कितना सच और कितना झूठ है।
- अभय यादव

रविवार, जून 27, 2010

पेट्रोल की कीमत 30 रुपये प्रति लिटर !

सरकार और मनपा चाहे तो नागपुर में सस्ता हो सकता है पेट्रोल
विशेष संवाददाता
नागपुर।
पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य वृद्धि के खिलाफ विरोध और सरकार को निंदा करने का सिलसिला जारी है। लेकिन राज्य सरकार और स्थानीय निकाय (मनपा) चाहे तो नागपुर समेत राज्य भर में जनता को पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से राहत मिल सकता है। पेट्रोलियम पदार्थ की कीमत बढऩे को क्रोध का टिकरा जनता केंद्र सरकार पर फोड़ रही है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य सरकार ने पेट्रोल पर 26 प्रतिशत का वैल्य एडेड टैक्स (वैट) लगा कर एक मोटी रकम अपनी तिजोरी में भर रही है। वहीं महानगर पालिका भी इससे कमाई करने में पीछे नहीं है। नागपुर महानगरपालिका ने तो पेट्रोल पर 4.5 प्रतिशत की दर से चुंगी कर लगा रखा है। यही हाल डीजल का भी है। राज्य सरकार डीजल पर 30 प्रतिशत का वैट कर वसूलती है। पेट्रोलियम व्यावसायी सूत्रों की मानें तो नागपुर में आने वाला पेट 30 रुपये प्रति लिटर होता है। लेकिन इसमें लगने वाले विभिन्न करों और डीलरों के कमिशन से इसकी दर बढ़ कर 50 रुपये प्रति लिटर से भी ज्यादा हो जाती है। ज्ञात हो कि नागपुर में पेट्रोल बेंगलोर के बाद सबसे ज्यादा महंगा है। तेल व्यावसायियों का कहना है कि यदि पेट्रोल से टैक्स हटा दिया जाए तो जनता को पूरी राहत मिलेगी। वर्ष 2009 में जब कू्रड के दर कम हुए थे तब अमेरिकी बाजार में पेट्रोल की औसत कीमत 16.92 रुपये प्रति लिटर था। वहीं भारत में यह कीमत 48.24 रुपये प्रति लिटर था।

बुधवार, जून 23, 2010

हाथ से निकल गई है कश्मीर की समस्या


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पत्रकार रविन्द्र दाणी की पुस्तक 'मिशन कश्मीरÓ का विमोचित

संजय स्वदेश
नागपुर।
आज कश्मीर की स्थिति हाथ से निकल चुकी है। चीन ने भी भारत में अतिक्रमण शुरू कर दिया है। इसमें मासूम जनता बेवजह पीस रही है। कुछ दिनों बाद असाम व तिब्बत के हालात भी ऐसे ही हो जाएंगे। यह कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का। वे कश्मीर समस्या से संबंधित विविध पहलुओं पर पत्रकार रविंद्र दाणी की पुस्तक 'मिशन कश्मीरÓ के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। सिविल लाइन्स स्थित डा. वसंतराव देशपांडे सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक का विमोचन सरसंघचालक मोहन भागवत के हाथों हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षत गंजू हेमटोलाजी ने की। प्रमुख अतिथि के रूप में कश्मीर के पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एस.के. सिन्हा उपस्थित थे। गड़करी ने कहा कि भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद मुझे पहली बार कश्मीर जाने का मौका मिला। कश्मीर के जनता के विचार के काफी अलग है। आजकल हमारे देश के सभी निर्णय दिल्ली में होते हैं, वह भी अमेरिकी दवाब में। देश की बाह्य व आंतरिक सुरक्षा पर सवाल खड़ा हो रहा है। उन्होंने कहा कि कहा कि देश को इन बड़ी चुनौतियों से लडऩा है। गडकरी ने पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें कश्मीर के विविध मुद्दों को शामिल किया है। इस किताब को सभी पढ़े। उन्होंने रविंद्र दाणी का अभिनंदन किया।

हर व्यक्ति से जुड़ा है कश्मीर : भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि कश्मीर की समस्या देश के प्रत्येक नागरिक से जुड़ी हुई है ना कि किसी पार्टी या किसी व्यक्ति विशेष से। इस पर हर किसी को विचार करना चाहिए। कश्मीर पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। नागपुर में इसके बारे में कई कार्यक्रम हुए। कश्मीर में 60 साल के सत्य की प्रतिक्षा चल रही है। परंतु परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। यह सवाल देश की एकता अखंडता से जुड़ा हुआ है। कश्मीर भारत का ही एक हिस्सा है, इसे ऐसे ही तो किसी को नहीं दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी हो जिससे हर मासूम अपने गांव में निर्भय से रह सके। पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पर कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एस. के. सिन्हा ने कश्मीर में हुए विविध युद्धों के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि कश्मीर भारत का एक अटूट अंग है। कश्मीर की समस्या का समाधान कठोर निर्णय से ही संभव है।
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रविवार, जून 20, 2010

मम्मी मुझे पापा से मिलने दो



नागपुर। रविवार को 'फादर डे' के मौके पर कई लाड़लों ने अपने पापा को विश करते हुए उन्हें छोटे-मोटे उपहार देकर उनका दिल जीता लेकिन वहीं नागपुर के कई बच्चे और अभिभावक रविवार की सुबह रामदासपेठ स्थित लैंड्रा पार्क में उपस्थित हुए। यहां आए बच्चे अपने पापा का प्यान पाने के लिए जज साहब से गुहार लगाने की तख्ती लिए हुए थे।

वहीं अभिभावक वर्षों से अपने लाडले-लाडलियों की एक झलक नहीं पाने की कसक दिले में लिए हुए आपस में चर्चा कर रहे थे। दरअसल ये सभी लोग दहेज विरोधी कानून 498-ए के तहत पीडित पति और बच्चे थे। ये सेव इंडिया फैमिली फाऊंडेशन नागपुर शाखा के बैनर तले यहां एकत्रित होकर फादर दिवस के मौके पर सरकार और न्यालय से इस धारा के तहत चल करे मामलों में बच्चों को पिता केस साथ मिलने की छूट देने की मांग कर रहे थे।

मोहन बावेटकर ने बताया कि वे खाड़ी देश में अच्छे जॉब में थे। लेकिन घरेलू विवाद में पत्नी ने 498-ए के तहत मामला दर्ज कराया। जॉब तो गई ही। मेरी पूरी जिंदगी तबाह हो गई। साढ़े तीन साल से बेटी का चेहरा तक नहीं देखा। जब अंतिम बार बेटी का चेहरा देखा था, तब वह दो माह की थी। अब तो उसका चेहरा भी ठीक से याद नहीं। राष्ट्र परिवहन विभाग में तैनात अनिल फूल ने बताया कि उने के लिए फादर डे को कोई मायने नहीं है। जब से पत्नी ने 498-ए के तहत मामला दर्ज कराया है। तब से बेटे की सूरत देखने के लिए तरस गया है। 9 साल से बेटे की एक झलक पाने की मन में लालसा लिये कानून की कमजोरी को कोस रहा हूं।

फाऊंडेशन के नागपुर शाखा के प्रमुख राजेश बखारिया ने बताया कि नागपुर हजारों ऐसे लोग हैं जिन्होंने वर्षों से अपने बेटी-बेटे की सूरत नहीं देखी। दरअसल 498-ए के तहत चल रहे मामले में करीब 90 प्रतिशत बच्चे मां के साथ ही रहते हैं। पिता के द्वारा कोर्ट से बच्चों से मिलने की गुहार लगाने के बाद जब मां को बच्चे को उसके पिता से मिलाने के लिए कहा जाता है, करीब 70-80 प्रतिशत मामले में महिलाएं बच्चे लेकर आती ही नहीं है। वे किसी न किसी तरह का बहाना बना देती है। इसपर कोर्ट किसी तरह की कार्रवाई नहीं करती है।

बाखरिया ने बताया कि 498-ए के पीडित लोग नागपुर के फैमिली कोर्ट में गत एक माह से इस बात अभियान चला रहे थे कि फादर डे के दिन उनके बच्चों से जरूर मुलाकात कराया जाए। क्योंकि बच्चों के परवरिश के दौरान उनके मन पर मां के साथ पिता का भी महत्वपूर्ण असर पड़ता है। लेकिन इस धारा के तहत फंसे लोग बच्चों की एक झलक पाने के लिए मोहताज रहते हैं।

मंगलवार, जून 15, 2010

बिहार में कांग्रेस का खोया जानाधार वापस लाएंगे मराठी माणुस

संजय स्वदेश
गत वर्ष महाराष्ट्र राज्य विधानसभा में भाजपा को करारी मात देने वाली कांग्रेस अब आगामी बिहार चुनावों में सत्तारुढ़ गढ़बंधन को करारी शिकस्त देने की योजना में है। मजेदार बात यह है कि जिस महाराष्ट्र में 'बिहारी माणुषÓ को प्रांतवाद के नाम पर प्रताडि़त किया गया, उसी प्रदेश के स्थानीय नेता बिहार की राजनीति में कांग्रेस के खोया जनाधार जुटाएंगे। मतलब, आगामी बिहार चुनावों में कांग्रेस के लिए मराठी मानुष बिहारियों का दिल जीतने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस आलाकमान ने रामटेक के सांसद और केंद्रीय समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकूल वासनिक को बिहार का प्रभारी और महाराष्ट्र विधान परिषद सदस्य संजय दत्त को चुनाव 'वार रूमÓ का मुख्य समन्वयक बनाया गया है। इसके अलावा महाराष्ट्र के दर्जन भर से ज्यादा नेताओं को बिहार चुनाव के लिए जिल पर्यवेक्षक बनाया गया है। खबर है कि इस बार बिहार चुनाव में कांग्रेस स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरेगी। सोमवार को कांग्रेस मुख्यालय में मुकूल वासनिक के नेतृत्व में बिहार चुनाव को लेकर बैठक हो चुकी है। बैठम में बिहार के 39 जिलों में से 7 जिलों का चुनाव पर्यवेक्षक महाराष्ट्र के नेताओं को बनाया गया है। इसमें पूर्व केंद्रीयमंत्री सुबोध मोहित को रोहतास जिला, विधायक सुनील केदार को किशनगंज, विधायक राजेंद्र मुलक को कटिहार, हुसैन दलावाई को पुर्णिया, मोहन जोशी को बक्सर, पूर्व सांसद हरि राठौड़ को अररिया और रंजन भोंसले को गया जिले का चुनाव पर्यवेक्षक बनाया गया है। इसके अलावा राजस्थान के करीब डेढ़ दर्जन नेता भी बिहार चुनावों में पर्यवेक्षक की भूमिका में होंगे।
ज्ञात हो कि पहले बिहार में कांग्रेस का प्रभार सिख दंगों के दांगी नेता जगदीश टाइटलकर को दिया गया था। लेकिन अब उनसे यह प्रभार लेकर मुकूल वासिनक को दे दिया गया है। वासनिक को बिहार चुनाव में कांग्रेस के खोये जनाधार को वापस लाने के लिए पूरी आजादी भी दे दी गई है। मतलब बिहार चुनाव के दौरान कांग्रेस के हर निर्णय में अब मुकूल वासनिक की खूब चलेगी। राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान मुकूल वासनिक ने ही प्रभार संभाला था। उन्होंने अपनी कुशल रणनीति से कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराई। इसलिए वे कांग्रेस अलाकमान के विश्वासपात्र हो गये। कांग्रेस ने टाइटलगर की जगह बिहार में इन्हें मौका देना उचित समझा है।

शनिवार, जून 12, 2010

सीखा दाखिले का स्टंट, बन गए एजेंट

प्रबंधन कोटे से दाखिले के लिए जम कर वसूला जा रहा है डोनेशन/ कई छात्र कर रहे कालेजों की दलाली!
संजय
नागपुर।
इन दिनों नागपुर के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में दाखिले की धूम मची हुई है। हर कोई मनपसंद के कॉलेज में दाखिला लेना चाहता है। सीट कम होने से कारण दाखिले की स्पर्धा बढ़ गई है। लेकिन इन्हीं सबके बीच कुछ विद्यार्थियों में दलाली का काम शुरू कर दिया है। इनमें सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग संस्थानों के वे विद्यार्थीं हैं, जिन्होंने दूसरे राज्यों से आकर यहां दाखिला लिया है। वे अपने ही क्षेत्र से जान पहचान के विद्यार्थियों को दाखिला प्रबंधन कोटे से अपने संस्थान में करवा कर मोटी दलाली वसूल रहे हैं। इसके अलावा कुछ बाहरी दलाल भी सक्रिय हैं।
ज्ञात हो कि नगर में तकनीकी शिक्षण संस्थानों में राज्य के बाहरी विद्यार्थियों को दाखिला प्रबंधन कोटे से ही मिलता है। शिक्षण संस्थानों को भी इस कोटे से दाखिला देने पर अच्छी कमाई हो जाती है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस तरह के डोनेशन लेकर दाखिला देने वाले शिक्षण संस्थानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया है। इसके बाद भी विभिन्न संस्थानों में डोनेशन लेकर दाखिले का खेल जारी है। शिक्षण संस्थान प्रबंधन कोटे से बाहरी विद्यार्थियों को दाखिले के एवज हर साल की तरह इस वर्ष भी लाखों रुपये वसूल रहे हैं। इसके लिए कई दलाल सक्रिय हैं। दूसरे प्रदेशों से आने वाले विद्यार्थियों को दाखिले की पूरी प्रक्रिया और प्रबंधन कोटे की सीट के तहत दाखिला लेने का रास्ता नहीं मालूम होता है। इसलिए वे सक्रिय दलालों के चंगुल में फंस जाते हैं। प्रबंधन कोटे के तहत दाखिले का डोनेशन की रकम हर संस्थान का अलग-अलग है। सबसे ज्यादा डोनेशन हिंगणा स्थित प्रियदर्शिनी कॉलेज का है। सूत्रों की मानें तो इन दिनों यहां सबसे ज्यादा 3 से 4.50 लाख तक रुपये की डोनेशन मांगी जा रही है। इसमें प्रबंधन के साथ-साथ दाखिला कराने वाले एजेंट का भी कमीशन है। सबसे ज्यादा डोनेशन बी.टेक टेलीकम्युनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक संकाय का है। जिन विद्यार्थियों ने पिछले वर्ष किसी एजेंट के चक्कर में पड़ कर मोटी रकम खर्च कर दाखिला लिया था, वे एक साल के अंदर प्रबंधन कोटे से दाखिला की प्रक्रिया पूरी तरह से समझ चुके हैं। उन्हें लगता है कि उसे बाहरी एजेंट से कुछ ज्यादा रकम लेकर यहां दाखिला लिया है। यहां शिक्षकों से जान-पहचान होने के बाद यह रास्ता सरल हो चुका है। झारखंड से आकर प्रियदर्शनी कॉलेज में बी.टेक इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई करने वाले एक छात्र ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि पिछले साल उसने एक बाहरी एजेंट को ढाई लाख रुपये देकर यहां दाखिला लिया था। तब उसे यहां दाखिले की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं थी। जब पैसा ही खर्च करना है तो सीधे प्रबंधन से संपर्क कर मोलभाव किया जा सकता है। इसके लिए इस वर्ष वे अपने ही क्षेत्र के ऐसे विद्यार्थियों की तलाश में हैं जो यहां दाखिला लेना चाहते हैं। प्रबंधन की ओर से भी ऐसे विद्यार्थी लाने पर एक अच्छी-खासी रकम कमीशन के रूप में मिलने के संकेत मिल चुके हैं। एक बाहरी एजेंट ने बताया प्रबंधन कोटे से दाखिला कराने पर अब पहले की तरह कमाई नहीं होती है। अब तो दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को खोजना पड़ता है। उसने बताया कि जिन विद्यार्थियों ने पिछले वर्ष दाखिला लिया था, वे ही सीधे अपने क्षेत्र के विद्यार्थियों से संपर्क कर उन्हें प्रबंधन से मिला रहे हैं और कमीशन ले रहे हैं।

