नागपुर। एक ओर नगर के तबेले के से चंडीपुरा (मस्तिष्क ज्वर) फैलने का खतरा बना हुआ है, वहीं कुछ तबेले की आड़ में नगर में नकली दूध का धंधा फल फूल रहा है। जानकारों का कहना है कि नकली दूध व्यवसाय से जुड़े लोग भी शहर में मवेशी बंधवाने का काम सुनियोजित तरीके से कर रहे हैं। देखा जाए तो नगर में ऐसी अनेक कालोनियां हैं, जहां दो-चार मवेशी बांध कर तबेला चलाया जा रहा है। लेकिन इन दो-चार मवेशियों वाले तबेले से ही प्रतिदिन 200-300 लीटर दूध बेचने का धंधा चल रहा है। जब कि दो-चार मवेशियों से दूध के धंधे में मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है। क्योंकि इतने मवेशियों के चारे का खर्च इतना होता है कि उनके दूध से पूरा पैसे और लागत नहीं वसूल हो सकती है। अनुमान है कि नगर में छोटे-बड़े करीब 350 तबेले हैं। सूत्रों की मानें तो दो-चार मवेशी वाले अनेक तबेला संचालक नकली दूध के एजेंटों के संपर्क में हैं। वे अपने यहां कृत्रिम दूध तैयार करते हैं। उनके यहां मवेशी होने से किसी को इस बात का शक भी नहीं होता है कि वहां नकली दूध का कारोबार होता होगा। ग्राहक तबेला वाले से सीधे दूध लेकर उन्हें असली दूध की कीमत दे रहे हैं, पर बदले में नकली दूध प्राप्त कर रहे हैं।
नगर के प्रभावशाली तबेला संचालक न केवल स्थानीय लोगों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं, बल्कि सरकारी जमीन पर भी अतिक्रमण किये हुए हैं। छोटी-मोटी बस्ती के कई लोग तबेले वालों के कारण कहीं और रहने चले गए।
ज्ञात हो कि तबेलों से स्वास्थ्य पर प्रभाव की शिकायतों को देखते हुए मुंबई, भोपाल, जबलपुर जैसे शहरों में तबेलों को शहर से पहले ही बाहर किया जा चुका है। मुंबई में गोरेगांव, दहीसर, जबलपुर में पनागर मार्ग व भोपाल में रिंग रोड के बाहर तबेले बनाए गए हैं। नागपुर में भी 4 वर्ष पूर्व ऐसा प्रयास किया गया था। पूर्व नागपुर में भांडेवाड़ी, पश्चिम में गोरेवाड़ा व दक्षिण में शिवणगांव में इसके लिए कुछ भूमि तय की गई थी। गोरेवाड़ा में तो तबेले का प्रस्ताव लगभग स्वीकृत हो चुका था। लेकिन इसकी फाइल अधिकारियों के टेबल पर कहां दबी हुई है, कोई बताने को तैयार नहीं।
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