सोमवार, जुलाई 26, 2010

दोषियों की सजा बदलने से दलितों पर अत्याचार बढ़ा


खैरलांजी प्रकरण /भैयालाल भोतमांगे की जमीन हथियाने की कोशिश
आधा दर्जन संगठनों ने किया प्रदर्शन, सरकार को भेजा ज्ञापन


संजय स्वदेश
नागपुर।
खैरलांजी हत्याकांड में दोषियों की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदलने का विरोध अभी भी जारी है। सोमवार को रिजर्व बैंक चौक पर आधे दर्जन से भी ज्यादा संगठनों ने इस निर्णय के विरोध में प्रदर्शन किया। दीक्षाभूमि महिला धम्म संयोजन समिति, राष्ट्रीय संबुद्ध महिला संगठन, ऑल इंडिया प्रोगे्रसिव वूमेेन्स ऑर्गनाइजेशन, संजीवनी सखी मंच, जरीपटका, दलित महिला संघ, गौतमी महिला मंडल, नालंदा महिला मंडल, रमाबाई आंबेडकर महिला संगठन कोराड़ी आदि संगठन के कार्यकर्ताओं ने चौक पर धरना देते हुए फैसले के विरोध में नारेबाजी की। उनका कहना था कि इस प्रकरण में फांसी की सजा बदलने के बाद दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं। उनकी मांग है कि दोषियों की फांसी की सजा कायम रहे। मुकदमे की सुनवाई के लिए एक स्वतंत्र न्यायालय का गठन किया जाए। सीबीआई इस मामले की फिर से जांच करे और मामले में विनयभंग और अॅट्रॉसिटी एक्ट भी दर्ज किया जाए। इन संगठनों ने अपनी मांगों की प्रति राज्य के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल और केंद्रीय न्यायमंत्री मुकुल वासनिक को भेजी है।
ज्ञापन में कहा गया है कि खैरलांजी प्रकरण से यह सिद्ध हो गया है कि देश की जातिवादी सामाजिक मानसिकता में पीडि़त दलित को न्याय नहीं मिल सकता है। इस प्रकरण में भोतमांगे परिवार के चार सदस्यों की निर्मम हत्या के दोषियों की फांसी की सजा में दलित और बौद्ध समाज में यह आस जगी थी कि उन्हें भी न्याय मिल सकता है। लेकिन उच्च न्यायालय के निर्णय से यह आस भी टूट गई है। एक तरह से यह दलित और बौद्ध समाज को अप्रत्यक्ष धमकी है। यदि सरकार चाहे तो न्यायालय के निर्णय को भी बदल सकती है। आश्चर्य की बात यह है कि खैरलांजी प्रकरण इतना गंभीर हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने इसमें गंभीरता नहीं दिखाई। दोषियों पर विनयभंग और अॅट्रॉसिटी एक्ट के मामले तक दर्ज नहीं किये गए।
ज्ञापन में कहा गया है कि खैरलांजी प्रकरण के इस निर्णय के बाद खैरलांजी गांव में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है। भैयालाल भोतमांगे की जमीन कब्जा करने की कोशिश की गई। इसकी शिकायत जब भंडारा के पुलिस स्टेशन में की गई तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा जिस गांव में चार दतिलों की हत्या हुई, उस गांव को तंटामुक्त गांव का पुरस्कार दिया गया है। आरोपियों को फांसी की सजा बदलने से यह साबित हो गया है कि देश में दलितों पर हुए अत्याचार के मामले में न्याय नहीं मिल सकता है। संगठनों का कहना है कि यदि इस मामले में उन्हें उचित न्याय नहीं मिला तो वे सड़क पर उतर कर आंदोलन करेंगे।
प्रदर्शनकारियों में तक्षशील बाघमारे, छाया खोब्रागड़े, वंदना जीवने, सरोज आगलावे, प्रज्ञा बागड़े, डा. लता बाकोड़े, रेखा, खोब्रागड़े, अर्चना, शैला नांदेश्वर, शार्दुला महाजन, तोसी साखरकर, प्रतिमा, सरोज डांगे, कविता मेठे आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थीं।
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