सोमवार, जुलाई 19, 2010

बैंकों ने तोड़ी आशियाने की आस

अधर में लटका राजीव गांधी आवास योजना-2
संजय स्वदेश
नागपुर।
ऐसा कई बार होता है जब सरकार देश की जनता के लिए कुछ ईमानदार पहल करती है, लेकिन बीच के बिचौलियों उस पहल का बेडागर्क कर देते हैं। महाराष्ट्र में हजारों गरीब परिवारों के लिए एक योजना चल रही है। योजना का नाम है राजीव गांधी आवास योजना-2। इस योजना के तहत 16 हजार से 90 हजार की वार्षिक आय वालों के लिए 90 हजार रुपये तक का कर्ज अपना आशियाना बनाने के लिए दिया जाता है। इस कर्ज का सारा ब्याज राज्य सरकार वहन करती है। कर्ज की मूल राशि लाभार्थी को जमा करनी पड़ती है। लेकिन विज्ञापन में दो से चार दिन में होम लोन देने के दावा करने वाले इस कर्ज को देने से कतराते हैं। महाराष्ट्र में इस योजना की हकीकत यह है कि विभिन्न सरकारी बैंक सरकार की ईमानदार मंशा पर पानी फेर रहे हैं। उनकी उदासिनता से यह योजना अधर में लटक गई है। नागपुर की स्थिति देखिये। सरकार ने इस योजना के तहत नागपुर में करीब 2900 लोगों के आवेदन मंजूर किये थे। लेकिन जब ये आवेदन बैंकों के पास गए तो उन्होंने किसी न किसी बहाने से इस योजना के तहत कर्ज देना टाल दिया। कई आवेदकों ने तो बैंक के चक्कर काटते-काटते अब इस योजना के लाभ पाने से निराश हो गये हैं। बैंकों ने इस योजना के तहत कर्ज देने के लिए आवेदकों पर ऐसी-ऐसी शर्त लगा दी कि लोगों को शर्त पूरा करना मुश्किल हो गया है। ऐसी स्थिति केवल नागपुर की ही नहीं है। पूरे महाराष्ट्र में इस योजना को सरकारी बैंक ऐसे ही कुठराघात कर रहे हैं। इस योजना की घोषणा राज्य सरकार ने कुछ महीने पहले ही की थी। तब यह कहा गया था कि 3 वर्ष में 10 लाख गरीब लोगों को अपना आवास उपलब्ध कराने के लिए कर्ज दिया जाएगा। इस योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए बैंकों के विभिन्न शर्तों को हटाने के लिए सरकार ने बैंकों को निर्देश भी दिया था। इस संबंध में एक सकुर्लर भी जारी हुआ था। पर बैंकों ने इस पर अमल नहीं किया है।
योजना से जुड़े नागपुर के उपअभियंता विनायक मामुलकर ने बताया कि वर्ष 2008-09 और 2009 और 2009-10 में 2966 लोगों को आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए बड़े पैमाने पर आवेदकों ने आवेदन दिया था। लक्ष्य के अनुसार 2966 लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए उनके आवेदन मंजूर कर बैंकों को भेज दिये गए। लेकिन बैंकों की शर्त पूरी नहीं करने के कारण अधिकर लोगों को इसका लाभ नहीं मिला। वहीं कुछ आवेदकों ने बैंक के लोन विभाग के साठगांठ से अपना कर्ज पा लिया। लेकिन अधिकतर लेकिन अधिकर आवेदक बैंक के शर्तों में फंस कर इस लाभ से वंचित हो गये हैं। महाराष्ट्र बैंक के एक अधिकारी ने नाम खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि सरकारी योजनाओं के तहत कर्ज देना बैंक के लिए घाटे का सौदा है। सबसे पहले तो बैंक से ब्याज पाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है। वहीं सीधे ग्रहकों से कर्ज की वसूली सीधे-सीधे हो जाती है। इसके अलावा बैंक भी कर्ज देने से पहले ऐसे आवेदकों की आर्थिक स्थिति अच्छी तरह से देखती है। बैंक को जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि कर्ज लेने वाला इस योजना के तहत ब्याज माफ होने के बाद भी मूलधन चुकाने में सक्षम है, तब ही उनके कर्ज के आवेदन की मंजूरी दी जाती है। बैंक को इस योजना के तहत बहुत ज्यादा लाभ भी नहीं हो पता है। इसलिए सरकारी योजना के तहत कर्ज देने से हर बैंक हिचकते हैं।
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