तुअर दाल में जम कर हो रही है मिलावट
नागपुर। बढ़ती महंगाई के कारण जहां आम आदमी की कमर टूट गई है, वहीं इससे मिलावटखोरों की चांदी ही चांदी है। वे अनेक वस्तुओं में मिलावट कर ग्राहकों से असली वस्तुओं के दाम वसूल कर मालामाल हो रहे हैं। आम लोग असली और नकली का फर्क नहीं समझ पा रहे हैं। आधुनिक तकनीक ने असली और नकली का भेद करना मुश्किल कर दिया है। इसी का लाभ मिलावटखोर उठा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो असली वस्तुओं का दाम देकर नकली वस्तुओं का सेवन करने वालों को न केवल धन की हानि हो रही है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी घातक असर पड़ रहा है। हालांकि इसका पता एकदम से नहीं चल पाता है, लेकिन नकली वस्तुओं के सेवन करने वाले विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।
दुकानों में विशेषकर राशन की दुकानों में यह काम धड़ल्ले से किया जा रहा है। बाजार में तुअर की दाल में बटरी, दाल और खेसाड़ी दाल मिलाकर धड़ल्ले से बेची जा रही है। कई दुकानदार वस्तुओं में मिलावट इस औसत से कर रहे हैं कि वह पकड़ी न जाए। वे नकली वस्तुओं की मिलावट असली से कम रख रहे हैं। जैसे उनकी मिलावट 30 से 40 प्रतिशत तक ही रह रही है। अच्छी क्वालिटी की दाल, चावल, गेहंू में आसानी से मिलावटी वस्तुओं को मिलाया जा रहा है।
मिलावटखोरी के बारे में अन्य एवं औषधि अन्वेषण विभाग का कहना है कि जो क्षेत्र हमारे दायरे में आते हैं, उन पर हमारी कड़ी निगरानी है। नागपुर के अधिकतर क्षेत्र महानगर पालिका के दायरे में आते हैं। इसलिए मिलावट का सैंपल लेना और मिलावटखोरी पकडऩे के लिए अभियान चलाने की जिम्मेदारी मनपा को है।
शहर के चिकित्सकों का कहना है कि उनके पास आने वाले मरीजों के लक्षण से पता चलता है कि वे मिलावटी वस्तुओं का सेवन कर रहे हैं। मानसून आने से 'फूड प्वाइजनिंगÓ की समस्या आम होती जा रही है।
पिछले दिनों एक समाजिक कार्यकर्ता ने राशन की दुकानों पर मिलने वाली तुअर दाल का नमूना प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजा था। परीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक तुअर दाल के सैंपल में 8 प्रतिशत की नमी, 16 प्रतिशत बटरी दाल, 32 प्रतिशत लाखोड़ी दाल व एक से दो प्रतिशत अन्य दालों की मिलावट मिली। रिपोर्ट से साबित हुआ कि नगर की राशन दुकानों में खरीदी करने वाले लोगों को केवल 43 प्रतिशत ही शुद्ध तुअर दाल मिल रही है। हाल में तेजी से बढ़ी महंगाई के कारण मिलावट का धंधा और बढ़ गया है।
कई कंपनियों ने महंगाई में राहत देने के लिए ग्राहकों में भ्रम बनाया है। पहले जितने रुपये में जितने वजन में वस्तुओं का पैकेट मिलता था। कंपनियों ने महंगाई के कारण भाव बढ़ाने के बजाय उसमें से मात्रा कम कर दी है। छोटे अक्षरों में पैकेट पर भी कम वजन लिखा होता है। लेकिन ग्राहक इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। वे पूर्व की कीमतों में ही वस्तुएं लेते हैं। लेकिन वे इस बात से अनजान रहते हैं कि उन्हें उतने रुपये में कम समान मिल रहा है।
०००
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें