शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

बार-बार शरीर संबंध बलात्कार नहीं

मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ का महत्वपूर्ण फैसलानागपुर। किसी महिला या युवती से बार-बार शरीर संबंध रखना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। यह महत्वपूर्ण फैसला मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के न्यायाधीश अंबादास जोशी ने दिया है। न्यायमूर्ति जोशी की खंडपीठ ने एक मेडिकल रिप्रजेटेटिव अनवर खान इकबाल खान मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी दृष्टिकोण से विचार किया गया तो भी गलतफहमी के विश्वास से ऐसा होना साबित नहीं होता। 2 वर्षों तक लगातार शरीर संबंध रखने की अनुमति देना बलात्कार साबित नहीं होता।
ज्ञात हो कि न्यायमूर्ति जोशी ने कुछ दिनों पूर्व ही ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला दिया था कि शादी का लालच देकर तथा उस पर यकीन रखकर शरीर संबंध रखना बलात्कार नहीं होता। उसके बाद उनका यह दूसरा ऐसा फैसला है, जिससे आईपीसी की धारा 376 के मामले में फंसे अनेक लोगों को राहत की संभावना दिखने लगी है। ब्लात्कार के दर्ज सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिसमें आपसी सहमती से शारीरीक संबंध बनाये गए थे और बाद में किसी बात को लेकर अनबन होने से कत्थित पीडि़ता ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया।

अनवर खान इकबाल खान को नागपुर सत्र न्यायालय ने एक युवती के साथ लगातार कुकर्म के मामले में 2 वर्ष पूर्व 7 वर्षों के सश्रम कारावास व 20 हजार रु. जुर्माने की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बदल दिया। अनवर खान ने 14 अप्रैल से 5 मई 2004 के दौरान शादी का लालच दिखाकर युवती के साथ शरीर सुख प्राप्त किया था।
अनवर खान तथा युवती एक ही कंपनी में कार्यरत थे। आरोपी ने नागपुर की एक होटल में स्थित अपने कमरे में युवती को बुलाया तथा उसके साथ कुकर्म किया। इस घटना से युवती रोने लगी। उसने आत्महत्या करने की धमकी दी। इसे देखकर अनवर खान ने उसे शादी का लालच दिखाकर शांत किया। बाद में अनवर ने युवती को अमरावती व यवतमाल की होटलों में बुलाया तथा वहां भी शादी का लालच देकर उसके साथ यौन संबंध बनाया। आरोपी द्वारा शादी से इन्कार करने तक यह मामला जारी था।
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता युवती पागल हो चुकी थी तथा वह आरोपी के पीछे पड़ गई थी। यह सभी एक पक्ष से ही हो रहा था। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए बचाव पक्ष ने बताया कि शादी के आश्वासन पर भरोसा रखकर युवती ने शरीर संबंध रखने की अनुमति दी। इसे गलतफहमी से दी गई अनुमति नहीं कहा जा सकता।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने कहा कि युवती स्वयंनिर्बंध तथा आत्मज्ञान से अनभिज्ञ थी और इसी कारण शादी के आश्वासन पर यकीन रखकर वह लैंगिक सुख देती रही। वह सज्ञान है। खासकर उसकी इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता कि गर्भपात के बाद भी उसके साथ दो बार बलात्कार हुआ।
वर्ष 2009 के अंत में भी सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जिसमें कोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषी ठहरा चुके सुनील कुमार नाम के एक युवक को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि कौमार्य भंग कराते वक्त लड़की ने इसका विरोध नहीं किया था, इसलिए वह बलात्कार की पीडि़ता नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: