नागपुर। पिछले एक वर्ष में जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें बड़ी तेजी से बढ़ी हैं। महंगाई की आग में हाल ही में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ी कीमतों ने घी डालने का काम किया है। इनकी कीमतें बढऩे से अन्य वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी दिखने लगी है। महंगाई जिस तेजी से बढ़ी है, उससे गरीब, मध्यम और उच्च वर्ग का बजट पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। दैनिक 1857 ने आज और ठीक एक साल पहले के जीवनावश्यक वस्तुओं पर एक नजर डाली, तो इसमें एक बहुत बड़ा अंतर नजर आया। चीनी, तेल, अरहर दाल, हल्दी, इलायची, काली मिर्च आदि जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतों ने ऊंची छलांग लगाई है। हालांकि इस बीच गेहूं, चावल के भाव उतरते-चढ़ते रहे हैं और विलासिता की वस्तुएं विशेषकर इलेक्ट्रानिक वस्तुओं की कीमतों में जीवनावश्यक वस्तुओं की तुलना में तेजी से गिरावट आई है।
महंगाई की मार से हर आम और खास व्यक्ति परेशान है। निर्धन वर्ग की तो जैसे कमर ही टूट गई है। दक्षिण अंबाझरी रोड पर चल रहे एक निर्माण कार्य के मजदूर सुलोचन ने बताया कि मजदूरी से हर माह ढाई से तीन हजार रुपये की कमाई होती है। तीन बच्चे हैं। इन्हें स्कूल भेजने की इच्छा है, लेकिन पैसे नहीं होने के कारण सरकारी स्कूल में जा रहे हैं। नये-नये ड्रेस खरीदने के लिए यह कमाई कम पड़ जाती है। घर की दूसरी चीजें खरीदने में भी ज्यादातर पैसा खर्च हो जाता है। खाना बनाने के लिए मिट्टी तेल ब्लैक में 20 से 25 रुपये लीटर खरीदना पड़ता है।
कपड़े की दुकान में सेल्समैन के रूप में कार्य करने वाली गीताा यादव ने बताया कि ढाई हजार में क्या होता है। पति की पगार चार हजार है, दोनों की आमदनी मिलाकर साढेड छह हजार होती है। करीब दो हजार रुपया मकान के किराये और बिजली बिल में चला जाता है। बाकी बच्चों की पढ़ाई और महीने का राशन में खर्च होता है. एक-एक रुपये बचाने के लिए खरीदारी में मोलभाव करनी पड़ती है।
ठेकेदारी के कार्य से जुड़े आर.सिंह ने बताया कि लाखों का काम चल रहा है। बिल आता है, बैंक में जमा हो जाता है। उसी से घर के खर्च के लिए पैसे निकाल लेते हैं। परिवार बड़ा होने से खर्च भी ज्यादा है। बच्चों की पढ़ाई का खर्च अलग। पहले थोक में भी एक बोरी चावल, गेंहू आदि खरीदते थे। अब तो हर बोरी की कीमत दो-से पांच सौ रुपये बढ़ी हुई है। छोटी-छोटी चीजों के दाम बढ़ गए हैं। हरी सब्जियों में तो जैसे महंगाई की आग लगी हुई है। इतनी कमाई होने के बाद हमारा यह हाल है, तो निधर्न लोगों का क्या हाल होगा, यह सोच कर मन में दु:ख होता है।
एक निजी कंपनी में बतौर सहायक प्रबंधक कार्य करने वाले संजय मिश्रा ने बताया कि महंगाई बढ़ती है, लेकिन उसकी तुलना में पगार नहीं बढ़ती है। लेकिन खाना खाना तो नहीं छोड़ सकते हैं। मजबूरी है। हर चीज खरीदनी पड़ती है। सबसे ज्यादा असर तो बचत पर पड़ी है। पहले 12 हजार महीने की कमाई में जहां चार से पांच हजार रुपये प्रतिमाह की बचत हो जाती थी, वहीं अब दो से तीन हजार तक बचत करना मुश्किल हो जाता है। स्थिति तो यह आ गई है कि अब कभी-कभी बचत के पैसे भी खर्च करने की नौबत आ जाती है। पहले महीने में दो दिन बार सपरिवार बाहर खाना खाने चले जाते थे। अब तो एक बार जाने के लिए भी सोचना पड़ता है।
एक साल के अंतराल पर वस्तुओं कें मूल्य आंकड़े
वस्तुएं 15 जुलाई 2009 15 जुलाई 10
पेट्रोल 45.00 57.00
डीजल 28.00 36.00
रसोई गैस 335.00 370.00
केरोसिन 9.50 12.50
गेहू २२.00 24.00
चावल 2६.00 30.00
चना 2६.00 32.00
तुअर ६०.00 65.00
चीनी २५.00 32.00
सरसों 2५.00 32.00
जीरा 10८.00 140.00
हल्दी ६८.00 190.00
सोफ मोटी 8९.00 105.00
कालीमिर्च 13९.00 165.00
हरी इलायची 5७0.00 1500.00
(सभी आंकड़े रुपए प्रति किलो में हैं। वस्तुओं के मूल्य स्थानीय दुकानदारों से बातचीत पर आधारित हैं)
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