सोमवार, जून 07, 2010

कभी घुसपैठियों का सर्वे नहीं हुआ


कभी घुसपैठियों का सर्वे नहीं हुआ : ज्योतिप्रसाद
संजय स्वदेश
नागपुर।
बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर असम में घुसपैठ हो रही है, इसमें अल्पसंख्यकों की संख्या ज्यादा होने के कारण स्थानीय अल्पसंख्याक बहुत ही कम हो गए हैं। यह कहना है असम के पूर्व मुख्य सचिव ज्योति प्रसाद राजखोवा का। वे नागपुर के रेशिमबाग में संघ शिक्षा वर्ग की तृतीय वर्ष समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। राजखोवा ने कहा कि घुसपैठियों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है। परिवार नियोजन नहीं होने से उनकी संख्या दिनों दिन बढ़ते ही जा रही है। देश में कभी घुसपैठियों का सर्वे नहीं हुआ। इसकी मांग हमने बार-बार की है। जनगणना व मतदाता जैसी महत्वपूर्ण पहल से घुसपैठों को दूर रखना चाहिए। नहीं तो इन्हीं के सहारे ये घुसपैठिये राजनीति में अपनी पैठ बना लेंगे। नेपाल से प्रत्यक्ष कोई समस्या नहीं हैं। लेकिन नेपाल माओवादी का कट्टर पक्षधर है। बताया जाता है कि माओवादियों के पास उत्कृष्ट दर्जे के 20,000 से अधिक अत्याधुनिक हथियारें हैं।
राजखोवा ने कहा कि ब्रम्हपुत्र नदी पर चीन द्वारा निर्माण की जा रही विद्युत संयंत्र देश के लिए खतरे की घंटी है। इसकी जानकारी होने के बावजूद केंद्र सरकार को चुप्पी साधी हुई है। चीन सरकार ब्रम्हपुत्र नदी पर विद्युत संयंत्र बना कर भारत अनगिनत संकट पैंदा कर सकती है। देश में धर्म परिवर्तन के लिए कहीं दबाव तो कही लोभ-लालच का इस्तेमाल हो रहा है, यह देश के लिए चिंतन का विषय है। उन्होंने कहा कि असम में उग्रवाद व घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र के पास कोई ठोस उपाय योजना नहीं है।
सरकार की नियम और नीति में फर्क : मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंचालक मोहन भागवत ने कहा कि स्वंयसेवक संघ जो बात वर्षों से कह रहा है, वह बात असम के अध्ययनशील ज्योतिप्रसाद द्वारा व्यक्त किया जाना, यह सिद्ध करता है कि स्वंयसेवक संघ ने तब असम के बारे में सही जानकारी हासिल कर उचित बयान जारी किया था। यह समस्या सिर्फ असम की नहीं बल्कि संपूर्ण भारत की है। केंद्र को सबकुछ मालूम होते हुए भी वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं करना सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक स्वार्थ है। हमारी सरकार व प्रशासन की नियत व नीति में काफी फर्क है। देश में जनगणना को दौर चल रहा है। इसमें नागरिकता जोड़ दी गई है। जबकि दोनों अलग-अलग मुद्दे ही नहीं, इनका अलग-अलग नियम है। देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रत्येक देशवासियों को है। सरकार व प्रशासन में बैठे लोग स्वार्थ के लिए स्वंय को भोलाभाला दर्शा रहे हैं। जनगणना के लिए विशेषज्ञों की राय लेकर शुरुआत करनी चाहिए थी। इस बार ओबीसी की गणना, जनगणना के साथ जरूर होगी। लेकिन उनका विकास मुमकिन नहीं है। कुल मिलाकर सत्ता में कबिजों को राष्ट्र की स्पष्ट कल्पना नहीं है, उन्हें सिर्फ मतों का स्वार्थ है।
कश्मीर की समस्या सर्वत्र चर्चित है। लेकिन समस्या जस के तस हैं। नक्सलवादियों के कदम दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं और केंद्र अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बयान बाजी कर रहा है। मालूम हो कि आंध्र में राजनैतिक पार्टी व नक्सलवादियों के साथ चुनावी गंठबंधन हुई थी। इसीतरह छत्तीसगढ़ में भी सांठगांठ के लिए प्रेरित करने की मंशा नजर आ रही है। देश के शिक्षाविदों से विदेशी घबरा रहे है तो दूसरी ओर देश में विदेशी शिक्षा को प्रवेश देकर अपनी खिल्ली उड़ाई जा रही है। श्री भागवत के संबोधन के पश्चात कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ।
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शनिवार, जून 05, 2010

