शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

अन्य व औषधि प्रशासन विभाग की सुस्ती से मिलावटखोर बेखौफ

-एक साल में 100 से भी कम मामले दर्ज
संजय स्वदेश
नागपुर।
बढ़ती महंगाई के कारण कई व्यापारी मिलावट का धंधा कर रहे हैं। इसके अलावा बरसात के कारण बाजार में बिकने वाले कई खाद्य पदार्थ अंदर से खराब हो जाने के बाद भी धड़ल्ले से बिक रहे हैं, जिसे जाने-अनाजने में खाकर लोग बीमार हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मिलावटखोरी पर नियंत्रण करने वाला विभाग अन्न व औषधि प्रशासन सुस्त दिख रहा है। इसकी सुस्ती से मिलावटखोर बेखौफ होकर मिलावट का धंधा कर रहे हैं। विभाग के सह आयुक्त कार्यालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नागपुर शहर और जिले में मिलावटखोरी पर नजर रखने के लिए 12 निरीक्षक, एक पर्यवेक्षक और एक सहायक आयुक्त हैं। लेकिन विभाग औसतन हर दिन एक भी नमूने नहीं ले पाता है। विभाग के पर्यावेक्षक सं.भा. नारागुडे से प्राप्त जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2009-10 में विभाग ने 1178 नमूने जांच के लिए भेजे, इनमें से महज 146 ही अप्रमाणित मिले। उसमें से भी केवल आधे मामले ही दर्ज हुए। बीते वर्ष के इस आंकड़े से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विभाग नगर में चल रहे खाद्य पदार्थों की मिलावट को लेकर कितना सक्रिय है। यदि 12 निरीक्षकों में हर निरीक्षक हर दिन दो नमूने भी लेते हैं, तो एक दिन में 24 नमूने विभिन्न इलाकों में बिकने वाले खाद्य पदार्थों के लिए जा सकते हैं। इससे मिलावटखोरों में भय बैठेगा और वे मिलावटखोरी छोड़ सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि साल में विभाग जितने सैंपल लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजता उसमें से आधे से भी कम सौंपल की रिपोर्ट अप्रमाणित आती है। अधिकतर मामलों में कुछ ले-देकर मामला दबा देने का प्रयास किया जाता है। यदि विभाग में बात नहीं बनती है तो प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों से संपर्क साधकर मतलब का काम करा लिया जाता है।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई बार वे स्वयं संज्ञान लेकर सैंपल लेने के लिए छापा मारते हैं, तो कुछ शिकायतों पर संज्ञान लेकर छापामारने की कार्रवाई चलती है। लेकिन जितनी भी शिकायतें आती हैं, उसनें से करीब 80 प्रतिशत शिकायतें पूर्वाग्रह से प्रेरित होती हैं। लोग किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए मिलाटवखोरी की झूठी शिकायत कर देते हैं।

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