गुरुवार, जुलाई 15, 2010

सबसे ज्यादा जंगल विदर्भ में, शोध संस्थान बनेगा पुणे में

फिर विदर्भ की उपेक्षा
नागपुर।
वैसे तो विदर्भवादी नेता वर्षों से राज्य सरकार पर विकास को लेकर विदर्भ की अपेक्षा करने का अरोप लगाते रहे हैं। लेकिन हाल ही में में इसका एक ताजा उदाहरण सामने आया है। राज्य के जंगलों के लिए शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव था। राज्य के सबसे ज्यादा जंगल विदर्भ के जिलों में हैं। फिर भी वन शोध संस्थान पुणे में बनाने का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है जबकि राज्य के वन विभाग का मुख्यालय नागपुर में है। ज्ञात हो कि शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव संबंधी घोषणा वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश ने जनवरी माह में पत्रकारों से बातचीत में की थी। उस समय पत्रकारों से बातचीत में आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र का 57 प्रतिशत वन क्षेत्र विदर्भ में ही है।
राज्य के इस निर्णय से विदर्भ के वन प्रेमियों में नराजगी है। सतपुड़ा फाउंडेशन और नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी, अमरावती (एनसीएसए) ने सरकार के इस निणर्य का कड़ा विरोध किया है। फाउंडेशन के प्रमुख किशोर रिठे ने कहा है कि सरकार का यह निर्णय वस्तुस्थिति की हकीकत देखते हुए करनी चाहिए। जब सबसे ज्यादा वन क्षेत्र विदर्भ के जिलों में हैं तो फिर संस्थान पुणे में क्यों बनाया जा रहा है? सरकार के इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि विदर्भ के साथ किस तरह से भेदभाव किया जा रहा है। रिठे का कहना है कि शोध संस्थान एक तरह से वन विश्वविद्यालय की तरह से होगा। लेकिन इसके लिए सबसे अनुकूल जगह विदर्भ ही हो सकता है, पर सरकार इसे जंगल से दूर बनाने जा रही है। यह निर्णय एक तरह से विदर्भ के साथ-साथ प्रकृति की उपेक्षा है।
वहीं इस संबंध में वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पुणे एक अच्छा शहर है। वहां पहले से ही कई महत्वपूर्ण संस्थान हैं। शोध कार्य के लिए वहां अच्छा महौल है।
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