पर्यावरण संरक्षण का काम कम, दिखावा ज्यादा

नागपुर। विश्व पर्यावरण दिवस पर शनिवार को शहर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए। विभिन्न संगठनों ने अलग-अलग तरीके से पर्यावण दिवस मनाया। कहीं रैली निकाली गई, तो कहीं पर्यावरण के थीम पर पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता आयोजित हुई। कुछ संगठनों ने सेमिनार का आयोजन कर पर्यावरण के खतरे को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। पर्यावरण दिवस पर इस क्षेत्र से जुड़े अधिकर विद्वानों ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण को ले कर काम कम और दिखावा ज्यादा हो रहा है।
साइकिल चलाओ, पर्यावरण बचाओ
मराठी विज्ञान परिषद के अध्यक्ष अशोक भट्ट ने बताया कि मनुष्य की मानसिकता जब तक नहीं बदलती, तब तक पर्यावरण संतुलन नहीं हो सकता। मनुष्य ही सबसे बड़ा प्रदूषक है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को देखते हुए सभी लोगों को साइकिल का इस्तेमाल करना चाहिए। वायु प्रदूषण कम करने के लिए यही एकमात्र उपाय है। इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए मराठी विज्ञान परिषद की ओर से महाराष्ट्र स्तर पर 1 जुलाई से 'चलो साइकल चलाएÓ कार्यक्रम का शुभारंभ किया जाएगा।
वन कर्मचारियों को जंगल की चिंता नहीं
वन व्यवस्थापन कार्य से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यभान खोब्रागड़े ने बताया कि जंगल की कटाई से पर्यावरण का नाश हो रहा है। इसके लिए सरकार के बदलते कानून जिम्मेदार हैं। वन कर्मचारियों को ही जंगल की चिंता नहीं है। वन कर्मचारी बढऩे से वन संपत्ति नष्ट हो रही है। वन कर्मचारी नौकरी के जगह पर नहीं रहते। इससे शिकार, जंगल कटाई और रात में होने वाली अवैध यातायात से जंगल के प्राणी मर रहे हंै। वाहन में केरोसिन के इस्तेमाल से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। सिर्फ समिति व्यवस्था करके शिकार एवं जंगल कटाई पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इसके लिए कानून पर अमल करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वनविकास मंडल के माध्यम से वृक्षरोपण होता है। परंतु बड़े-बड़े वृक्ष जैसे आम, नीम, इमली आदि वृक्ष तोड़कर गुलमोहर एवं सागवान के वृक्ष लगाए जाते हैं। उससे जंगल कटाई और बढ़ रही है। वायु प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए 'वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओÓ सिर्फ कगजों पर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष में उस पर कृति होनी चाहिए। वृक्ष प्राणवायु देते हैं और कार्बन-डायऑक्साईड का शोषण करते हंै। लेकिन यह वृक्ष सिर्फ सजावट के लिए नहीं बल्कि पर्यावरण संतुलन में काम आए।
फैशन हो गया है दिवस मनाना
नि:सर्ग संरक्षण संस्था के सचिव दिलीप गाड़े ने बताया कि विश्व पर्यावरण दिन मनाना फैशन जैसे हो गया है। जितनी समाज में जागृती हो रही है उतनी ही पर्यावरण समस्याएं बढ़ रही है। भारतीय संस्कृति में पानी को पवित्र माना गया है। किसी भी पूजा से पहले जल की पूजा की जाती है। किंतु नदी, तलाब में ही पूरे शहर की गंदगी छोड़ी जा रही है। कन्हान, पीली नदी में नागपुर का गंदा पानी छोड़ा जाता हैं। पिछले 10 वर्षों से प्रदूषण नियंत्रण विभाग प्रशासन को नोटिस भेज रहा है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून अमल में लाना जरूरी है। गाड़े का कहना है कि पर्यावरण दिवस मनाने के बजाय कार्यों पर बल देना चाहिए। पर्यावरण का अर्थ सिर्फ वातावरण से नहीं बल्कि अन्न-धान्य से भी है। नदी, नालों में प्रदूषण बढऩे से उसका परिणाम खेतों में होनेवाले फसलों पर हो रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासी राज्य में पर्यावरण की समस्या नहीं थी। वह अशिक्षित थे, परंतु उन्हें वन का महत्त्व मालूम था।
काम कम दिखावा ज्यादा
ग्लोबल एनवायरमेंट संस्था के सचिव दिनेश घोलासे ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण के लिए सरकार की यंत्रणा जिम्मेदार है। मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़-पौधों एवं फसलों पर हो रहा है। समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है। प्रकृति के विपरीत जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है। जमीन में पानी के स्त्रोत कम हो गए हैं। इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष तितली, चिडिय़ा, कौए, गिद्ध जैसे वन्य जीव, पौधें गायब हो चुके हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति पर्यावरण दिन के नाम पर कार्यक्रम लेकर दिखावा करते हंै। नए फंड, नई योजनाएं सिर्फ कागज पर होती है। सिर्फ 1-2 प्रतिशत लोग ही सही मायने में काम करते हैं। अपनी जन्मदाती पृथ्वी का सरंक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।
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कचरे से दाल रोटी की जुगत में लगे हैं हजारों लोग

पर्यावरण दिवस पर विशेष

हवाओं में जहर घुल गया है। बारिश के पानी में तेजाबी असर दिखता है। मिट्टी की उपज कम हो गई है। बर्फ के पहाड़ गल रहे हैं। कहीं सूखा हैं, तो कहीं रेगिस्तान में बारिश होती है। नदियां सूख रही हैं, भूजल गिर रहा है। बीमारियां बढ़ती जा रही है। शहर कूड़े के ढेर में बदल रहे हैं और पेड़ पौद्यों के हिस्से की जगह कांक्रिट और प्लास्टिक ने ले ली है। कोई शहर इससे अछूता नहीं है। कभी-कभी किसी खास मौके पर कोई सेलिबे्रटी या फिर किसी संगठन के कार्यकर्ता कचरा सफाई अभियान या फिर पर्यावरण संरक्षण का कोई अभियान चलाकर लोगों को सचेत करने की कोशिश करते हैं। कचरा फैलाने वालों में गरीब नहीं हैं। गरीबों ने कचरे के ढेर से जीविका का रास्ता सुलभ कर लिया है। इसमें महिलाएं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है।

कचरा होगा आमदनी बढ़ेगी
संजय swadesh
नागपुर।
संतरनगरी में महिला और बच्चों समेत करीब पांच हजार लोग कचरा से अपनी जीविका चला रहे हैं। अनुमान है कि 65 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। इनके कल्याण के लिए कुछ संगठन सक्रिय होकर काम कर रहे रहे हैं, लेकिन कचरा चुनने वाले के जीवन स्तर में किसी तरह का सुधार नहीं दिखता है। हर वर्ष पर्यावरण दिवस के मौके पर संतरानगरी में किसी न किसी तरह के कार्यक्रम आयोजित कर पर्यावरण सरंक्षण की बात कही जाती है। पर कुछ ठोस नतीजा नहीं निकलता है। पर्यावरण में तरह-तरह के प्रदूषण घुलने की मात्रा हर साल बढ़ती जा रही है।
नागपुर के भांडेवाड़ी डंपिंग यार्ड में हर दिन शहर के कोने-कोने से दर्जनों ट्रक कचरा भर कर लाते हैं। पर शहर में कचरा-चुन कर इसकी साफ-सफाई की जिम्मेदारी भले ही कहने के लिए मनपा के पास हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है की नगर में हजारों ऐसे महिला और बच्चे हैं जो कचरे से न केवल अपना जीवन-यापन करते हैं, बल्कि शहर की गंदगी को कम करते हैं। हर दिन सड़े-गले, बदबू वाले कचरे की ढेर की खाक छानने वाले ये लोग उच्च शिक्षित नहीं हैं। कचरे से पर्यावरण को दूषित करने में इनकी भूमिका भी नहीं है। लेकिन हर दिन कचरे की ढेर से जीविका चलाने वाली महिलाएं शहर की स्वच्छता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
कचरा चुनने वाली चौथी कक्षा की कोमल, छठी कक्षा कि प्रतिज्ञा ने बताया कि वे स्कूल भी जाती हैं। पढ़-लिख कर क्या बनेंगी, अभी तक कुछ सोचा नहीं है। कचरा चुन कर घर का चूल्हा जलाने वाली सुनीता ने बताया कि हर दिन कचरे की ढेर की खाक छानने से 50 से 60 रुपये की आमदनी हो जाती है। पुष्पा राऊत के दो लड़के और एक बेटी हैं। बेटी को पढ़ा रही हैं। पुष्पा नहीं चाहती कि उनकी बेटी भी बड़ी होने तक कचरा से ही अपनी जीविका की राह निकाले। बेटी भी मां के साथ हर दिन इस काम को देती है। स्कूल जाती है, पर सहपाठी नहीं जानते कि वह कचरा भी चुनती है। इसलिए कोई भेदभाव नहीं करता है। रुकमा विभा और मीरा ने बताया कि इस काम को छोड़ कर हर दिन इतनी आमदनी वाला दूसरा कौन-सा काम कर सकते हैं? लोग हमे अछूत मानते हैं, इसलिए घर में नौकरानी भी नहीं रख सकते हैं। पर्यावरण को दूषित करने वाले कचरे के कम होने की दूर-दूर तक संभावना नहीं दिख रही है। जब कचरा होगा तो इसे चुनने वाले की जरूरत तो पड़ेगी ही। जहिर से तमाम अभियान कचरा चुनने वाले का न जीवन स्तर सुधार सकते हैं और न हीं उनका पेशा बदलवा कर पुर्नवास करवा सकते हैं।
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नाग नदी का मिटते अस्तिस्व

नागपुर। दुनिया के अधिकतर विकसित शहर किसी न किसी नदी के किनारे बसे हैं। लेकिन बहुत कम शहर ही ऐसे हैं जिसके बीचो-बीच एक नदी गुजरती हो। ऐसे शहरों में नागपुर एक रहा है। नगर के बीचों-बीच गुजरने वाली नाग नदी गंदा नाला बना चुकी है। आज स्थिति यह है कि इसके पास से गुजरने वाले लोग इसकी बदबू के कारण दूर भागते हैं। नदी के नाम से पहचाने जाने वाला नागपुर का नाग नदी नाला बन चुकी है। नयी पीढ़ी इसे नाला के रूप में ही जानती है। उसके सामने नदी कहने पर उसे आश्चर्य होता है।
जानकारों का कहना है कि पिछले साल नागपुर महानगर पालिका और केंद्र की जेएनयूआरएम योजना के तहत नाला नहरीकरण योजना बनाई थी। इसके लिए 248 करोड़ रुपये खर्च के लिए तय किए गए थे। लेकिन इस योजना का क्या हुआ, इसका कहीं कोई आता-पता नहीं है। महापौर देवेन्द्र फडणवीस के कार्यकाल 1995 से 2000 में नाग नदी के सौन्दर्यीकरण के लिए एक विशेष योजना बनाई गई थी। योजना बनाने के लिए इकोसिटी फाऊंडेशन नामक संस्था की मदद की बात भी कही गई थी। बाद में केंद्र की राजग सरकार के कार्यकाल में केंद्रीय नदी संरक्षण प्रकल्प में नाग नदी को भी शामिल कर लिया गया। इसके लिए 30 करोड़ रुपये की भी मंजूरी हुई थी। राशि का कुछ हिस्सा राज्य सरकार व मनपा को भी वहन करना था। इस पर नीरी ने प्रदूषण रिपोर्ट भी तैयार की थी। लेकिन योजना कब और कैसे ठंडे बस्ते में चल गई? किसी को कुछ पता ही नहीं चला।
सामाजिक कार्यकर्ता उमेश चौबे का कहना है कि नदी की सफाई के लिए कई बार मांगे तो उठी, लेकिन कोई आंदोलन नहीं हुआ। 2002-2003 में जब नागपुर का त्रिशताब्दी महोत्व मनाया गया, तब इसकी सफाई के लिए विशेष मांग की गई थी। श्री चौबे का कहना है कि इसी वर्ष मुंबई में उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री विलाश राव देशमुख के साथ बैठक हुई। बैठक में नाग नदी की सफाई की मांग उठाई गई। बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने एक प्रेसवार्ता में यह घोषणा भी कि की नाग नदी की सफाई की जाएगी। लेकिन हुआ कुछ नहीं। इसके अलावा मनपा के बजट में नाग नदी की सफाई के लिए लाखों की राशि आवंटित होती रही है। लेकिन काम कुछ नहीं हुआ है।

इसके अलावा हर साल मनपा की ओर से मानसून आने से पूर्व बरसाती पानी की समुचित बहाव के लिए इसके साफ-सफाई का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत इस नदी के पास से गुजरने पर पता चलता है कि इसके लिए कितना काम हुआ है? लगभग 19 किलोमीटर लंबी यह नदी कूड़ा-करकट और प्रदूषण से गंदे नाले में का रूप ले चुकी है। मनपा नाग नदी की साफ-सफाई के लिए जो अभियान चलाती है, लेकिन इसका पर केवल रुपये ही खर्च होते हैं। हर साल की तरह इस साल भी साफ-सफाई हकीकत में यही है कि इसका कचरा निकला कर किनारे पर ही रख दिया जाता रहा है, बारिश आते ही पानी के बहाव के साथ यह कचरा फिर से नाले में ही मिल जाएगा।

सिचाईं के पानी का स्रोत

भोंसला बंशज राजे मुढ़ोजी भोंसले यह स्वीकारने से नहीं हिचकते कि नाग नदी नहीं रही। यह पूरी तरह से गंदे नाले में परिवर्तित हो चुकी है। इसकी जो वर्तमान चौड़ाई है, वह कभी तिगुनी होती थी। इसके किनारे अतिक्रमण हुए हैं। कभी धोबियों के लिए यह नदी बेहद उपयोगी होती थी। ब्रिटिश शासन काल से कपड़े धोने के लिए उनके लिए घाट बने थे। छह-सात घोबी घाट तो 1965 तक चले। आज कहीं भी यह घाट नजर नहीं आता है। नदी की पानी का उपयोग आमजन विभिन्न कार्यों में करते थे। इसके किनारे होने वाली खेती की सिंचाई, नाग नदी के भरोसे ही थी। किनारे कई मंदिर थे। महाशिवरात्री और नागपंचमी के दिन मेले लगते थे। राजधानी बने रहने तक इसका पानी कई कार्यों में उपयोग होता था। किनारे के बगीचे इसी से सींचे जाते थे। रेसिम बाग, तुलसी बाग में कुंए तो थे, लेकिन सिंचाई के लिए इसके पानी का उपयोग ज्यादा होता था। आश्चर्य की बात यह है कि विभिन्न जन-समस्याओं व पर्यावरण से संबंधित मामलों को लेकर न्यायालय में कई जनहित याचिका दायर की गई। लेकिन नाग नदी की सफाई के लिए किसी ने कोई जनहित याचिका दायर नहीं की। नागपुर नगर की रचना के केंद्र में यह नदी रही है।
करीब 60 के दशक में इसके आसपास अतिक्रमण शुरू हुआ। इसका सारा दोष नगर पालिका को जाता है। नगर पालिका ने इसकी बार्बदी में कम भूमिका नहीं निभाई है। कई जगहों पर नाग नदी की जमीन को स्वयं नगर पालिका प्रशासन ने दूसरे को दिया। सड़क को बढ़ाने के लिए इसकी चौड़ाई घटाई। नदी के किनारे नगर को बसाने में भोंसले राजाओं का उद्देश्य था कि नगर के आमजन को पानी के परेशानी न हो। पानी के कारण नगर में हरियाली से पर्यावरण स्वच्छ रहने के साथ समृद्धी रहेगी। पुराने नागपुर का भूगोल नदी के इर्द-गिर्द ही है। जिस नदी के नाम से शहर को पहचाना जाता है, उसका अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है। 25-30 साल पहले तक नदी का जल अशुद्ध नहीं था और पीने के अतिरिक्त पानी की समस्या नहीं होती थी।
नदी के किनारे रहने वाले बच्चे बीमार
नीरी ने अपनी रिपोर्ट में नाग नदी के पुनर्जीवन को शहर के स्वस्थ व पर्यावरण की दृष्टिï से महत्वपूर्ण बताया है। नीरी के विशेषज्ञों का कहना है कि नदी का जल प्रवाह ढलान की ओर होने से इसमें परेशानी नहीं आएगी। संस्था ने नदी के किनारे रहने वाले कुछ बच्चों की श्वसन प्रक्रिया की जांच की थी। इन बच्चों की तुलना बेहतर वातावरण में रहने वाले दूसरे बच्चों के श्वसन प्रक्रिया से की गई, जिसमें नाग नदी के किनारे रहने वाले बच्चों में सांस लेने में समस्या होने का खुलासा हुआ था।
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शुक्रवार, जून 04, 2010

बधाई हो सर , आपको 25 लाख की लॉटरी लगी है!

फिलहाल इस तरह की ठगी ई-मेल और एसएमस से हो रही थी, लेकिन अब इस तरह के ई-मेल और एसएमएस के प्रति लोगों में जागरुकता आने से ठगों ने ठगी का नया फंडा 'मिस कॉलÓ देकर कॉल करवाने का निकाल लिया है।

'मिस कॉलÓ से ठगी का नया फंडा
संजय स्वदेश
नागपुर।
अभी तक किसी अज्ञात नंबर से एक बड़ी रकम की लॉटरी लगने का संदेश भेजकर मोबाइल धारकों को झांसा देकर ठगा जा रहा था। लेकिन अब ठगों ने ठगी का नया तरीका ढंूढ़ लिया है। वे अब कॉल या एसएमएस नहीं करते हैं। वे एक के बाद एक लगातार मिस कॉल देते हैं। अनजाने नंबर से लगातार मिस कॉल आने पर मोबाइल धारक यह सोचते हैं कि शायद यह नंबर किसी अपने ही परिचित का हो, इसलिए वे उस नंबर पर कॉल करते हैं। कॉल करने पर बधाई देते हुए कहा जाता है कि आपको 25 लाख रुपये की लॉटरी लगी है। इसे पाने के लिए आप हमारे मुख्य आफिस में संपर्क करें। इतना ही सुनते ही कॉल करने वाले असमंजस में पड़ जाते हैं। जब व्यक्ति मुख्य आफिस का नंबर लेकर कॉल काटता है, तब तक उसके मोबाइल खाते से एक अच्छी-खासी रकम की चपत लग चुकी होती है। दरअसल जिस नंबर से ऐसे मिस कॉल आ रहे हैं, वे अंतरराष्ट्रीय नंबर होते हैं। उस पर कॉल करना साधारण कॉल दर से काफी महंगा है। ऐसा ही एक रविकांत कांबले के साथ हुआ। कांबले ने बताया कि सुबह-सुबह करीब 5:15 पर उनके पास हर दो मिनट पर एक ही नंबर से उन्हें चार बार कॉल मिस कॉल आया। एक के बाद एक लगातार चार बार कॉल आने से कांबले को लगा कि शायद उनका ही कोई अपना परिचित है जो किसी किसी मुसीबत में है और मिस कॉल दे रहा है। जब उस नंबर पर कॉल किया तो उसे कहा गया 'बधाई हो सर, आपको 25 लाख की लॉटरी लगी है, इस रकम को पाने के लिए आप हमारे हेड ऑफिस से संपर्क करें।Ó कांबले ने बताया कि यह सुनते ही मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है। इसलिए मैंने उल्टे उनसे ही पूछा कि यदि तुम्हारी कंपनी की लॉटरी लगी है तो मिस कॉल क्यों दे रहे हो। तब उन्होंने बोला कि हमारे पास इतना टाइम नहीं होता कि सबको कॉल करके बताएं। यह सुन कांबले ने झुंझलाकर फोन काट दिया। तब तक करीब 40 second बात हो चुकी थी। पर इस अवधि की बातचीत के लिए उनके मोबाइल से करीब 40 रुपये कट चुके थे। इस तरह की ठंगी के शिकार अकेले कांबले ही नहीं है। अज्ञात नंबर से हर दिन देश भर के सैकड़ों लोगों को मिस कॉल दिया जा रहा है। अज्ञात नंबर से लगातार चार बार सुबह-सुबह मिस कॉल पर पर झुंसलाए अधिकार लोग कॉल कर यह जनने की कोशिश है कि उन्हें परेशान करने वाला है कौन? यह जानने की कोशिश में ही वे ठगे जाते हैं। मजेदार बात यह है कि अज्ञात नंबर से आने वाले कॉल भारती नंबर की तरह की दस डिजीट के होते हैं।
जानकारों का कहना है कि जिस नंबर से मिस काल आता है, दरअसल वे एक तरह के खास विदेशी नंबर हैं। उस नंबर पर कॉल करने से आम कॉल रेट से ज्यादा शुल्क लगता है। ऐसे नंबरों पर जितनी देर तक बातचीत होती है, उसका एक हिस्सा उस विशेष नंबरधारक के खाते में भी जाता है। फिलहाल इस तरह की ठगी ई-मेल और एसएमस से हो रही थी, लेकिन अब इस तरह के ई-मेल और एसएमएस के प्रति लोगों में जागरुकता आने से ठगों ने ठगी का नया फंडा 'मिस कॉलÓ देकर कॉल करवाने का निकाल लिया है।

गुरुवार, जून 03, 2010

आ रहा है मानसून, पर कहा जाएगा पानी?


sanjay swadesh

नागपुर। भीषण गर्मी में से परेशान नागपुरवासी मानसून आने की उल्टी गिनती गिन रहे हैं। अमूमन जून के मध्य में मानसून विदर्भ की धरती की प्यास बुझाता है। हर साल मानसून विदर्भ की जमीं पर करोड़ों लीटर पानी बरसा कर चला जाता है। फिर भी हर साल गर्मी में पानी की परेशानी होती है। किसान हो या सरकारी महकमा हर कोई किसी न किसी कारण मानसून के इंतजार में रहता है। इस मानसून से किसान खरीफ की फसल की बुआई शुरू करते हैं। लिहाजा बीज बाजार में किस्म-किस्म के बीज व खाद आ जाते हैं। महानगर पालिका सक्रिय होकर नदी नालों की साफ-सफाई करती है, जिससे पानी का बहाव सुचारु हो सके। भूजल संरक्षण बोर्ड इस पानी को संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं बनाता है। इस वर्ष भी मानसून आने से पूर्व कुछ ऐसी ही स्थिति है। बरसात के शुद्ध जल संरक्षण के लिए सरकारी अभियान तो अनेक हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। विभिन्न सरकारी योजनाओं की पोल तब खुलती है जब गर्मी आती है और पीने के पानी की कमी पड़ जाती है।
राज्य सरकार के भूजल सर्वे व विकास विभाग का दावा है कि विदर्भ क्षेत्र के कुओं में बरसाती पानी जमा करने का उनका अभियान शुरू है। इस साल करोड़ों लीटर पानी इन कुओं में जमा करके यहां के भूजल स्तर को ऊपर उठाना है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की एजेंसी केंद्रीय भूजल बोर्ड के नागपुर स्थित कार्यालय का कहना है कि पानी का मामला राज्य सरकार के खाते में आता है, उनकी जिम्मेदारी विभिन्न इलाकों में भूजल की स्थिति पर अध्ययन कर उसकी रिपोर्ट देने तक है। इसके अलावा जरूरत पडऩे पर तकनीकी परामर्श के साथ ही जागरुकता अभियान चलाना है। बोर्ड के एक वरिष्ठï वैज्ञानिक ने बताया कि जल संधारण आपले राष्टï्रीय अभियान यानी जल संरक्षण का अपना राष्टï्रीय अभियान विदर्भ क्षेत्र में जारी है।
जमीन से लिया जल वापस कौन करेगा?राज्य के भूजल सर्वेक्षण एवं विकास विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग बोरवेल, कुओं व खेतों में कुएं के लिए उचित जगह बताने के अलावा हर गांव में भूजल सर्वेक्षण आदि करता है। ग्रामिणों को यह बताया जाता है कि गर्मी और ठंड के मौसम में भूजल का स्तर में कितना अंतर रहता है। इसके अलावा भूजल की दृष्टिï से राज्य के हर गांव का अध्ययन किया गया है। साथ ही साथ पीने का पानी कहां किस तरह से उपलब्ध है, यह देखा जाता है। राज्य में 2 लाख 50 हजार बोरवेल हैं। लेकिन इसमें लोगों की सहभागिता नहीं रही। जब तक पानी उपलब्ध होता है, लोग पानी लेते रहे। जब घर में नल आया तो, इनका उपयोग बंद कर दिया। बोरबेल सूखते गए। किसानों ने खेती के लिए इनका दोहन तो किया, लेकिन इसमें वापस पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी अपनी नहीं समझी। दरअसल इनका दोहन बैंक की तरह है। बैंक में रुपये तभी बार-बार निकाले जा सकते हंै, जब निकालने लायक रुपये उसमें डाले गए हों। वैसे ही जमीन के अंदर से निकाले गए पानी के बदले पानी निकालने का काम भी जरूरी है। नीचे जाते भूजल को रोकने के लिए राज्य सरकार की जो योजनाएं हैं, उसके मुताबिक हर गांव में पानी संबंधी चार 4 योजनाएं लागू होती है। इन योजनााओं के तहत हर गांव में हैंडपंप, कुएं और सामुदायिक कुए होना आवश्यक है। इस हिसाब से राज्य के औसतन हर गांव में 3.9 योजनाएं लागू हैं। अफसोस की बात यह है कि इनका रख-रखाव सुचारु नहीं होने से गर्मी के दिनों में लोगों को पानी की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। जनता समझती है कि इसकी जिम्मेदारी केवल सरकार की है। इसी कारण सरकार ने 193 में संविधान संशोधन कर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आपूर्ति में जन सहभागिता को अनिवार्य कर दिया। इससे करीब दो दशकों से जनता की थोड़ी-सी रुचि इसमें बढ़ी है। 2003 में राज्य के शिवकालीन पानी साठवालीन योजना चलाई गई। योजना को लागू करते समय हर गांव के पानी के विविन्न स्रोतों की गणना की गई।
कुओं में जाएगा करोड़ों लीटर पानी
राज्य के भूजल सर्वेक्षण एवं विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक शिवकालीन योजना के तहत गांव के लोगों के हर वर्ग और जाति के प्रतिनिधियों की पानी समिति बनाई गई। तब से स्थिति में सुधार आ रहा है। गांव में बनाये कुयें में बरसात में बहते पानी को फिल्टर कर इसमे डाला जाता है। इससे भूजल स्तर बढ़ा है। लोगों ने बोरवेल बंद कर दिए हैं। हर साल इन कुओं मे करोड़ों लीटर बरसात का पानी डाला जाता है। इस साल भी मानसून से पूर्व विभाग मुस्तैद हो चुका है। बहते पानी को बचाना है और भूजल को उपर उठाना है। विभाग का कहना है कि पानी की कहीं भी कमी नहीं है। कमी है तो इसके नियोजन की। इसके अलावा वर्तमान में जितना पानी आवश्यक है, वह उपलब्ध है। यदि जनता पानी संचित भी करती है, तो उसका उपयोग कहां करेंगी? सरकार बहुत जल्दी ग्रामीणों के लिए पानी बजट की योजना ला रही है। इसमें ग्रामीण यह तय करेंगे कि उनके गांव में हर साल कितना पानी खेती, पीने, पशु व दूसरे कार्यों आदि में खर्च होता है। उनके पास कितना पानी उपलब्ध है। यदि पानी कम है तो अतिरिक्त जल की आपूर्ति कहां से होगी? इसका सब कुछ हिसाब जनता करेगी। भूजल विकास विकास केवल उनका मार्गदर्शन करेगा।
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केंद्रीय भूजल बोर्डकेंद्रीय भूजल बोर्ड का क्षेत्रीय मुख्यालय नागपुर में स्थित है। इस पर आसपास के 14 तालुकों का दायित्व है। बोर्ड का कहना है कि नागपुर का मौसम सूखी गर्मी वाला है। इसलिए दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान यहां अच्छी वर्षा होती है। विभाग ने सन् 1901 से 1999 तक के मानसून के अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट जारी की है, उसके मुताबिक यहां हर साल 1000 से 1200 मि.मी. वर्षा होती है। नगर के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर काटोल क्षेत्र में यह औसतन 985.4 मि.मी. है।
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महाराष्टï्र में भूजल की स्थिति
क्षेत्र : 3,0,13 वर्ग किलोमीटर
वर्षा : 1433 मि.मी.
भूजल के स्रोत
वार्षिक स्रोत : 32.96 बीसीएम
वार्षिक उपलब्धता : 31.21 बीसीम
वार्षिक संरचना : 15.09 बीसीम
भूजल विकास का प्रतिशत : 48
कृत्रिम भूजल भराई क्षेत्र : 6526 वर्ग किलोमीटर
भूजल गुणवत्ता की समस्या : अमरावती और अकोला में भूजल में लवण की मात्रा ज्यादा है। इसके अलावा भंडारा, चंद्रपुर, नांदेड तथा औरंगाबाद के भूजल में फ्लोराइड नामक हानिकारक तत्व मिलता है।
31 मार्च, 200 तक राज्य में कुल 1 भूजल जनजागृति अभियान और 15 जल प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये
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दैनिक १८५७ में ३ जून को प्रकाशित

मंगलवार, जून 01, 2010

भीषण गर्मी से मर रहे हैं 'फ्लाई फॉक्सÓ

संजय कुमार
नागपुर। बीते सप्ताह की गर्मी केवल मनुष्यों पर कहर बन कर नहीं बरपी है। पशु-पक्षियों और अन्य वन्य जीवों पर भी इसका भीषण असर पड़ा है। गत सप्ताह भीषण गर्मी से नगर में करीब 150 चमगादड़ मर गए। चमगादड़ों की मौत से पक्षी मित्रों में मायूसी है। भारतीय पक्षी संरक्षण नेटवर्क के नागपुर संयोजक राजू कसांबे ने बताया कि वे कुछ दिन पूर्व जब महत्वपूर्ण पक्षियों का मुआयना करने वर्धा रोड़ स्थित केंद्रीय करागृह और रहाटे कालोनी चौक समीप के तालाब के पास पहुंचे तो चौंक गए। जब उन्होंने यहां पहले भ्रमण किया था, तो यहां के बरगद के पेड़ से लटकने वाले कुल चमगादड़ों की संख्या 300 के करीब थी। लेकिन इस बार लटकने वाले चमगादड़ों की फौज आधी दिखी। ज्ञात हो कि नगर के कुछ खास क्षेत्रों के बरगद आदि के पेड़ ही चमगादड़ों के लटकने के प्रमुख ठिकाने हैं। इनमें से प्रमुख रूप से नागपुर स्थित केंद्रीय करागृह के पास स्थित तालाब, शुक्रवारी तलाब के पार्क के पेड़, और सिविल लाइन्स में उद्योग भवन के पास के बरगद के पेड़ों पर दिन के समय चमगादड़ लटकते हुए दिखाई देते हैं। ज्ञात हो कि दिन के समय तेज रौशनी के कारण चमगादड़ को दिखाई नहीं देता हैं। इसलिए वे सुबह सूर्य की किरणें निकलने से पहले ही अपने ठिकाने पहुंच कर पेड़ की टहनियों से लटक जाते हैं। लेकिन दिन के समय भीषण गर्मी और सूरज की तीखी किरणों ने सैकड़ों चमगादड़ों की जान ले ली है। गर्मी से गश खाकर पेड़ से नीचे गिरने वाले चमगादड़ों पर कुत्ते झपट पड़ते हैं और उनका काम तमाम कर देते हैं। पक्षी मित्रों का कहना है कि चमगादड़ों की इस तरह से मौत से इनकी घटती संख्या चिंताजनक है। वहीं कुछ लोगों में यह भ्रम है कि चमगादड़ रात में फलों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि चमगादड़ एक तरह से किसानों को मित्र हैं, वे उन्हीं फलों को खाते हैं जो खराब हो चुके होते हैं या फिर उन्हीं फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जो फल बनने वाले नहीं होते हैं। भूख मिटाने की प्रक्रिया में चमगादड़ ऐसे कीटों को खाते हैं जो फसल या फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस तरह से चमगादड़ किसानों के दुश्मन नहीं मित्र होते हैं। पक्षी मित्रों का कहना है कि चमगादड़ 'फ्लाई फॉक्सÓ हैं। लेकिन इस तरह भारी संख्या में मरने से प्रकृति असंतुलन का खतरा बढ़ता जा रहा है। ज्ञात हो कि चमगादड़ों को वन्य जीव सुरक्षा कानून 1972 के तहत सुरक्षा प्रदान की गई है। लेकिन समाज में फैली भ्रांतियों के कारण किसान इन्हें अपना दुश्मन मानकर इन्हें मारने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। नागपुर में शायद यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ों के मरने की घटना हुई है। भीषण गर्मी से इतनी ही संख्या में यवतमाल जिले के वणी में पक्षियों के मरने की खबर आई थी।

एक्लव्य कुशल तिरंजादी कर क्षत्रिय नहीं बन सका

जो जाति सदियों से एक ही कर्म को करते आ रही है। तो उसकी पीढ़ी उस कार्य को कुशलता से कर सकती है। यह बात तो ठीक है, लेकिन पहले कर्म के आधार पर जाति को बदली जा सकती थी। महाभारत काल में एक्लव्य कुशल तिरंजादी कर क्षत्रिय नहीं बन सका। जाति आधारित कर्म बदलने को समाजिक मान्यता किसे मिली है? किसी शुद्र को कर्म के अनुसार जाति या वर्ण बदलने का इतिहास बताएं। विष्णु अवतार परशुराम वर्ण बदलते हैं, तो उन्हें मान्यता जरूर मिलती है, पर शुद्र को नहीं। उत्तर रामायण का पात्र शंबुक तेली था, पर साधना के ब्राह्मण कर्म पर श्रीराम चंद्र उसका सिर धड से अलग करते हैं। इसे समाज की कथा कर बात को टाली नहीं जा सकती है, क्योंकि हर कहानी अपने समाज और परिवेश से प्रभावित होती है।
कुलिन वर्ण के युवाओं ने जब भी किसी शुद्र की संस्कारी सुयोग्य कन्या से विवाह किया है, उसे सम्मान नहीं मिला है।
अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग को आसानी से कलास मना लिया गया है। लेकिन जरा सोचिये, पिछड़ों का वर्ण क्या है?
पिछड़ा वर्ग वैश्य समुदाय में शामिल नहीं है। वह अनुसूचित कहलाना पसंद नहीं करेगा। हालत उसकी त्रिशंकु की तरह हो गई है। पिछड़ों का वर्ण अधर में लटक गया है। यदि शुद्रों को वर्ण में ही रखा और कर्म के आधार पर जाति बदलने की समाजिक मान्यता में तनिक भी लोच होता तो स्थिति गंभीर नहीं होती।
जब इस जनगणना में अनुसूचित जाति और जनजातियों की गणना के लिए कॉलम है तो पिछड़ों का कॉलम रखने में बुराई नहीं दिखती। मेरे विचार से तो इस जनगणना में ब्राöम, वैश्य और क्षत्रियों की भी जनगणना कर ली जाती तो अच्छा होता। कम से कम आरक्षण की मलाई खाने वालों को यह तो पता चलता कि गैर-आरक्षित जातियों की तुलना में उनकी संख्या कितनी है। बड़ी संख्या के बाद भी उनकी तरक्की कितनी हुई है?

किसानों के राहत के 3750 करोड़ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा


दिल्ली जाएंगी विदर्भ की किसान विधवाएं

नागपुर। विदर्भ की विधवाएं अब अपना दुखड़ा सुनाने दिल्ली जाएंगी। प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने जाकर वे प्रधानमंत्री को बताने की कोशिश करेंगी कि कैसे प्रधानमंत्री राहत पैकेज के नाम पर जो कुछ विदर्भवासियों को दिया गया, वह सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और उनके हालात बद से बदतर हो गये हैं।
विदर्भ की एक विधवा कलावती का नाम लेकर देशभर में विदर्भ की विधवाओं पर ध्यान खींचने वाले राहुल गांधी भी अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। चुनाव में कलावती को न खड़ा होने देने के लिए कांग्रेस ने भले ही एड़ी चोटी का जोर लगाकर उन्हें मैदान में उतरने से रोक दिया हो, लेकिन अब उसी कांग्रेस के शासनकाल में प्रधानमंत्री राहत पैकेज पर जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। राज्य की पब्लिक एकाउण्ट्स कमेटी ने नवंबर 2009 में सदन पटल पर जो रिपोर्ट रखी थी उसमें बताया था कि प्रधानमंत्री राहत पैकेज के नाम पर जो 3750 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं।
विदर्भ जन आंदोलन समिति और विदर्भ शेतकारी विधवा संघटना की ओर से यवतमाल जिले के वांदाकोड़ा में 1 जून से शुरू हुए अनिश्चितकालीन धरने के बाद विदर्भ जन आंदोलन समिति के नेता किशोर तिवारी ने कहा कि हम अपनी मांग लेकर दिल्ली जाएंगे क्योंकि राज्य सरकार एक बार फिर 7650 करोड़ के सिचाईं पैकेज की मांग कर रही हैं। हमारी मांग है कि यह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़े बल्कि विदर्भ के तीस लाख किसानों के हित में खर्च किया जाए। किशोर तिवारी कहते हैं कि विदर्भ में पैकेज के नाम पर लूटपाट का बोलबाला है और किसानों की हालत जस की तस बनी हुई है। वे मांग कर रहे हैं कि राहत पैकेज की सीबीआई जांच करवाई जाए ताकि राहत के नाम पर भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके और विदर्भ की विधवाओं को उनका वाजिब हक मिल सके। किशोर तिवारी कहते हैं कि राहत पैकेज के नाम पर राज्य के नौकरशाह बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कुछ नेताओं के साथ मिलकर पैसों की बंदरबाट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदर्भ में किसान आत्महत्याएं बदस्तूर जारी हैं। ऐसे वक्त में भी अगर हमारे नौकरशाह इतने संवेदनहीन और व्यापारिक कंपनियां अपना मुनाफा देख रही हैं तो यह राष्ट्र और महाराष्ट्र की सरकार के लिए डूब मरने की बात है।
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दैनिक १८५७ में १ जून २०१० को प्रकाशित/ गर्मी से मर रहे हैं चमगादड़

जातिय कौशल की बात छूट रही है

जातिय आधारित जनगणना के बहस में जातिय कौशल की बात छूट रही है। प्रबुद्ध लोगों को जातिय आधारित औद्योगिक व्यवस्था पर ईमानदारी से चिंतन कर इसके पक्ष-विपक्ष में बोलना चाहिए। जहां तक मैं समझता हूं तो जाति आधारित जनगणना से न जाति का प्रसार होगा और न ही खत्म होगी। सच्चाई का पता चलेगा। किसकी संख्या कितनी है, यह जानने में बुराई ही क्या है। यदि जाति आधारित जनगणना नहीं भी होती है तो भी अपने-अपने क्षेत्र के जातिय गणना कर चुनाव में नेता अपनी रणनीति बनाते हैं।